Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
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पा. भी उगमसागर तर पान माल 2 महापीर पोन वायना पेपर
शतक १३.-उद्देशक १.
भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र.
.. ९. [प्र०] पालुयर्पमाए णं पुच्छा । [उ०] गोयमा ! पन्नरस निरयावाससयसहस्सा पन्नत्ता, सेसं जहा सकरप्पमाए, णाणत्तं लेसासु, लेसाओ जहा पढमसप।
१०. [प्र०] पंकप्पभाए णं पुच्छा । [उ०] गोयमा ! दस निरयावाससयसहस्सा पनत्चा, एवं जहा सकरप्पभाए, नपर मोहिनाणी ओहिदसणी य न उच्चदंति, सेसं तं चेव।
११. [३०] धूमप्पभाए णं पुच्छा । [उ०] गोयमा ! तिन्नि निरयावाससयसहस्सा, एवं जहा पंकप्पभाए।
१२. [प्र०] तमाए णं भंते ! पुढचीए केवतिया निरयावास० पुच्छा । [उ०] गोयमा ! एगे पंचूणे निरयावाससयसहस्से पण्णत्ते । सेसं जहा पंकप्पभाए।
१३. प्रि०ा अहेसत्तमाए णं भंते | पुढवीए कति अणुत्तरा महतिमहालया महानिरया पन्नत्ता [उ.] गोयमा! पंच अणुत्तरा जाव-अपइट्टाणे। प्र०] ते ण मंते! किं संखेजवित्थडा, असंखेजवित्थडा? [उ.] गोयमा संखेजवित्थडेय असं. खेजवित्थडा य। . १४. [प्र०] अहेसत्तमाए णं भंते ! पुढवीए पंचसु अणुत्तरेसु महतिमहालया० जाव-महानिरएसु संख्नेजवित्थडे नरए एगसमएणं केवतिया० १ [उ०] एवं जहा पंकप्पभाए, णवरं तिसु नाणेसु न उववजंति, न उष्वदृति, पन्नत्ता एसु तहेव अस्थि, एवं असंखेजवित्थडेसु वि, नवरं असंखेजा भाणियष्वा । . १५. [प्र०] इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु संखेजवित्थडेसु नरएसु किं सम्म. हिट्ठी नेरतिया उववजंति, मिच्छदिट्ठी नेरतिया उववजंति, सम्मामिच्छदिट्ठी नेरतिया उववजंति ? [उ०] गोयमा सम्मदिट्ठी वि नेरक्या उववजंति, मिच्छादिट्ठी वि नेरइया उववजंति, नो सम्मामिच्छदिट्टी नेरच्या उववजंति ।
९. [प्र०] वालुकाप्रभा संबन्धे प्रश्न. [उ०] हे गौतम! पंदरलाख नरकावासो कह्या छे, बाकी बधुं शर्कराप्रभानी पेठे जाणq. पण वालुकाप्रभार्मा लेश्याने विषे *विशेषता छे, अने ते प्रिथम शतकमा कह्या प्रमाणे जाणवी.
नरकावासो. १०. [प्र०] हे भगवन् ! पंकप्रभा नरकने विषे केटला नरकावासो कह्या छे-इत्यादि प्रश्न. [उ०] हे गौतम!. दश लाख नरका- पंकप्रमामा वासो कह्या छे. ए प्रमाणे जेम शर्कराप्रभा संबन्धे कहां, तेम अहिं पण जाणवं. परन्तु अहिंथी अवधिज्ञानी अने अवधिदर्शनी च्यवता नथी,
नरकावासो.
नरम बाकी बधुं पूर्वनी पेठे जाणवू. ११. [प्र०] धूमप्रभा संबन्धे प्रश्न. [उ०] हे गौतम! त्रण लाख नरकावासो कह्या छे, ए प्रमाणे जेम पंकप्रभा संबन्धे कयुं छे।
धूमप्रभामा तेम अहिं जाणवू.
