Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan
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மகதத்தத***************************மிதிதி
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[ १–प्र. ५ ] भगवन् ! क्या नैरयिकों द्वारा पहले आहारित (आहार किये हुए) पुद्गल चय को 5 प्राप्त हुए ?
[ उ. ] इसका उत्तर भी उपरोक्त १-४ के अनुसार है। अर्थात् जिस प्रकार वे परिणत हुए, उसी प्रकार चय को प्राप्त हुए; उसी प्रकार उपचय को; उदीरणा को, वेदन को तथा निर्जरा को प्राप्त हुए ।
गाथार्थ- परिणत, चित, उपचित, उदीरित, वेदित और निर्जीर्ण, इस एक-एक पद में पुद्गल विषयक उपरोक्त चार-चार प्रकार के ( प्रश्नोत्तर) होते हैं।
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[Ans.] The answer to this should be read as aforesaid about 卐 transformation (1-4). Also as stated about transformation (parinat) so is true for assimilation (chaya ), upachaya ( augmentation of karmas), 5 udiran (fruition of karmas), vedan (experience consequences), nirjaran 5 (separation or shedding).
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The verse-There are four aforesaid questions each related to transformation, assimilation, augmentation, fruition, experience and 5 shedding.
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[1 - Q.5] Bhante ! In case of infernal beings, did the matter ingested in the past assimilate (chaya ) ?
[ १ - प्र. ६ ] नेरइया णं भंते ! कतिविहा पोग्गला भिज्जंति ?
[ उ. ] गोयमा ! कम्मदव्ववग्गणं अहिकिच्च दुविहा पोग्गला भिज्जंति । तं जहा - अणू चेव बादरा चेव १ । [प्र. ] नेरइया णं भंते ! कतिविहा पोग्गला चिज्जंति ?
[ उ. ] गोयमा ! आहारदव्यवग्गणं अहिकिच्च दुविहा पोग्गला चिज्जंति । तं जहा - अणू चेव बादरा चेव २ | एवं उवचिज्जंति ३ ।
[प्र. ] नेरइया णं भंते ! कतिविहे पोग्गले उदीरेंति ?
[ उ. ] गोयमा ! कम्मदव्ववग्गणं अहिकिच्च दुविहे पोग्गले उदीरेंति । तं जहा- अणू चेव बादरे चेव 5
४। एवं वेदेंति ५। निज्जरेंति ६ । ओयट्टिसु ७ । ओयट्टेति ८ । ओयट्टिस्संति ९ । संकामिं १० । संक ११ । संकामिस्संति १२ । निहत्तिंसु १३ । निहत्तेंति १४ । निहत्तिस्संति १५ । निकायंसु १६ । निकाएंति १७ । निकाइस्संति १८ । सव्वेसु वि कम्मदव्ववग्गणमहिकिच्च ।
गाहा - भेदित चिता उवाचित उदीरिता वेदिया य निज्जिण्णा ।
ओयट्टण - संकमण - निहत्तण- निकायणे तिविह कालो ॥४ ॥
[ १ - प्र. ६ ] भगवन् ! नारक जीवों द्वारा कितने प्रकार के पुद्गल भेदे जाते हैं ?
[ उ. ] गौतम ! कर्मद्रव्यवर्गणा (कार्मण जाति के पुद्गलों का समूह) की अपेक्षा दो प्रकार के
पुद्गल
भेदे जाते हैं । यथा - अणु (सूक्ष्म) और बादर (स्थूल) (१) ।
भगवतीसूत्र (१)
(16)
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Bhagavati Sutra (1)
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