Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
View full book text
________________
श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
शतक ८.-उद्देशक ८. ७. प्र०] कइविहे गं भंते ! ववहारे पन्नत्ते ? [उ०] गोयमा! पंचविहे ववहारे पन्नते, तं जहा-यागमे, सुतं, आणा, धारणा, जीए । जहा से तत्थ आगमे सिया आगमेणं ववहारं पट्टवेजा; णो य से तत्थ आगमे सिया, जहा से तत्थ सुते सिया, सुरणं ववहारं पट्टवेजा । णो य से तत्थ सुए सिया, जहा से तत्थ आणा सिया, आणाए ववहारं पट्टवेजा; णो य से तत्थ आणा सिया, जहा से तत्थ धारणा सिया, धारणाए ववहारं पट्टवेजा; णो य से तत्थ धारणा सिया, जहा से तत्थ जीए सिया, जीएणं ववहारं पट्टवेजा; इच्चेपहिं पंचहिं ववहारं पटुवेजा, तं जहा-आगमेणं, सुएणं, आणाए, धारणाए, जीएणं, जहा जहा से आगमे सुए आणा धारणा जीए तहा तहा ववहारं पट्टवेजा।
८. [प्र० से किमाहु भंते ! आगमवलिया समणा णिग्गंथा? [उ.1 इच्चेतं पंचविहं ववहारं जया जया जहिं जहिं तहा तहा तहिं तहिं आणिस्सियोवसितं सम्मं ववहरमाणे समणे निग्गंथे आणाए आराहए भवइ ।
९. [प्र.] कइविहे गं भंते! बंधे पण्णत्ते? [उ०] गोयमा! दुविहे बंधे पन्नत्ते, तं जहा-इरियावहियाबंधे य संपराइयधंधे य।
१०. [प्र०] इरियावहियं णं भंते ! कम्मं कि नेरइओ बंधइ, तिरिक्खजोणिओ बंधइ, तिरिक्खजोणिणी बंधइ, मणुस्सो बंधइ, मणुस्सी बंधइ, देवो बंधइ, देवी बंधइ ? [उ०] गोयमा! नो नेरइओ बंधइ, नो तिरिक्खजोणिओ बंधद, नो देवो बंधा, नो देवी बंधइ । पुचपडिवन्नए पडुश्च मणुस्सा य मणुस्सीओ य वंधति, पडिवजमाणए पडुच्च १ मणुस्सो वा बंधद, २ मगुस्सी वा बंधद. ३ मणुस्सा वा बंधंति, ४ मणुस्तीओ वा बंधंति, ५ अहवा मणुस्सो य मणुस्सी य बंधइ, ६ अहवा मणुस्सो य मणुस्सीओ य बंधति, ७ अहवा मणुस्सा य मणुस्सी य बंधति, ८ अहवा मणुस्सा य मणुस्सीओ य बंधति ।
व्यवहार
व्यवहारतुं फळ.
ऐयोपथिक बने सापरायिक बंध.
ऐयोपथिक बंधना
खामी.
७. [प्र०] हे भगवन् ! व्यवहार केटला प्रकारनो कह्यो छे[उ०] हे गौतम ! व्यवहार पांच प्रकारे कह्यो छे, ते आ प्रमाणे१ *आगमव्यवहार, २ श्रुतव्यवहार, ३ आज्ञाव्यवहार, ४ धारणाव्यवहार अने ५ जीतव्यवहार. ते पांच प्रकारना व्यवहारमा तेनी पासे जे प्रकारे आगम होय ते प्रकारे तेणे आगमी व्यवहार चलाववो, तेमां जो आगम न होय तो जे प्रकारे तेनी पासे श्रुत होय ते श्रुत वडे व्यवहार चलाववो, अथवा जो तेमां श्रुत न होय तो जे प्रकारे तेनी पासे आज्ञा होय ते प्रकारे तेणे आज्ञावडे व्यवहार चलाववो. जो तेमा आज्ञा न होय तो जे प्रकारे तेनी पासे धारणा होय ते प्रकारे धारणा वडे तेणे व्यवहार चलाववो. जो तेमां धारणा न होय तो जे प्रकारे तेनी पासे जीत होय ते प्रकारे तेणे जीत वडे व्यवहार चलाववो. ए प्रमाणे ए पांच व्यवहारो वडे व्यवहार चलाववो, ते आ प्रमाणे-आगम, श्रुत, आज्ञा, धारणा अने जीत वडे जे जे प्रकारे तेनी पासे आगम, श्रुत, आज्ञा, धारणा अने जीत होय ते ते प्रकारे तेणे व्यवहार चलाववो.
