Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
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शतक १४.-उद्देशक १.
भगवत्सुधर्मवामिप्रणीत भगवतीसूत्र.
समयोववनगा ते ण नेरइया परंपरोववनगा, जेणं नेरइयां विग्गहगइसमावनगा ते णं नैरइया अणंतरपरंपरअणुववन्नगा, से तेणटेणं जाव-अणुववन्नगा वि, एवं निरंतरं जाव-वेमाणिया।
६. [प्र०] अणंतरोववन्नगा णं भंते ! नेरइया किं नेरइयाउयं पकरेंति, तिरिक्ख०, मणुस्स०, देवाउयं पकरेंति ? [10] गोयमा ! नो नेरइयाउयं पकरेंति, जाव-नो देवाउयं पकरेंति ।
७. [प्र०] परंपरोववन्नगा णं भंते ! नेरइया किं नेरइयाउयं पकरेंति, जाव-देवाउयं पकरेंति ? [उ०] गोयमा ! नो नेरइयाउयं पकरेंति, तिरिक्खजोणियाउयं पि पकरेंति, मणुस्साउयं पि पकरेंति, नो देवाउयं पकरेंति ।
. .प्र. अणंतरपरंपरअणुववनगा णं भंते ! नेरइया कि नेरइयाउयं पकरेंति-पुच्छा । [उ.] नो नेरदयाउयं पकरेंति, जाव-नो देवाउयं पकरेन्ति, एवं जाव-वेमाणिया, नवरं पंचिंदियतिरिक्खजोणिया मणुस्सा य परंपरोववनगा चत्तारि वि आउयाई पकरेंति, सेसं तं चेव ।
९. [प्र०] नेरइया णं भंते ! किं अणंतरनिग्गया, परंपरनिग्गया, अणंतरपरंपरअनिग्गया ? [उ०] गोयमा! नेण्या णं अणंतरनिग्गया वि, जाव-अणंतरपरंपरनिग्गया वि। [प्र०] से केणटेणं जाव-अणिग्गया वि?. [उ०] गोयमा! जे णं नेरइया पढमसमयनिग्गया ते णं नेरइया अणंतरनिग्गया, जे णं नेरइया अपढमसमयनिग्गया ते णं नेरइया परंपरनिग्गया, जे णं नेरइया विग्गहगतिसमावन्नगा ते ण नेरइया अणंतरपरंपरअणिग्गया, से तेणटेणं गोयमा! जाव-अणिग्गया वि, एवं जाववेमाणिया। . १० [प्र०] अणंतरनिग्गया णं भंते ! नेरइया किं नेरइयाउयं पकरेंति, जाव-देवाउयं पकरेंति ? [उ०] गोयमा ! नो नेरइयाउयं पकरेंति, जाव-नो देवाउयं पकरेंति ।
माटे ते हेतुथी हे गौतम ! नैरयिको पूर्व प्रमाणे यावत्- 'अनन्तरपरम्परानुपपन्न छे-'त्यां सुधी कहेवू. ए प्रमाणे निरन्तर यावत्-वैमानिको सुधी कहे. ६. [प्र०] हे भगवन् ! अनन्तरोपपन्न (प्रथम समये उत्पन्न थयेला ) नैरयिको शुं नैरयिकर्नु आयुष बांधे, तिर्यचर्नु आयुष बांधे, अनन्तरोपपन्न ना
रको पाश्रयी मामनुष्यनुं आयुष बांधे, के देवनुं आयुष बांधे ? [उ०] हे गौतम ! तेओ नैरयिकनुं आयुष न बांधे, यावद्-देवतुं आयुष पण न बिधि.
युपमो बन्ध. . ७. [प्र०] हे भगवन् ! परंपरोपपन्न नैरयिको शुं नैरयिकनुं आयुष बांधे, यावद-देवतुं आयुष बांधे? उ०] हे गौतम! तेओ परंपरोपपन्न नैरमि
" कोने गायुपनो वन्ध. नैरयिक, आयुष बांधता नथी, तिथंचनुं आयुष बांधे छे, मनुष्यनुं आयुष पण बांधे छे, देवआयुष बांधता नथी.
