Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
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सत्तमो उद्देसो। १. [प्र०] रायगिहे जाव-एवं पयासी-आया भंते ! भासा, अन्ना भासा ! [उ०] गोयमा ! नो आया भासा, अन्ना मासा।.
२. [प्र०] रूवि भंते ! भासा, अरुवि भासा ? [उ०] गोयमा ! रुवि भासा, नो अरूवि भासा । ३. [प्र०] सश्चित्ता भंते ! भासा, अचित्ता भासा ? [उ०] गोयमा ! नो सञ्चित्ता भासा, अचित्ता भासा । ४. [प्र०] जीवा भंते ! भासा, अजीवा भासा ? [उ०] गोयमा! नो जीवा भासा, अजीवा भासा । ५. [प्र०] जीवाणं भंते ! भासा, अजीवाणं भासा ! [उ०] गोयमा ! जीवाणं भासा, नो अजीवाणं भासा ।
६. [प्र०] पुचि भंते ! भासा, भासिजमाणी भासा, भासासमयवीतिकता भासा ? [उ०] गोयमा! नो पुष्विं मासा, भासिजमाणी भासा, जो भासासमयवीतिकता भासा ।
. ७. [प्र०] पुचि भंते ! भासा भिज्जति, भासिजमाणी भासा मिजति, भासासमयवीतिकता भासा मिजति ! [उ०] गोयमा! नो पुyि मासा भिजति, भासिजमाणी भासा मिजा, नो भासासमयवीतिकता भासा भिजति ।
भाषा आत्मस्वरूप
सप्तम उद्देशक. १. [प्र०] राजगृह नगरमां भगवान् गौतम यावत्-आ प्रमाणे बोल्या के, हे भगवन् ! "भाषा ए आत्मा-जीवखरूप ले के तेथी , अन्य छे! [उ०] हे गौतम ! भाषा ए आत्मा नथी, पण तेथी अन्य (पुद्गलखरूप) भाषा छे. रूपी के अरूपी
२. [प्र०] हे भगवन् ! भाषा रूपी-रूपवाळी छे के अरूपी-रूप विनानी छ ? [उ०] हे गौतम! भाषा (पुद्गलमय होवाथी)
रूपी छे, पण रूप विनानी नथी. सचित्त के अचित्त ३.प्र०] हे भगवन् ! भाषा सचित्त-सजीव छे के अचित्त-अजीव छ ? [उ०] हे गौतम ! भाषा सचित्त नथी, पण अचित्त छे. श्रीवस्वरूप के भजी- ४. [प्र०] हे भगवन् ! भाषा जीवरूप-प्राणधारणरूप छे के अजीवस्वरूप छे ? [उ०] हे गौतम ! भाषा जीवरूप नथी, पण
वस्वरूप
अजीवरूप छे.
जीवोने भाषा के . ५. [प्र०] हे भगवन् ! जीवोने भाषा होय छे के अजीवोने भाषा होय छे ? [उ०] हे गौतम! जीवोने भाषा होय छे, पण अजी
अजीवोने भाषा बोने भाषा नथी होती. भाषा क्यारे कहेवायो ६. प्र०] हे भगवन् ! शुं बोलाया] पूर्वे भाषा कहेवाय, बोलाती होय त्यारे भाषा कहेवाय, के बोलाया पछी भाषा कहेवाय ।
[उ.] हे गौतम! बोलाया पहेला भाषा न कहेवाय, तेमज बोलाया पछी पण भाषा न कहेवाय, पण बोलाती होय त्यारे भाषा कहेवाय. भाषा क्यारे मेदाय? ७. [प्र०] हे भगवन् ! शुं बोलाया पहेला भाषा मेदाय, बोलाती भाषा मेदाय, के बोलाया पछी भाषा मेदाय ! [उ०] हे गौतम !
बोलाया पहेला भाषा न भेदाय, तेमज बोलाया पछी भाषा न मैदाय, पण बोलाती होय त्यारे भाषा मेदाय.
१*जीवथी प्रयोजाय छे, जीवना बन्ध अने मोक्षर्नु कारण थाय छे माटे जीवनो धर्म होवाथी भाषा 'आत्मा-जीव'-एम कही शकाय 1 अथवा भाषा जीवखरूप नथी-एम पण कहेवाय ! केमके ते श्रोत्रेन्द्रियप्राय होवाथी मूर्तपणावडे जीव करतां भिन्न छे, माटे शंकाथी आ प्रश्न थाय छे. उत्तर-भाषा पुद्गलमय होवाथी ते भात्मस्वरूप नथी.-टीका.
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