Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
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परमाणुपुङ्गल शाश्वत के अशाश्वत ?
परमाणु चरम के अचरम ?
सामान्य परिणाम.
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श्रीरामचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
शतक १४. - उद्देशक ४.
५. [५० ] परमाणुपोग्गले णं भंते! किं सासए, असासए ? [30] गोयमा ! सिय सासए, सिय असासए । [30] सेकेणटुणं भंते । एवं धासिय सासर, सिय असासप' १ [४०] गोयमा ! दचट्टयाए सासप, पद्मपखवेहिं जापकासपत्नहिं असास से तेजद्वेणं जावसिय सासर, सिय असासए ।
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६. [ प्र० ] परमाणुपोग्गले णं भंते । किं चरिमे, अचरिमे ? [30] गोयमा ! दवादेसेणं नो चरिमे, अचरिमे, खेत्ता देसेणं सिय चरिमे, सिय अचरिमे, कालादेसेणं सिय चरिमे, सिय अचरिमे, भावादेसेणं सिय चरिमे, लिय अचरिमे ।
७. [०] कवि णं ते! परिणामे पण्णत्ते ? [30] गोयमा ! दुविहे परिणामे पण्णत्ते, तंजदा-जीवपरिणामे य अजीवपरिणामे य एवं परिणामपर्य निरयसेसे भाणियां 'सेवं भंते! सेवं भंते! चि जाय-विहरति ।
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चोदसमसए चउत्थो उद्देसो समत्तो ।
५. [ प्र० ] हे भगवन् ! परमाणुपुद्गल शाश्वत छे के अशाश्वत छे ? [उ०] हे गौतम ! ते कथंचित् शाश्वत छे अने कथंचित्. अशा - श्वत छे. [प्र०] हे भगवन्! आप एम शा हेतुथी कहो छो के 'कथंचित् शाश्वत छे अने कथंचित् अशाश्वत छे' : [ उ०] हे गौतम! द्रव्यार्थरूपे ते परमाणुपु शाश्वत छे, अने वर्णपर्यायवडे यावत् स्पर्शपर्याय डे अशाचत छे, माटे ते हेतुथी हे गौतम! एम का छे के 'परमाणुपुङ्ग कचित् शाखत छे अने कचित् अशाच छे.'
६. [ प्र० ] हे भगवन् ! शुं परमाणुपुद्गल चरम छे के अचरम छे ? [ उ०] हे गौतम! ( परमाणुपुद्गल ) द्रव्यनी अपेक्षाए * चरम नथी, पण अचरम छे. क्षेत्रादेशथी कदाचित् चरम छे अने कदाचित् अचरम छे. कालादेशथी कदाचित् चरम छे अने कदाचित् अचरम छे. भावादेशथी कथंचित् चरम अने कथंचित् अचरम छे.
७. [ प्र० ] हे भगवन् ! परिणाम केटला प्रकारनो को छे [उ०] हें गौतम ! परिणाम से प्रकारनो को छे, ते आ प्रमाणेजीयपरिणाम अने अजीव परिणाम ए प्रमाणे अहिं [प्रज्ञापना सूत्र] परिणामपद संपूर्ण कहे. 'हे भगवन् से एमज छे, हे भगवन् ! से एमज छे' - एम कही [भगवान् गौतम ] यावद् विहरे छे.
चतुर्दशशत के चतुर्थ उद्देशक समाप्त.
६ * जे परमाणु विवक्षित परिणामधी रहित थईने पुनः ते परिणामने पामशे नहि ते परमाणु ते परिणामनी अपेक्षाए चरम कहेवाय छे, अने जे परते परिणाम पाशे ते अपेक्षा ते अचरम कद्देवाय छे. इम्पनी अपेक्षाए परमा चरम सभी पथ चरम छे, कारण परमाणुपरि नामीति पर संचातपरिणामने पानी कलामारे पुनः परमाणुपरिणामने पाशे क्षेत्री अपेक्षाए परमाणु कथंचित् चरम अने म छेप्रमाणे क्षेत्रमा जे परमारो के हसमुप्राप्ताव ज्ञानीना संबन्धविशिष्ट ते परमाणु कोइ पण समये ते क्षेत्रनो आश्रय नहि करे, केमके ते केवलीनुं निर्वाण थवाथी ते क्षेत्रमा पुनः कदि आववाना नथी, माटे ए प्रमाणे क्षेत्र श्री परमाणु चरम कहेवाय छे, विशेषणरहित क्षेत्रनी अपेक्षाए परमाणु करी ते क्षेत्रमां अवगाढ थशे, माटे 'अचरम' कद्देवाय छे. कालनी अपेक्षाएं कथंचित् चरम छे अने कथंचित् अचरम छे, ते आ प्रमाणे जे पूर्वाह्नादि कालने विषे जे केवलीए समुद्घात कर्यों, ते कालने बिषे जे परमाणु रहेलो छे ते परमाणु ते केवलिसमुद्घातविशिष्ट ते काळने कदि पण प्राप्त नहि करे, कारण के ते केवलज्ञानी मोक्षे जवाधी पुनः समुद्घात करवाना नथी, माटे तेनी अपेक्षाए कालथी चरम, अने विशेषणरहित कालनी अपेक्षाए परमाणु अचरम छे. भावनी अपेक्षाए परमाणु चरम अने अचरम छे. ते आ प्रमाणेकेसरे जे परमाणु वर्णादिभावविशेष प्राप्त भयो तो ते परममिति विधिवर्णदिपरिणामनी अपेक्षा चरम
छे, कारण के केवलज्ञानीना निर्वाण थवाथी पुनः ते परमाणु विशिष्ट परिणामने प्राप्त नहि थाय. आ व्याख्यान चूर्णिकारना मतने अनुसरी करेलुं छे. टीका. परियम के परिणाम अर्यान्तरप्राप्ति सवा एकरुपे अवस्थित रहे तेज सेनो सर्वथा नाश थवो ते परिणाम नथी.” तेमां जीवपरिणाम दश प्रकारनो छे-१ गति, २ इन्द्रिय, ३ कषाय, ४ लेश्या, ५ योग, ६ उपयोग, ७ ज्ञान, ८ दर्शन, ९ चारित्र,
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अने १० वेद. अजीवपरिणाम पण दश प्रकारनो छे- १ बन्धन, २ गति, ३ संस्थान, ४ मेद, ५ वर्ण, ६ गन्ध, ७ रस, ८ स्पर्श, ९ अगुरुलघु अने १० शब्दपरिणाम. -- टीका.
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