Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
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परंपरनिर्गत.
अनन्तर परंपरानिर्गत.
'अनन्तरखेदोप
पन-बगेरे.
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श्रीरायचन्द्र - जिनागमसंग्रहे --
शतक १४ - उद्देशक १०
११. [अ०] परंपरनिग्गया णं भंते! नेरइया किं नेरइयाउयं०- पुच्छा। [30] गोयमा ! नेरहयाउयं पिपकरेंति, जावदेवायं पि करेंति ।
३४२
१२. [प्र०] अणंतरपरंपरअणिग्गया णं भंते! नेरइया - पुच्छा। [30] गोयमा ! नो नेरहयाज्यं पकरेंति, जाव-नो देवाउयं पकरेंति, एवं निरवसेसं जाव - वेमाणिया ।
१३. [प्र०] नेरइयां णं भंते! किं अणंतरखेदोववनगा, परंपरखेदोषवनगा, अणंतरपरंपरखेदाणुववन्नगा ? [ उ०] गोयमा ! नेरइया०, एवं एएणं अभिलावेणं तं चेव चत्तारि दंडगा भाणियष्वा । 'सेवं भंते ! सेवं भंते ! 'त्ति जाव - विरह ।
'
चोदसमसए पढमो उद्देसो समतो ।
११. [प्र० ] हे भगवन् ! परंपरनिर्गत नारको शुं नारकायुष बांधे - इत्यादि प्रश्न. [ उ०] हे गौतम । तेओ नारकायुष पण बांध, यावत्-देवायुष पण बांधे.
१२. [प्र० ] हे भगवन् ! अनन्तरपरंपरानिर्गत नारको शुं नारकायुष बांधे ? - इत्यादि प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! तेओ नरकायुष न बांधे, यांव-देवायुष पण न बांध. [कारण के अनन्तरपरंपरानिर्गत नारको विग्रहगतिने विषे होय छे अने त्यां आयुषनो बन्ध तो नथी.] एं प्रमाणे समग्र यावदू-वैमानिको सुघी जाणवु.
१३. [प्र०] हे भगवन् ! नैरयिको शुं अनन्तरखेदोपपन्न ( समयादिना अन्तररहित - प्रथम समये जेओनो दुःखयुक्त उत्पाद छे एवा ) छे, परंपरखेदोपपन्न ( जेओना खेदयुक्त उत्पादमां बे-त्रण इत्यादि समयो थयेला छे एवा ) छे के अनन्तरपरंपरखेदानुपपन्न ( जेओनी उत्पत्ति अनन्तर - तुरतज अने परम्पर खेदवडे नथी तेवा ) छे ? [उ०] हे गौतम! ए नैरयिको अनन्तरखेदोपपन्न - इत्यादि त्रणे प्रकारना छे. प्रमाणे अभिलापथी पूर्व प्रमाणे *चार दंडको कहेवा 'हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे,' एम कही [भगवान् गौतम] यावदू - विहरे छे.
चतुर्दशशतके प्रथम उद्देशक समाप्त.
१३*१ खेदोपपन दंडक, २ खेदोपपन्नने आश्रयी आयुषना बन्धनो दंडक, ३ खेदनिर्गतदंडक, भने ४ खेदनिर्गतने आधयी आयुषना बंधनो दंडक - ए प्रमाणे चार दंडक जाणवा.
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