Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
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इन्द्र दृष्टि करे !
इन्द्र दृष्टि केवी री करे?
शुं अमरकुमार देवो दृष्टि करे ले
ज्ञानेन्द्रादि तम स्काय करे ?
श्रीराय चन्द्र-जिनागमसंप्रहे
४. [प्र० ] अस्थि णं भंते! पज्जन्ने कालवासी वुट्टिकायं पकरेति ? [अ०] हंता अत्थि ।
५. [प्र० ] जाहे णं भंते! सक्के देविंदे देवराया वुट्टिकायं काउकामे भवति से कह मियाणिं पकरेति ? [अ०] गोयमा ! ताहे व से सक्के देविंदे देवराया अन्भितरपरिसाए देवे सहावेति, तए णं ते अभितरपरिसगा देवा सद्दाविया समाणा मज्झिपरिसर देवे सहावेंति, तए णं ते मज्झिमपरिसगा देवा सद्दाविया समाणा बाहिरपरिसए देवे सहावेंति, तए णं ते बाहि परिसगा देवा सहाविया समाणा बाहिरबाहिरगे देवे सहावेंति, तए णं ते बाहिरबाहिरगा देवा सद्दाविया समाणा आभिओगिए देवे सद्दार्वेति, तए णं ते जाव- सद्दाविया समाणा वुट्टिकाइए देवे सहावेंति, तए णं ते बुट्टिकाइया देवा सहाविया समाणा वुट्ठिकार्य करेंति, एवं खलु गोयमा ! सक्के देविंदे देवराया बुट्टिकायं पकरेति ।
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शतक १४. - उद्देशक २.
६. [प्र०] अत्थि णं भंते! असुरकुमारा वि देवा बुट्टिकायं पकरेंति ? [उ० ] हंता अस्थि । [प्र०] किंपत्तियं णं भंते! असुकुमारा देवा बुट्टिका पकरेंति ? [अ०] गोयमा ! जे इमे अरहंता भगवंता एएसि णं जम्मणमहिमासु वा निक्खमणमहिमासु वा णाणुप्पायमहिमासु वा परिनिष्वाणमहिमासु वा एवं खलु गोयमा ! असुरकुमारा वि देवा वुट्टिकायं पकरेंति, एवं नागकुमारा वि, एवं जाव - धणियकुमारा । वाणमंतर - जोइसिय-वेमाणिया एवं चैव ।
७. [प्र०] जाहे णं भंते ! ईसाणे देविंदे देवराया तमुक्कायं काउकामे भवति से कहमियाणि पकरेति ? [अ०] गोयमा ! साहे चेव णं से ईसाणे देविंदे देवराया अभितरपरिसाए देवे सहावेति, तए णं ते अब्भितरपरिसगा देवा सद्दाविया समाणा एवं जहेव सकस्स जाव-तप णं ते आभिओगिया देवा सहाविया समाणा तमुक्काइप देवे सहावेंति, तप णं ते तमुक्काइया देवा सद्दाविया समाणा तमुक्कायं पकरेंति, एवं खलु गोयमा ! ईसाणे देविंदे देवराया तमुक्कायं पकरेति ।
८. [प्र० ] अस्थि भंते! असुरकुमारा वि देवा तमुक्कायं पकरेंति ? [ उ० ] हंता अत्थि । [प्र०] किं पत्तियं णं भंते ! असुरकुमारा देवा तमुक्कायं पकरेंति ? [अ०] गोयमा ! किड्डा- रतिपत्तियं वा पडिणीय विमोहणट्टयाए वा गुत्तीसारक्खणहे या अप्पणो वा सरीरपच्छायणट्टयाए, एवं खलु गोयमा ! असुरकुमारा वि देवा तमुक्कायं पकरेंति, एवं जाव - वेमाणिया । 'सेव भंते ! सेवं भंते!' त्ति जाव- विहरइ ।
वीओ उद्देसो समत्तो.
४ [प्र० ] हे भगवन् ! शुं एम छे के काले वरसनार पर्जन्य (मेघ) दृष्टिकाय ( जलसमूह ) ने वरसावे ? [ अथवा जिन जन्ममहोसवादिकाले वृष्टि करनार पर्जन्य- इन्द्र वृष्टि करे ? [उ०] हा, गौतम ! वृष्टि करे.