८. [प्र०] हे भगवन् ! अनन्तरपरंपरानुपपन्न (विग्रहगतिने प्राप्त थयेला ) नैरयिको शुं नैरयिक- आयुष बांधे-इत्यादि प्रश्न. [उ०] अनन्तरपरंपरानु हे गौतम ! तेओ नैरयिक- आयुष न बांधे, यावत्-देवायुष पण न बांधे. ए प्रमाणे यावद् वैमानिको सुधी जाणवु. परन्तु एटलो विशेष ।
पपज्ञ नैरयिको. 'छे के परंपरोपपन्न पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिको अने मनुष्यो चारे प्रकारना आयुष बांधे छे. बाकी बधुं पूर्व प्रमाणे कहेवू. .
९. [प्र०] हे भगवन् ! शुं नैरयिको अनन्तरनिर्गत (नरकादिथी नीकळी भवान्तर प्राप्त थयेला जेओने प्रथम समय वर्ते छे, समया- अनन्तरनिर्गतादि दिना अन्तरनो अभाव छे)-परंपरनिर्गत (नरकादिथी नीकळी भवान्तरने प्राप्त थयेला जेओने बे-त्रण-इत्यादि समयोनुं अन्तर छे)
नैरयिको. अने अनन्तर-परम्परानिर्गत (जेओ नरकथी नीकळी विग्रहगतिमां वर्तता होय छे, अने ज्यां सुधी उत्पत्ति क्षेत्रने प्राप्त न थाय त्यांसुधी ते अनन्तरभावे अने परंपरभावे अनिर्गत एवा) छे ? [उ०] हे गौतम! नारको अनन्तरनिर्गत पण होय छे. यावत्-अनन्तरपरम्परानिर्गत पण होय छे. [प्र०] हे भगवन् ! ए प्रमाणे शा हेतुथी कहो छो के यावत्-'नारको अनन्तरपरम्परानिर्गत छे' ! [उ.] हे गौतम । जे नैरयिको नर- नारको अनन्तरकथी प्रथम समये नीकळेला छे तेओ अनन्तरनिर्गत, जेओ प्रथमसमय व्यतिरिक्त द्वितीयादि समयथी निकळेला छे तेओ परंपर
-निर्गतादि फेम
पर कहेवाय । निर्गत, अने जेओ विग्रहगतिने प्राप्त थयेला छे तेओ अनन्तरपरंपरानिर्गत छे. माटे ते हेतुथी हे गौतम! एम कहेवाय छे के नैरयिको यावत्-अनन्तरपरम्परानिर्गत छे. ए प्रमाणे यावद्-वैमानिको सुधी [ए त्रण त्रण आलापको] कहेवा. १०. [प्र०] हे भगवन् ! अनन्तरनिर्गत नारको शुं नरकायुष बांधे, के यावद्-देवायुष बांधे, [उ०] हे गौतम ! तेओ नारकायुष भनन्तरनिर्गता
दिने भानयी न बांधे, यावत्-देवायुष न बांधे.
भायुषनो बन्ध ५* जेओनी अनन्तर भने परम्पर-ए बन्ने प्रकारनी उत्पत्ति नथी एवा विग्रहगतिमा वर्तमान जीवो 'अनन्तरपरंपरानुपपन्न' कहेवाय छ, केमके मनन्तर उत्पत्ति भवना प्रथमसमये होय छे, परंपरोत्पत्ति द्वितीयादि समये होय छे, अने विप्रहगतिमा बन्ने प्रकारनी उत्पत्तिनो अभाव छे.
६ अहिं अनन्तरोपपन अने अनन्तरपरंपरानुपपन्न नैरयिको चारे प्रकारना आयुषनो बन्ध करता नथी, केमके ते अवस्थामा तेवा प्रकारना मध्यवसायना अभावे सर्व जीवोने आयुषनो बन्ध थतो नथी. पोताना आयुषना तृतीय भागादि बाकी होय त्यारे आयुषनो बन्ध थाय छे; तेथी परंपरोपपण नैरयिको पोताना आयुषना छ मास बाकी होय त्यारे अने मतान्तरे उत्कृष्टथी छ मास अने जघन्यथी अन्तर्मुहूर्त बाकी होय त्यारे भवनिमित्तक तिर्यच अने मनुष्यायुष बांधे छे, ते विशवाय देव भने नारकना आयुषनो बन्ध करता नथी.-टीका.
IN हवा.
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