Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust

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Page 275
________________ शतक १२. - उद्देशक १. • भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र. २५५ १०. तप नं ते समगोवासमा कलं पाडु० जाब-जलते व्हाया कपचलिकम्मा जाय सरीरा सपदि २ मेद्देदितो पडिनिक्वमंति, स० २ मित्ता एगयओ मिलायंति, एगयो मिलाचित्ता से जदा पढमं जाय पनुवासंति । तप पं समणे मग महावीरे तेसि समणोवासगाणं तीसे य धम्मकडा, जाव आणार आरादर भवति । तर पं ते समणोवासगा समणस्स भगवओ महावीररस अंतियं धम्मं सोया निसम्म हट्ठा उद्वार उद्वेति उ० २-सा समणं भगवं महावीरं यदति नर्मसंति, वंदित्ता नर्मसित्ता जेणेव संखे समणोवासए तेणेव उवागच्छन्ति, ते० २- च्छित्ता संखं समणोवासयं एवं वयासी- 'तुमं देवाशुप्पिया ! हिजो अम्हे अप्पणा चेव एवं वयासी, तुम्हे णं देवाणुप्पिया ! विउलं असणं० जाव - विद्दरिस्सामो, तप णं तुम पोसहसालार जाय विहरिए, तं मु णं तुमं देवापिया ! अम्हे हीलसि । 'अजोति समणे भगवं महावीरे ते समणोवासर एवं वयासी- 'माणं अजो ! तुज्झे संखं समणोवासगं हीलह, निंदह, खिंसह, गरहह, अवमन्नद्द, संखे णं समणोवासए पियधम्मेचे धम्मे चेच, सुदवखुजागरियं जागरिए । 1 ११. [प्र० ] 'भंते 'ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं बंदद्द नम॑सह, वंदिता नर्मसिता एवं व्यासी करविदा भंते ! जागरिया पण्णत्ता ? [30] गोयमा ! तिविहा जागरिया पण्णत्ता, तंजदा - बुद्धजागरिया, अबुद्धजागरिया, सुदक्खुजागरिया [प्र०] से केणणं भंते! एवं पुचइतिविहा जागरिया पण्णत्ता, तंजावुराजागरिया, अयुद्धजागरिया, मुदयु जागरिया' ? [30] गोयमा ! जे इमे अरिहंता भगवंतो उप्पन्ननाण- दंसणधरा जहा खंदए जाव- सवन्न सङ्घदरिसी, एए णं बुद्धा बुद्धजागरियं जागरंति । जे इमे अणगारा भगवंतो ईरियासमिया भासासमिया जाव - गुत्तबंभचारी एए णं अबुद्धा अवुद्धजागरियं जागरंति । जे इमे समणोवासगा अभिगयजीवा - जीवा जाव विहरन्ति, पते णं सुदक्खुजागरियं जागरंति, से तेणद्वेणं गोयमा ! एवं च 'तिविहा जागरिया जाव - सुदक्खुजागरिया' । - १२. [प्र० ] तप णं से संखे समणोवासए समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसर, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-कोहवसट्टे णं भंते! जीवे किं बंधइ, किं पकरेति, किं चिणाति, किं उवचिणाति । संखा ! कोहवसट्टे णं जीवे आउयवज्जाओ सत्त कम्मपगडीओ सिढिलबंधणबद्धाओ एवं जहा पढमसए असंवुडस्स अणगारस्स जाव- अणुपरियट्टा । १०. त्यार बाद [ पूर्वे कला ] ते श्रमणोपासको आवती काले यावत् सूर्योदय समये स्नान करी, बलिकर्म करी यावत् शरीरने अलं- वीजा श्रमणोपासको कृत करी पोत पोताना घरची नीकी एक स्थळे भेगा थाय छे, एक स्थळे मेगा पहने-खादि वधुं प्रथम निर्गमवत् जाग यायत् (भगवंत पण दिवा जाय छे. महावीरनी पासे जइ ) तेमनी पर्युपासना करे छे. त्यार बाद श्रमण भगवंत महावीरे ते श्रमणोपासकोने