Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust

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Page 384
________________ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे शतक १४.-उद्देशक ९. १२. [प्र०] जे इमे भंते! अज्जचाए समणा निग्गंथा विहरंति, पते णं कस्स तेयलेस्सं बीतीवयंति [उ०] गोयमा! मासपरियाए समणे निग्गंथे वाणमंतराणं देवाणं तेयलेस्सं वीईवयति, दुमासपरियाए समणे निग्गंथे असुरिंदवज्जियाणं भवणवासीणं देवाणं तेयलेस्सं वीयीवयति, एवं एएणं अभिलावेणं तिमासपरियाए समणे निग्गंथे असुरकुमाराणं देवाणं तेयलेस्सं वीईवयइ, चउम्मासपरियाए समणे निग्गंथे गहगण-नफ्खत्त-तारारूवाणं जोतिसियाणं देवाणं तेयलेस्संपीतीवया, पंचमासपरियार यसमणे निग्गंथे चंदिम-सूरियाणं जोतिसिंदाणं जोतिसरायाणं तेयलेस्सं वीईवयइ, छमासपरियाप समणे निग्गंथे सोहम्मी-साणाणं देवाणं०, सत्तमासपरियाए समणे निग्गंथे सणंकुमार-माहिंदाणं देवाणं०, अट्टमासपरियाए संभलोग-लंतगाणं देवाणं तेय, नवमासपरियाए समणे निग्गंथे महासुक्क-सहस्साराणं देवाणं तेय०, दसमासपरियाए आणय-पाणय-आरण-युयाणं देवाणं०, एकारसमासपरियाए गेवेजगाणं देवाणं०, बारसमासपरियाए समणे निग्गंथे अणुत्तरोववाइयाणं देवाणं तेयलेस्सं धीयीवयति, तेण परं सुके सुकाभिजाए भविता तो पच्छा सिन्झति, जाव-अंतं करेति । 'सेवं भंते ! सेवं भंते'!त्ति जाव-विहरति । चोद्दसमसए नवमो उद्देसो समत्तो। श्रमणोना मुखनी १२. [प्र.] हे भगवन् ! जे आ श्रमण निग्रंथो आर्यपणे-पापकर्मरहितपणे विहरे छे, तेओ कोनी तेजोलेश्याने सुखने अतिक्रमे छे! अर्थात्-तेमनुं सुख कोनाथी चडीयातुं छे ! [उ०] हे गौतम! एक मासना दीक्षा पर्यायवाळो श्रमण निग्रंथ वानव्यंतर देवोनी तेजोलेश्याने-सुखने अतिक्रमे छे, (अर्थात्-वानव्यंतर देवो करतां अधिक सुखी छे.) बे मासना पर्यायवाळो श्रमण निग्रंथ असुरेंद्र सिवायना भवनवासी देवोनी तेजोलेश्याने-सुखने अतिक्रमे छे. ए प्रमाणे ए पाठ वडे त्रण मासना पर्यायवाळो श्रमण निर्ग्रन्थ असुरकुमार देवोनी तेजोलेश्याने अतिक्रमे छे, चार मासना पर्यायवाळो श्रमण निम्रन्थ ग्रहगण, नक्षत्र अने तारारूप ज्योतिषिक देवोनी तेजोलेश्याने अतिक्रमे छे, पांच मासना पर्यायवाळो श्रमण निर्मन्थ, ज्योतिप्कना इन्द्र, ज्योतिष्कना राजा चंद्र भने सूर्यनी तेजोलेश्याने अतिक्रमे छे, छ मासना पर्यायवाळो श्रमण निर्ग्रन्थ सौधर्म अने ईशानवासी देवोनी तेजोलेश्याने अतिक्रमे छे], सात मासना पर्यायवाळो श्रमण निम्रन्थ सनत्कुमार अने माहेन्द्र देवोनी, आठ मासना पर्यायवाळो श्रमण निर्ग्रन्थ ब्रह्मलोक अने लांतक देवोनी, नव मासना पर्यायवाळो श्रमण निर्ग्रन्थ महाशुक्र अने सहस्रार देवोनी तेजोलेश्याने अतिक्रमे छे, दश मासना पर्यायवाळो श्रमण निर्ग्रन्थ आनत, प्राणत, आरण अने अच्युत देवोनी तेजोलेश्याने अतिक्रमे छे, भगीयार मासना पर्यायवाळो श्रमण निम्रन्थ अवेयक देवोनी अने बार मासना पर्यायवाळो श्रमण निम्रन्थ अनुत्तरोपपातिक देवोनी तेजोलेश्याने अतिक्रमे छे. त्यार बाद शुद्ध अने शुद्धतर परिणामवाळो थइने पछी सिद्ध थाय छे, यावत्-सर्व दुःखोनो अन्त करे छे. हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् । ते एमज छे'-एम कही यावद् विहरे छे. चतुर्दश शतके नवम उद्देशक समाप्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

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