८. [प्र०] हे भगवन् ! आगमना बलवाळा श्रमण निग्रंथो शुं कहे छे ? अर्थात् पंचविध व्यवहारतुं फल शुं कहे छे! [उ०] ए प्रकारे
व प्रकारना व्यवहारने ज्यारे ज्यारे अने ज्या ज्यां (उचित होय ) त्यारे त्यारे त्या त्या अनिश्रोपश्रित-राग द्वेषना त्यागपूर्वक सारीरीते व्यवहरतो श्रमण निग्रंथ आज्ञानो आराधक थाय छे.
९. प्र०] हे भगवन् ! बन्ध केटला प्रकारनो कह्यो छे! [उ०] हे गौतम ! बन्ध बे प्रकारनो कह्यो छे, ते आ प्रमाणे-ऐर्यापथिकबन्ध अने सांपरायिक बन्ध.
१०. [प्र०] हे भगवन् ! ऐर्यापथिक कर्म शुं १ नारक बांधे, २ तिर्यंच बांधे, ३ तिर्यच स्त्री बांधे, ४ मनुष्य बांधे, ५ मनुष्यत्री बांधे, ६ देव बांधे के ७ देवी बांधे ? [उ०] हे गौतम ! १ नारक बांधतो नथी, २ तियेच बांधतो नथी, ३ तिर्यचस्त्री बांधती नथी, ४ देव बांधतो नथी अने ५ देवी बांधती नथी; पण 'पूर्वप्रतिपन्नने आश्रयी मनुष्यो अने मनुष्य स्त्रीओ बांधे छे. प्रतिपद्यमानने आश्रयी १ मनुष्य बांधे छे. २ अथवा मनुष्यस्त्री बांधे छे. ३ अथवा मनुष्यो बांधे छे. ४ अथवा मनुष्यस्त्रीओ बांधे छे; ५ अथवा मनुष्य अने मनुष्यस्त्री बांधे छे. ६ अथवा मनुष्य अने मनुष्यस्त्रीओ बांधे छे. ७ अथवा मनुष्यो अने मनुष्यत्री बांधे छे. ८ अथवा मनुष्यो अने मनुष्यस्वीओ बांधे छे.
७. * व्यवहार एटले मुमुक्षुनी प्रवृत्ति, तेनुं कारण जे ज्ञान ते पण व्यवहार कहेवाय छे. १ भागम-केवलज्ञान, मनःपर्यव, अवधिज्ञान, चउद पूर्व, दश पूर्व अने नव पूर्व. २ श्रुत-आचारकल्पादि, ३ आज्ञा-अगीतार्थनी पासे गूढअर्थवाळा पदो वडे बीजा देशमा रहेला गीतार्थने निवेदन करवा माटे अतीचारनी आलोचना लेवी अने ते प्रमाणे बीजाना दोषनी पण शुद्धि करवी. ४ धारणा-गीतार्थ द्रव्य, क्षेत्र, काल भने भावनो विचार करी जे दोषनी जे शुद्धि करी होय तेने अबधारीने वैयावच करनारा वगेरेने प्रायश्चित्त आपवू. ५जीत-द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावादिनी अपेक्षाए शारीरिक बल, धैर्य वगेरेनी हानिनो विचार करी प्रायश्चित्त आप. विशेष माटे जुओ भ. टी. प. ३८४-२.
१०. जेणे पूर्व ऐपिथिक बन्ध को होय ते पूर्वप्रतिपन कहेवाय छ, अर्थात् ऐयापथिक बन्धना बीजा, त्रीजा वगेरे समयमा वर्तमान होय ते. तेवा धणा पुरुषो भने स्त्रीओ होय छे. केमके बन्ने प्रकारना केवलिओ हमेशां होय छे, ऐर्यापथिक कर्मना बन्धक वीतराग-उपशान्त मोह, क्षीणमोह, अने सयोगि केवली गुणस्थानके वर्तता होय छे. ऐयापथिकबन्धना प्रथम समये जेओ वर्तता होय ते प्रतिपद्यमान कहेवाय छे, अने तेओनो विरह संभवित होवाथी मनुष्य भने मनुष्यत्री एक एकना संयोगे अने एक ने बहुना योगे चार विकल्प थाय छे. द्विकसंयोगे पण चार विकल्पो थाय छे. ए प्रमाणे सर्वमळीने आठ विकल्पो थाय छे.-टीका.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org