Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust

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Page 367
________________ उत्थो उद्देसो । १. [प्र० ] एस णं भंते 1 पोग्गले तीतमर्णतं सासयं समयं लुक्खी, समयं अलुक्खी, समयं लुक्खी वा अलुक्खी वा १ पुचि णं करणेणं अणेगवन्नं अणेगरुवं परिणामं परिणमति ? अह से परिणामे निज्जिने भवति, तभ पच्छा पगवने पगरु सिया ? [30] हंता गोयमा ! एस णं पोग्गले तीतं तं चैव जाव एगरुवे सिया । २. [प्र० ] स णं भंते ! पोग्गले पडुप्पन्नं सासयं समयं ० १ [अ०] एवं चेव, एवं अणागयमणंतं पि । ३. [प्र० ] एस णं भंते! संधे तीतमनंतं० [४०] एवं चेच, संधे वि जहा पोले । ४. [प्र०] एस णं भंते! जीये तीतमनंतं सासयं समयं दुक्खी, समयं अनुपखी, समयं दुफ्ती या अनुषयी या पुि aणं करणेणं अणेगभावं अणेगभूयं परिणामं परिणमइ ? अह से वेयणिजे निजिन्ने भवति, तभ पच्छा एगभावे एगभूप सिया १ [४०] हंता गोषमा ! एस णं जीये जान एगभूष सिया, एवं पप्पनं सासयं समयं पर्व भणागयमणंतं सासयं समयं । चतुर्थ उद्देशक. पुत्रक परिणाम. अतीतकालने विषे एक समयमा पुद् , १. [प्र० ] हे भगवन् ! आ पुद्गल [ परमाणु के स्कन्ध] अनन्त - अपरिमित अने शाश्वत अतीतकाळने विषे एक समय सुधी रुक्षस्पर्शयाओ एक समय सूची अरुक्ष स्निग्धस्पर्शवालये, तथा एक समय सुधी रुक्ष अने झिग्ध बने प्रकारना स्पर्शचाये हतो! अने पूर्वे करण-प्रयोगकरण अने विस्रसाकरणधी अनेक वर्णवाळा अने [अनेक गन्ध, रस, स्पर्श अने संस्थानना मेदथी] अनेकरूपवाळा परिणामरूपे गरूनो परिणाम. परिणत भयो हतो [परमाणुनो भिन्न भिन्न समये अनेक वर्णादिरूपे परिणाम थाय छे, अने स्कन्धनो एकसमये अनेक वर्णादिरूपे परिणाम थाय छे.] हवे ते अनेक वर्णादिपरिणाम क्षीण थाय त्यार पछी ते पुद्गल एकवर्णवाळो अने एकरूपवाळो हतो ! [उ०] हा, गौतम ! आ पुद्गल अतीतकालने विषे- इत्यादि यावत् - ' एकरूपवाळो हतो' त्यां सुधी समग्र पाठ कहेवो. २. [प्र० ] हे भगवन् । आ पुल (परमाणु के स्कन्ध) शाचतं वर्तमान काळने विषे ( एक समय सुधी रूक्षस्पर्शनाळ, निग्धस्पर्शबाळो, तथा स्निग्ध अने रूक्ष बन्ने स्पर्शवाळो होय ? अने प्रयोग अने विस्रसाथी अनेक वर्णादिरूपे परिणत थाय ? ते परिणामना क्षीण थया बाद एकवर्णवाळो अने एकरूपवाळो होय ! ) [ उ०] पूर्वप्रमाणे उत्तर जाणवो, ए प्रमाणे अनागतकाल संबन्धे पण जाणवुं. २. [अ०] हे भगवन्! अनन्त अपरिमित अने शाश्वत अतीतकालने विषे पुद्गलस्कन्ध (एक समय सुधी रूक्षस्पर्शवा खिग्धस्पर्शवाळो तथा स्निग्ध अने रूक्ष-ए बन्ने स्पर्शवाळो हतो ! अने अनेकवर्ण अने अनेकरूपवाळा परिणामरूपे परिणत थयो हतो ! पछी ते परिणामना क्षीण थवाथी तेनो एकवर्णवाळो अने एकरूपवाळो परिणाम थयो हतो ) [ उ०] ए प्रमाणे जेम पुद्गलसंबन्धे कं म स्वन्यसंबन्धे पण जाणवु. ४. [ प्र० ] हे भगवन् ! आ जीव अनन्त - अपरिमित अने शाश्वत अतातकाळन विषे एक समय ( दुःखना हेतुथी ) दुःखी, एक समय (सुखना हेतुथी ) अदुःखी सुखी, तथा "एक समय [सुख अने दुःखना हेतुथी ] दुःखी के सुखी हतो! अने पूर्वे करणथी - कालस्वभावादि कारणवडे शुभाशुभकर्मबंधना हेतुभूत क्रियाथी - अनेक प्रकारना सुखिपणुं अने दुःखिपणुं - इत्यादि भाववाळा, अने अनेकरूपवाळा परिणामरूपे परिणत भयो हतो खारपछी वेदना लायक ज्ञानावरणादि कर्मनी निर्जरा क्या बाद जीव एकमावयालो अने एकरूपवाळो हतो! [उ०] हा, गौतम ! आ जीव यावत्-एक रूपवाळो हतो. ए प्रमाणे शाश्वत एवा वर्तमानसमयसंबन्धे तथा अनन्त अने शाश्वत भविष्यकाळ संबन्धे पण जाणवं. सुख भने दुःखना कारणो एकसमये विद्यमान होय छे, परन्तु सुख अने दुःखनुं वेदन एकसमये होतुं नथी, कारण के जीवने एकसमये एकज उपयोग होय छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only वर्तमानकाले पुद्गल परिणाम. अनागतकाल. पुद्गलस्कन्ध. अतीत, वर्तमान भने अनागतकाले जी परिणाम. www.jainelibrary.org/

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