Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust

View full book text
Previous | Next

Page 386
________________ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे शतक १४.-उद्देशक १०. ७. [प्र०] केवली गं भंते ! इमं रयणप्पभं पुढवि रयणप्पभापुढवीति जाणति, पासति ? [उ०] हंता जाणइ, पासइ । ८.[प्र०] जहा णं भंते ! केवली इमं रयणप्पमं पुढवि रयणप्पभापुढवीति जाणद, पासा, तहा णं सिद्धेवि इमं रयणप्पभं पुढवि रयणप्पभापुढवीति जाणइ, पासइ ? [उ०] हंता जाणइ, पासइ । ९. [प्र०] केवली णं भंते ! सक्करप्पभं पुढविं सक्करपभापुढवीति जाणइ, पासइ ? [उ०] एवं चेव, एवं जाव-अहेसत्तमा। १०. [प्र०] केवली णं भंते ! सोहम्मं कप्पं जाणइ, पासइ ? [उ०] हंता जाणइ, पासह एवं चेव, एवं ईसाणं, एवं जाव-अञ्चुयं । ११. [प्र०] केवली गं भंते ! गेवेजविमाणे गेवेज विमाणेत्ति जाणइ, पासइ ? [उ०] एवं चेव, एवं अणुत्तरविमाणे वि । १२. [प्र०] केवली णं भंते ! ईसिपब्भारं पुढवि ईसीपब्भारपुढवीति जाणइ, पासइ ? [उ०] एवं चेव । १३. [प्र०] केवली णं भंते ! परमाणुपोग्गलं परमाणुपोग्गलेत्ति जाणइ, पासद [उ०] एवं चेव, एवं दुपएसियं खंध, एवं जाव-प्र०] जहा णं भंते ! केवली अणंतपएसियं खंधं अणंतपएसिए खंधेत्ति जाणइ, पासइ तहा णं सिद्ध वि अणंतपएसियं जाव-पासह [उ०] हंता जाणइ, पासइ । 'सेवं भंते ! सेवं भंते ति । चोदसमसए दसमो उद्देसो समत्तो। समत्तं चोदसमं सयं। केवलशानी रत्नप्रभा ७. [प्र०] हे भगवन् ! केवली रत्नप्रभा पृथिवीने आ 'रत्नप्रभा पृथिवी' ए प्रमाणे जाणे अने देखे! [उ.] हा गौतम ! जाणे पृथिवीने जाणे अने देखे. सिद्ध पण रसप्रभा पृथिवीने जाणे! - केवली शर्कराप्रमाने जाणे। ८. [प्र०] हे भगवन् ! जेम केवलज्ञानी रत्नप्रभा पृथिवीने आ 'रत्नप्रभा' एम जाणे अने देखे तेम सिद्ध पण रत्नप्रभा पृथिवीने रत्नप्रभा'-एम जाणे अने देखे ? [उ०] हा, गौतम! जाणे अने देखे. ९. [प्र०] हे भगवन् ! केवलज्ञानी शर्कराप्रभा पृथिवीने 'शर्कराप्रभापृथिवी' ए प्रमाणे जाणे अने देखे ? [उ०] पूर्व प्रमाणे जाणवं. ए प्रमाणे यावत्-सातमी नरकपृथिवी सुधी जाणवू. १०. [प्र०] हे भगवन् ! केवली सौधर्मकल्पने 'सौधर्मकल्प' एम जाणे अने देखे ! [उ०] हा, गौतम ! जाणे अने देखे. ए प्रमाणे ईशान अने यावत् अच्युतकल्प सुधी जाणवू. ११. [प्र०] हे भगवन् ! केवलज्ञानी प्रैवेयकविमानने 'प्रैवेयकविमान' ए प्रमाणे जाणे अने देखे ! [उ०] पूर्व प्रमाणे जाणवू. ए प्रमाणे यावत्-अनुत्तरविमान संबन्धे पण जाणवू. केवली सौधर्मादि कल्पने जाणे? मैवेयकादिने जाणे? ईपत्याग्भारा पृथिवीने जाणे? १२. [प्र०] हे भगवन् ! केवलज्ञानी ईषत्प्राग्भारा पृथिवीने 'ईषत्प्राग्भारा पृथिवी' ए प्रमाणे जाणे अने देखे। उ०] ए प्रमाणे जाणवू. परमाणु पुदलने जाणे। १३. [प्र०] हे भगवन् ! केवलज्ञानी परमाणुपुद्गलने ‘परमाणुपुद्गल' ए प्रमाणे जाणे अने देखे ? [उ.] हा, गौतम ! जाणे अने देखे. ए प्रमाणे द्विप्रदेशिक स्कन्ध, अने यावत्-जेम-प्र०] हे भगवन् ! केवलज्ञानी अनन्तप्रदेशिक स्कन्धने 'अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध'एम जाणे अने देखे तेम सिद्ध पण अनन्तप्रदेशिक स्कन्धने यावत्-जुए ? [उ०] हा, जाणे अने जुए. 'हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे. चतुर्दश शतके दशम उद्देशक समाप्त. चतुर्दश शतक समाप्त. Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422