Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust

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Page 357
________________ शतक १३ - उद्देशक ९. भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र. ११. [प्र०] से जहानामय केर पुरिसे पकं गदाय गच्छेजा, एवामेव अणगारे वि भाविपप्पा वदत्यकिश्चपणं अप्पा ० १ [30] से जहा केयाघडियाए, एवं छत्तं, एवं चमरं । 1 १२. [प्र० ] से जहानामए केद्र पुरिसे रयणं गद्वाय गच्छेजा, एवं चेय, एवं बरं, बेरुलिवं जाव-रिहं एवं उप्पलहृस्थगं, पउमहत्थगं, कुमुदहत्थगं, एवं जाव-से जहानामए केइ पुरिसे सहस्सपत्तगं महाय गच्छेजा ० ? [उ०] एवं चैव १३. [प्र०] से जहानामय केइ पुरिसे भिसं अवद्दालिय २ गच्छेजा, एवामेव अणगारे वि भिसकिञ्चगपणं अप्पाणेणं ०१ [30] तं चैव । १४. [प्र०] से जहानामए मुणालिया सिया, उदगंसि कायं उम्मजिय २ चिट्टिज्जा, एवामेव० १ [30] सेसं जहा वग्गुलीए । १५. [प्र० ] से जहानामए वणसंडे सिया, किण्हे, किण्होभासे, जाव - निकुरंबभूए, पासादीए ४, एवामेव अणगारे वि भावियप्पा वणसंगिए अप्पानं उहं बेहासं उप्पारक्षा ? [30] सेसं तं चैव । १६. [२०] से जहानाम पुक्खरणी सिया, चउकोणा, समतीरा, अणुपुत्रसुजाय० जाव सदुखदयमदुरसरणादिया पासादीया ४ पामेव अपगारे वि भावियया पोक्खरणीकिचगणं अप्यानेणं उहं वेदासं उप्परना ? [४०] हंता उप्परना। १७. [प्र० ] अगगारे णं भंते! भावियच्या केवतियाई पभू पोक्सरणीकियागयाई रुचाई विउचित [३०] से तं चैव जाव- विउविस्संति वा । १८. [अ०] से भंते । किं माषी विउयति, अमावी विष्ठति ? [४०] गोषमा ! मायी विश्वर, जो अमावी विउवा । मायी णं तस्स ठाणस्स अणालोदय एवं जहा तहयसर उत्देसर जाप अत्थि तस्स आराहणा' 'सेवं भंते! सेवं भंते!'ति विरह । तेरसमसए नवमो उद्देसो समतो ११. [प्र० ] जेम कोइ एक पुरुष चकने उइने गति करे, एज प्रमाणे भावितात्मा अनगार पोते चकल्पने हस्तगत करीने [एवा आकारे आकाशमां उडे ? ] [ उ०] बाकी बधुं पूर्वे कहेली दोरडाथी बांधेल घटिकानी पेठे ( सू० १) जाणवुं. एज प्रमाणे छत्र तथा चामरने लइने गमन करे. १२ [प्र०) जैम को एक पुरुष रहने लड़ने गमन करे, ए प्रमाणे यत्र, बैहुर्ग यावत् रिष्ट (श्यामरन), ए प्रमाणे उत्पादने हस्तगत करी, पद्मने हस्तगत करी, ए प्रमाणे यावत्- कोइ एक पुरुष सहस्रपत्रने लइने गति करे, तेम भावितात्मा अनगार पोते एवा आकारे आकाशमां गति करे ? [उ०] ए प्रमाणे जाणवुं. १३. [प्र० ] हे भगवन् ! जेम कोइ एक पुरुष बिसनी - कमळनी डांडलीने तोडी तोडीने गति करे, ते प्रमाणे अनगार पण पोते बिसकृत्यने प्राप्त करी - [ एवा प्रकारे ] पोते गगनमां गमन करे ? [30] पूर्ववत् जाणवुं. १४. [प्र० ] जेम कोइ एक मृणालिका-कमलनो छोड पाणीमां कायने - पोताना शरीरने डुबाडी डुबाडी [ मुख बहार राखी ] रहे, एप्रमाणे भावितात्मा अनगार पोते एवा आकारे गगनमां उडे ? [उ०] बाकी बधुं वागुलीनी पेठे जाणवुं. १५. [प्र०] जेम कोइ एक वनखंड होय, अने ते काळो, काळा प्रकाशवाळो, यावत् - मेघना समूहरूप, प्रसन्नता देनार अने [ दर्शनीय] होय, एज प्रमाणे भावितात्मा अनगार पण पोते वनखंडना कृत्यने प्राप्त करी अर्थात् एवा आकारे पोते गगनमां उडे ? [30] बाकी बधुं पूर्व प्रमाणे जाणवुं. १७. [१०] हे भगवन् । भावितात्मा अनगार पुष्करिणीना कृपने [उ०] बाकी पूर्व प्रमाणे जाणवुं, पण ते संप्राप्तिथी यावत् - विकुर्वशे नहि. १८. [अ०] हे भगवन्! [पूर्वोक्त रूपो] मायावाये विकुर्वे के मायारहित (अमगार) विकुर्वे (उ०) हे गौतम! मायावाको निकुर्वे पण मायारहित साधु न विकुर्वे. मायावाळो साधु विकुर्वणारूप प्रमाद स्थानकनी आलोचना अने प्रतिक्रमण कर्या शिवाय काळ करे - इत्यादि "तृतीय शतकाना चोगा उद्देशकमां का प्रमाणे आणवं, यावत्- 'तेने आराधना याय सेवां सुधी कहेतुं 'हे भगवन्! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे'- एम कही [भगवान् गौतम !] याबद्-विहरे छे. भग० सं० २ ० ३ उ० ४ पृ० ९२. ४३ भ० सू० Jain Education International त्रयोदशशते नवम उद्देशक समाप्त For Private & Personal Use Only पुरुषनी जेम गति करे , १६. [प्र०] जेम कोइ एक पुष्करिणी बाब होय, अने ते चोखंडी, समान कांटावाळी जेने अनुक्रमे सुशोभित वप्रवंडी के रामाका एमी, पोपट वगैरे पक्षीओना मोटा शब्दवाळी, तेओना मधुर स्वरवादी अने प्रसन्नता आपनार होय, ए प्रमाणे भावितात्मा अनगार पण पुष्करिणीना कृष्णने प्राप्त करी एवा आकारने विकुर्वी पोते आकाशमा उडे [उ०] हा उबे. आकाशर्मा गमन करे ? प्राप्त एवा आकारवाला केटां रूपो विकुर्ववाने समर्थ थाय! बेट रदस्त पुरषनी पेठे गति करे विस. बुलिका. भाषा बनखंड. के मात्रा रहित चिकुवें www.jainelibrary.org/

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