नरकावासो. १२. [प्र०] हे भगवन् ! तमा नरकपृथिवीने विषे केटला नरकावासो कह्या छे?-इत्यादि प्रश्न. [उ०] हे गौतम! पांच न्यून एक तमःप्रभामा लाख नरकावासो कह्या छे. बाकी बधुं पंकप्रभा पेठे जाणवू.
नरकाबासो, १३. [प्र०] हे भगवन्! अधःसप्तम नरक पृथिवीने विषे अनुत्तर अने अत्यंत मोटा एवा केटला महानरकावासो कडा छे! [उ०]
सप्तम नरकमा
नरकावासो हे गौतम! अनुत्तर अने मोटा पांच नरकावासो कह्या छे. यावत्-[१ काल, २ महाकाल, ३ रोर, ४ महारोर, अने] ५ अप्रतिष्ठान. [प्र०] हे भगवन् ! ते नरकावासो अ॒ संख्यात योजनना विस्तारवाळा छे के असंख्यात योजनना विस्तारवाळा छे ! [उ०] हे गौतम! वच्चेनो अप्रतिष्ठान नरकावास संख्यातयोजनना विस्तारवाळो छे अने बीजा असंख्यातयोजनना विस्तारवाळा छे..
१४. [प्र०] हे भगवन्! अधःसप्तम नरकपृथिवीना पांच अनुत्तर अने अत्यंत मोटा यावत्-महानरकावासोमांना संख्यात योजन विस्तारवाळा नरकावासने विषे एक समये केटला नारको उत्पन्न थाय-इत्यादि प्रश्न. [उ०] जेम पंकप्रभाने विषे कयुं तेम अहिं जाणवू परंतु एटलो विशेष छे के अहिं त्रण ज्ञानसहित उत्पन्न थता नथी, [केमके सम्यक्त्वभ्रष्ट ज अहिं उपजे छे.] तेम च्यवता पण नथी. तो पण ए पांच नरकावासोमा ए प्रमाणे-प्रथमादि नरकपृथिवीनी जेम त्रण ज्ञानवाळा होय छे. ए प्रमाणे असंख्यातायोजनविस्तारवाळा नरकावासोने विषे पण जाणवू, परन्तु त्यां 'असंख्याता' एवो पाठ कहेवो.
१५. [अ०] हे भगवन् ! आ रत्नप्रभापृथिवीना त्रीश लाख नरकावासोमांना संख्याता योजननिस्तारवाळा नरकावासोने विषे शुं सम्यान रत्नप्रभार्मा ग्दृष्टि नारको उत्पन्न थाय, मिथ्यादृष्टि नारको उत्पन्न थाय के सम्यग्मिध्यादृष्टि नारको उत्पन्न थाय? [उ०] हे गौतम! सम्यग्दृष्टि पण नारको
संख्यातायोजन
विस्तारवाल उपजे, मिथ्यादृष्टि पण नारको उपजे, परन्तु सम्यग्मिध्यादृष्टि नारको उत्पन्न थता नथी.
नरकावासोर्मा
- सम्यग्दृष्टि बगेरेनो ९.प्रथमनी बे नरक पृथिवीमां कापोतलेल्या होय छेत्रीजी नरकपृथिवीमा मिश्र-कापोत अने. नील बन्ने लेश्या छे. चतुर्थं पृथिवीमो नीलळेश्या वाद. छ, पांचमी पृथिवीमा मिश्र-कृष्ण भने नील बन्ने लेश्या छे, छठी पृथिवीमां कृष्णलेश्या छे अने सातमी नरकपृथिवीमा परमकृष्णलेश्या छे.
+ भग० ख०१२०१3०२ पृ.१०४. जुओ प्रज्ञा लेश्या पद १७ उ० २५०३४३-२,
१. भवधिज्ञानी अने अवधिदर्शनी प्रायः तीर्थकर ज होय भने चोथी आदि नरकपृथिवीथी नीकळेला तीर्थकर न थाय माटे 'अहिथी अवधिज्ञानी
अने अवधिदर्शनी च्यवता नथी' एम कयुं छे-टीका.. _JainEducation International३९ भ. सू.
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