Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust

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Page 369
________________ पंचमो उद्देसो। १. [प्र० नेरइए णं भंते ! अगणिकायस्स मज्झमझेणं वीइवरजा ? [10] गोयमा! अत्थेगतिए थीइवएज्जा, अत्थेगतिए नो वीइवएजा। [प्र०] से केणटेणं भंते! एवं धुञ्चइ- 'अत्थेगइए वीइवएज्जा, अत्थेगतिए नो वीइवरजा [उ.] गोयमा ! नेरइया दुविहा पण्णत्ता, तंजहा-विग्गहगतिसमावनगा य अविग्गहगतिसमावनगा य, तत्थ णं जे से विग्गहगतिसमावन्नए नेरतिए से णं अगणिकायस्स मझमज्झेणं वीइवएजा । [प्र०] सेणं तत्थ झियाएज्जा ? [उ०] णो तिणद्वे समढे, नो खलु तत्थ सत्थं कम । तत्थ णं जे से अविग्गहगइसमावनए नेरपए से णं अगणिकायस्स मझमझेणं णो घीइवएज्जा, से तेणट्रेणं जाव-'नो वीइवएजा'। २. [प्र०] असुरकुमारे णं भंते ! अगणिकायस्स पुच्छा । [उ०] गोयमा! अत्थेगतिए वीइवएज्जा, अत्थेगतिए नो वीइवएजा। [प्र०] से केण?णं जाव-नो वीइवएजा? [उ०] गोयमा ! असुरकुमारा दुविहा पण्णता, तंजहा-विग्गहगइसमावनगा य अविग्गहगइसमावनगा य । तत्थ णं जे से विग्गहगइसमावन्नए असुरकुमारे से णं-एवं जहेव नेरतिए जाव-'कमतिः । तत्थ गंजे से अविग्गहगइसमावन्नए असुरकुमारे से गं अत्यंगतिए अगणिकायस्स मझमझेणं वीतीवएजा, अत्यंगतिए नो वीए पंचम उद्देशक. १. [प्र०] हे भगवन् ! नारक अग्निकायना मध्यभागमां थईने जाय ? [उ०] हे गौतम कोइ एक नारक जाय अने कोइ एक नारक न नारक अनिकायना जाय. [प्र.] ए प्रमाणे आप शा हेतुथी कहो छो के, 'कोइ एक नारक जाय अने कोइ एक नारक न जाय' ! [उ०] हे गौतम ! नैरयिको मध्यभागमा गमन करे। बे प्रकारना कह्या छे, ते आ प्रमाणे-विग्रहगतिने प्राप्त थयेला, अने अविग्रहगतिसमापन्न-उत्पत्तिक्षेत्रने प्राप्त थयेला. तेमां जे विग्रहगतिने प्राप्त थयेल नारक छे ते अग्निकायना मध्यमां थईने जाय. [प्र०] ते त्या बळे ? [उ०] आ अर्थ यथार्थ नथी, केमके तेने *अग्निरूप शस्त्र असर करतुं नथी. तेमां जे अिविग्रहगतिने प्राप्त थयेल नारक छे ते अग्निकायनी मध्यमा थईने न जाय. माटे हे गौतम ! ते हेतुथी एम कडं के, 'कोइ एक नारक जाय अने कोइ एक न जाय" २. [प्र०] हे भगवन् ! असुरकुमारो अग्निकायनी वच्चे थईने जाय?-ए प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! कोइ एक ( असुरकुमार ) जाय असुरकुमारो. अने कोइ एक न जाय. [प्र०] हे भगवन् ! एम आप शा हेतुथी कहो छो के, 'कोइ एक जाय अने कोइ एक न जाय ? [उ०] हे गौतम! असुरकुमारो बे प्रकारना कह्या छे, ते आ प्रमाणे-विग्रहगतिने प्राप्त थयेला अने अविग्रहगतिने प्राप्त थयेला. तेमा जे विग्रहगतिने प्राप्त असुरकुमारो छे-इत्यादि बधुं नारकनी पेठे जाणवू. यावत्-'तेने (अग्नि वगेरे) शस्त्र असर करतुं नथी.' तेमां जे अविग्रहगति प्राप्त असुरकुमारो छे तेमांना कोइ एक अग्निनी वच्चे थईने जाय अने कोइ एक न जाय. [प्र०] जे अग्नि वच्चे थईने जाय ते त्यां बळे ! [उ०] ए १. * विप्रहगतिने प्राप्त थयेलो जीव कार्मणशरीरयुक्त होवाथी अने ते सूक्ष्म होवाथी तेने अमिवगेरे शस्त्र असर करतुं नथी.-टीका. + अविग्रहगतिसमापन्न-उत्पत्ति क्षेत्रने प्राप्त थयेलो नारक समजवो, 'परन्तु ऋजुगतिने प्राप्त थयेलो'-ए अर्थ अहिं विवक्षित नथी, कारण के तेनो अहिं अधिकार नथी, उत्पत्तिक्षेत्रने प्राप्त थयेलो नारक अग्निकाय मध्ये थईने जतो नथी, केमके नारक क्षेत्रने विषे बादर अग्निकायनो अभाव छ, भने मनु'ध्यक्षेत्रने विषेज बादर अग्निकायनो सद्भाव छ.-टीका. २१ विग्रहगति प्राप्त असुरकुमार विग्रहगति प्राप्त नारकनी पेठे जाणवो, भविग्रहगति प्राप्त-उत्पत्तिक्षेत्रने प्राप्त थयेल असुरकुमार, के जे मनुष्यलोकर्मा आवे ते अमिनी बच्चे थईने जाय, जे (मनुष्यलोकमां) न आवे ते अग्निकायनी व थईने न जाय, जे बच्चे थईने जाय छे ते पण बळे नहि, कारण के वेक्रिय शरीर सूक्ष्म छ भने तेनी गति अति शीघ्र छे.-टीका. Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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