५. [प्र० ] हे भगवन् ! ज्यारे देवेन्द्र अने देवनो राजा शक्र वृष्टि करवानी इच्छावाळो होय त्यारे ते वृष्टि केवी रीते करे [अ०] हे गौतम! [ज्यारे ते वृष्टि करवानी इच्छावाळो होय ] त्यारे देवेन्द्र अने देवनो राजा शक्र अभ्यन्तर परिषदना देवाने बोलावे छे, अने बोलावेला ते अभ्यन्तर परिषदना देवो मध्यम परिषदना देवोने बोलावे छे, मध्यम परिषदना बोलावेला ते देवो बहारनी परिषदना देवोने बोलावे छे, त्यार पछी बहारनी परिषदना बोलावेला ते देवो बहारबहारना देवोने बोलावे छे, भने बोलावेला ते बहार बहारना देवो आभियोगिक देवोने बोलावे छे, अने बोलावेला ते आभियोगिक देवो वृष्टिकायिक ( वृष्टि करनारा ) देवोने बोलावे छे, पछी ते बोलावेला वृष्टिकायिक देवो वृष्टि करे छे. ए प्रमाणे हे गौतम! देवेन्द्र देवनो राजा शक्र वृष्टिकाय करे छे.
६. [प्र० ] हे भगवन् ! असुरकुमार देवो पण शुं वृष्टि करे छे ? [उ०] हे गौतम! हा, करे छे. [प्र०] हे भगवन् ! असुरकुमार देवो शाहेतुथी वृष्टि करे छे ? [उ०] हे गौतम ! जे आ अरिहंत भगवंतो छे, एओना जन्मोत्सवानिमित्ते, दीक्षोत्सव निमित्ते, ज्ञानोत्पत्तिनिमित्ते अने निर्वाणना उत्सवनिमित्ते ए प्रमाणे असुरकुमार देवो दृष्टि करे छे. ए प्रमाणे नागकुमारो अने यावत् स्तनितकुमारो सुधी जाणवुं. वानव्यंतर ज्योतिषिक अने वैमानिक सबन्धे पण ए प्रमाणे जाणवुं.
७. [प्र०] हे भगवन् ! देवेन्द्र जने देवना राजा ईशान ज्यारे तमस्कायने करवाने इच्छे त्यारे ते तेने केवी रीते करे? [3] है गौतम ! त्यारे देवेन्द्र अने देवना राजा ईशान अभ्यन्तर परिषदना देवोने बोलावे छे, त्यार बाद बोलावेला ते अभ्यन्तर परिषदना देवो - इत्यादि पूर्वोक्त बधुं शक्रनी पेठे यावत्- बोलावेला ते आभियोगिक देवो तमस्कायिक ( तमस्काय करनार) देवोने बोलावे छे, अने त्यार पछी बोलावेला ते तमस्कायिक देवो तमस्काय करे छे. हे गौतम! ए प्रमाणे देवेंद्र अने देवना राजा ईशान तमस्काय करे छे..
अमरकुमार तम करे।
८. [प्र० ] हे भगवन् ! शुं एम छे के असुरकुमार देवो पण तमस्कायने करें ? [उ०] हे गौतम! हा, करे छे [प्र०] हे भगवन् ! शाहेतु तमस्काय असुरकुमार देवो शा हेतुथी तमस्काय करे छे ? [उं०] हे गौतम! क्रीडा के रतिनिमित्ते, शत्रुने मोहपमाडवा निमित्ते, छुपावेला द्रव्यने साचववा निमित्ते अथवा पोताना शरीरने ढांकी देवा निमित्ते हे गौतम! ते असुरकुमार देवो पण तमस्काय करे छे. ए प्रमाणे यावत् - वैमानिको सुधी जाणवुं. 'हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे' - एम कही यावद् [भगवान् गौतम] विहरे छे.
करे ?
चतुर्दशशतके द्वितीय उद्देशक समाप्त.
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