Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan
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ॐ [उ. ] गौतम ! क्या चक्र का खण्ड (भाग या टुकड़ा) चक्र कहलाता है, या सम्पूर्ण चक्र, चक्र 卐 कहलाता है ?
(गौतम-) भगवन् ! चक्र का खण्ड चक्र नहीं कहलाता, किन्तु सम्पूर्ण चक्र, चक्र कहलाता है।
(भगवान-) इसी प्रकार छत्र, चर्म, दण्ड, वस्त्र, शस्त्र और मोदक के विषय में भी जानना चाहिए। ॐ अर्थात्-समग्र हों, तभी छत्र आदि कहे जाते हैं, इनके खण्ड को छत्र आदि नहीं कहा जाता। इसी कारण के
से, हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि धर्मास्तिकाय के एक प्रदेश को, यावत् जब तक उसमें एक प्रदेश भी कम हो, तब तक उसे धर्मास्तिकाय नहीं कहा जा सकता।
[Q. 4] Bhante ! Why is it said that one section (pradesh)... and so on up to... less than one section of Dharmastikaya (motion entity) cann called Dharmastikaya ?
[Ans.] Gautam ! Can a part (khand) of a wheel be called a wheel or the whole wheel is called a wheel ?
(Gautam ) A part (khand) of a wheel is not called a wheel only the 4 whole wheel is called a wheel.
(Bhagavan-) The same holds good for chhatra (umbrella), cushion (charma), staff (dand), apparel (vastra), weapon (shastra) and modak (a spherical sweet); meaning that only the whole is called by that name and not any part thereof. That is why, Gautam ! It is said that one si section (pradesh)... and so on up to... less than one section of Dharmastikaya (motion entity) cannot be called Dharmastikaya.
८. [प्र. १ ] से किं खाइए णं भंते ! 'धम्मत्थिकाए' त्ति वत्तव्वं सिया।
[उ. ] गोयमा ! असंखेज्जा धम्मत्थिकायपदेसा ते सब्बे कसिणा पडिपुण्णा निरवसेसा एगग्गहणगहिया, एस णं गोयमा ! 'धम्मत्थिकाए' त्ति वत्तव्वं सिया। [ २ ] एवं अहम्मत्थिकाए वि। [३] आगासत्थिकाय-जीवत्थिकाय-पोग्गलत्थिकाया वि एवं चेव। नवरं पदेसा अणंता भाणियव्या। सेसं तं चेव।
८. [प्र. १ ] भगवन् ! तब फिर धर्मास्तिकाय किसे कहा जा सकता है ?
[उ. ] हे गौतम ! धर्मास्तिकाय में असंख्यात प्रदेश हैं, जब वे सब कृत्स्न (पूरे), परिपूर्ण, निरवशेष (एक भी बाकी न रहे) तथा एकग्रहणगृहीत अर्थात्-एक शब्द से कहने योग्य हो जायें, तब उस (असंख्येयप्रदेशात्मक सम्पूर्ण द्रव्य) को 'धर्मास्तिकाय' कहा जा सकता है। [२] इसी प्रकार 'अधर्मास्तिकाय' के विषय में जानना चाहिए। [३] इसी तरह आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय और पुद्गलास्तिकाय के विषय में भी जानना चाहिए। विशेष बात यह है कि इन तीनों द्रव्यों के अनन्त प्रदेश कहना चाहिए। बाकी सारा वर्णन पूर्ववत् समझना।
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| द्वितीय शतक : दशम उद्देशक
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Second Shatak: Tenth Lesson |
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