Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
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छठ्ठओ उद्देसो। १. [प्र०] रायगिहे जाव-एवं वयासी-नेरहया णं भंते ! किमाहारा, किंपरिणामा, किंजोणीया, किंठितीया पण्णत्ता [उ०] गोयमा ! नेरइया णं पोग्गलाहारा, पोग्गलपरिणामा, पोग्गलजोणिया; पोग्गलद्वितीया, कम्मोवगा, कम्मनियाणा, कम्मद्वितीया, कम्मुणामेव विप्परियासमेंति, एवं जाव-वेमाणिया।
२. [प्र. नेरहया णं भंते ! किंबीयीदवाइं आहारैति अवीचिदवाई आहारति उ०] गोयमा! नेरतिया वीचिदखाई पि आहारैति, अवीचिदवाई पि आहारैति । [प्र०] से केणटेणं भंते ! एवं वुश्चर-'नेरतिया वीधि० तं चैव जाव-आहारेंति'.? [उ.] गोयमा ! जे णं नेरइया एगपएसूणाई पि दवाई आहारेति, ते णं नेरतिया वीचिदवाई आहारेंति, जे णं नेरतिया पडि. पुनाई दवाई आहारेंति ते गं नेरइया अवीचिदचाई आहारेंति, से तेणटेणं गोयमा! एवं बुच्चद-जाव-आहारेंति, एवं जाववेमाणिया आहारैति ।
३. [प्र०] जाहे णं भंते ! सके दोविंदे देवराया दिखाई भोगभोगाई जिउंकामे भवति से कहमियाणि पकरेंति [उ.] गोयमा! ताहे चेव णं से सके देविंदे देवराया एगं महं नेमिपडिरूवगं विउच्चति, एग जोयणसयसहस्सं आयाम-विक्खंभेणं, तिन्नि जोयणसयसहस्साई, जाव-अद्धंगुलं च किंचिविसेसाहियं परिक्वेणं । तस्स गं नेमिपडिरूवगस्स उरि बहुसमरमणिजे भूमिभागे पन्नत्ते, जाव-मणीणं फासे, तस्स णं नेमिपडिरूवगस्स बहुमझदेसभागे तत्थ णं महं एगं पासायवडेंसगं विउच्चति पंच जोयणसयाई उडे उच्चत्तेणं, अड्डाइजाई जोयणसयाई विक्खंभेणं, अभुग्गय-मूसिय० वन्नओ जाव-पडिरूवं ।
षष्ठ उद्देशक. नारकोने आहार १. [प्र०] राजगृहमा [भगवान् गौतम] आ प्रमाणे बोल्या के हे भगवन् ! नारको शो आहार करे, अने ते [आहारनो] शो परिपरिणाम, योनि, णाम थाय, तेनी योनि (उत्पत्तिस्थानक) केवी होय, अने तेनी स्थिति-अवस्थानुं कारण शुं छे ? [उ०] हे गौतम ! नारको पुद्गलनो आस्थिति वगेरे.
हार करे, अने तेनो पुद्गलरूपे परिणाम थाय, [शीत अने उष्ण स्पर्शवाळा] पुद्गलो एज तेनी योनि-उत्पत्तिस्थानक छे, [ आयुषकर्मना] पुद्गलो ए तेनी नरकमां स्थितिनुं कारण छे. तथा ते [बन्धद्वारा] कर्मने प्राप्त थयेला छे, ते नारकपणानुं निमित्तभूतकर्मवाळा छे, कर्म
पुद्गलथी तेओनी स्थिति छे, अने कर्मने लीधे अन्य पर्यायने प्राप्त थाय छे. ए प्रमाणे यायद्-वैमानिको सुधी जाणवू. नारको वीचि भने २. [प्र०] हे भगवन् ! नारको वीचिद्रव्योनो आहार करें छे के अवीचि द्रव्योनो आहार करे छे ! [उ०] हे गौतम नारको वीअवीचिद्रव्यनो चिद्रव्योनो पण आहार करे छे अने अवीचिद्रव्योनो पण आहार करे छे. प्र०] हे भगवन्! ए प्रमाणे आप शा हेतुथी कहो छो के, माहार करे .
'नारको वीचिद्रव्यो अने अवीचिद्रव्योनो पण आहार करे छे' ? [उ०] हे गौतम! जे नारको एक प्रदेश पण न्यून द्रव्योनो आहार करे छे तेओ वीचिद्रव्योनो आहार करे छे, अने जे नैरयिको परिपूर्ण द्रव्योनो आहार करे छे तेओ अवीचि द्रव्योनो आहार करे छे, ते हेतुथी हे गौतम ! एम कर्तुं छे के, 'नारको कीचि तथा अवीचि ए बन्ने प्रकारना द्रव्योनो आहार करे छे.' ए प्रमाणे यावद्-'वैमानिको आहार
करे छे' त्यां सुधी जाणवू.. ग्यारे इन्द्र भोग ३. [प्र०] हे भगवन् ! देवोनो इन्द्र अने देवोनो राजा शक्र ज्यारे भोगववा योग्य दिव्य [मनोज्ञ स्पर्शादिक भोगोने भोगववाने भोगवा इच्छे इच्छे त्यार ते तेने ते वखते केवी रीते भोगवे ? [उ०] हे गौतम ! त्यारे ते देवोनो इन्द्र अने देवोनो राजा शक एक मोटुं चक्रना जे, (वृत्तात्यारे ते शुं करे।
कार ) स्थान ििवकुर्वे छे, तेनी लंबाइ अने पहोळाइ एक लाख योजननी अने तेनी परिधि त्रण लाख [ सोळ हजार बसो सत्यावीश योजन त्रण क्रोश, एकसो अठ्यावीश धनुष अने कंइक अधिक साडातेर] आंगुल छे. ते चक्रना आकारवाळा स्थाननी उपर बरोबर सम अने रमणीय
२ * जेटला पुद्गलद्रव्यना समुदायथी संपूर्ण आहार थाय ते अवीचिद्रव्य, अने संपूर्ण आहारथी एकादिप्रदेश न्यून आहार ते वीचिद्रव्य.
३ अिहिं शक्रने सुधर्मासभा भोगस्थान छे, तो पण ते चक्रना आकारवालु स्थान विकुर्वे छे ते जिननी भाशातनानो त्याग करवा माटे छे. कारण के सुधर्मा सभामा माणवक स्तम्भने विषे डाभडामां जिनना अस्थिओ छे, अने तेनी पासे (मैथुननिमित्त) विषयोपभोग करवामा जिननी भाशातना थाय, माटे मैथुन निमित्तक विषयोपभोगमाटे चकना आकारवाळु बीजें स्थान विकुर्वे छे.-टीका.
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