तथा ते सभाने धर्मकथा कही. यावत् 'ते अज्ञाना आराधक थाय छे' यां सुची जागनुं खार बाद ते श्रमणोपासको श्रमण भगवंत महावीरनी पासेवी धर्मने सांभाळी, अबधारी, हृष्ट अने तुष्ट थया, अने उभा थइ श्रमण भगवंत महावीरने वांदी, नमी, ज्यां शंख श्रमणोपासक छे त्यां आव्या; आवीने शंख श्रमणोपासकने तेओए एम कह्युं के - 'हे देवानुप्रिय ! तमे गइ काले अमने एम कह्युं हतुं के, 'हे देवानुप्रियो ! तमे पुष्कळ अशनादि आहारने तैयार करावो, यावद् - आपणे विहरीशुं, त्यार बाद तमे पोषधशालामां यावद् विहर्या, तो हे देवानुप्रिय ! तमे अमारी ठीक हीलना ( हांसी) करी. ' पछी 'हे आर्यो !' एम कही श्रमण भगवंत महावीरे ते श्रमणोपासकोने आ प्रमाणे कयुं - 'हे आर्यो !' तमे शंख श्रमणोपासकनी हीलना, निंदा, खिसना, गर्हा अने अवमानना न करो, कारण के ते शंख श्रमणोपासक धर्मने विषे प्रीतिवाको अने दतावा छे, तथा तेणे [ प्रसाद अने निद्राना त्यागथी ] सुदृष्टि - ज्ञानीनुं जागरण करेल छे. ए ११. [प्र०] 'भगवन्' प्रमाणे कही भगवान् गौतम श्रमण भगवंत महावीरने वांदे छे, नमे छे, बांदी अने नमी तेणे आ प्रमाणे कंद भगवन् ! जागरिका केठला प्रकारनी कही छे (उ०) हे गौतम! जागरिका प्रण प्रकारनी कही छे, ते आ प्रमाणे- १ बुद्धजाग रिका, २ अबुद्धजागरिका अने ३ सुदर्शनजागरिका. [प्र० ] हे भगवन् ! तमे ए प्रमाणे शा हेतुथी कहो छो के 'जागरिका त्रण प्रकारनी छे, ते आ प्रमाणे- बुद्धजागरिका, अबुद्धजागरिका अने सुदर्शनजागरिका' ? [उ०] हे गौतम! जे उत्पन्न थयेला ज्ञान अने दर्शनना धारण बरनारा आ अरिहंत भगवंतो इयादि स्कंदकना अधिकारमां का प्रमाणे सर्वज्ञ अने सर्वदर्शी छे बुद्धो [केज्ञानपडे ] बुद्धजागरिका जागे छे. जे आ भगवंत अनगारो ईर्यासमितियुक्त, भाषासमितियुक्त अने यावत्- गुप्त ब्रह्मचारी छे, तेओ [ 'केवलज्ञानी नहि होवाथी] अयुद्ध छे अने तेओ अनुजागरिका जागे छे तथा जे आ श्रमणोपासको जीवाजीवने जाणनारा छे, यावत् एओ [ सम्यग्दर्शनी होवाथी ] सुदर्शन जागरिका जागे छे. माटे ते हेतुथी हे गौतम! ए प्रमाणे कह्युं छे के जागरिका त्रण प्रकारनी छे, यावत् सुदर्शनजागरिका छे. १२. [१०] सार बाद ते शंख श्रमणोपासके भ्रमण भगवंत महावीरने बांदी, नमी आ प्रमाणे हे भगवन्! 'क्रोधने वश होवाथी पीडित थयेलो जीव शुं बांधे, शुं करे, शेनो चय करे अने शेनो उपचय करे ? [30] हे शंख ! क्रोधने वश थवाथी पीडित थयेलो जीव शुं बांधे? थयेलो जीव आयुष सिवायनी सात कर्मप्रकृतिओ शिथिल बन्धनथी बांधेली होय तो कठिन बन्धनवाळी करे - इत्यादि सर्व प्रथम शतकमां कहेला संवररहित अनगारनी पेठे जाणवुं यावत् ते [ संवररहित साधु ] संसारमां भमे छे. कोषयी व्याकुल १० Jain Education International * भग० सं० १ ० २ उ० ५ पृ० २७८. ११ भग० खं० १० २ उ० १५० २३४. १२ भग० सं० १० १३०११० ८३. शंखनी निन्दा न करो. For Private & Personal Use Only जागरिकाना प्रकार. www.jainelibrary.org/

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