Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
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३२७
शतक १३.-उद्देशक ६.
भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र. जाव-विहरति । तए णं वीतीभये नगरे सिंघाडग० जाव-परिसा पजुवासइ । तए णं से उदायणे राया इमीसे कहाए लद्धडे समाणे हट्टतुट्ट० कोडुंबियपुरिसे सद्दावेति, को०२-त्ता एवं वयासी-"खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! वीयीभयं नगरं सम्मितरबाहिरियं जहा कृणिओ उववाइए जाव-'पजुवासति'। पभावतीपामोक्खाओ देवीओ तहेव जाव-पजुवासंति । धम्मकहा। तए णं से उदायणे राया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मं सोचा निसम्म हट्ट-तुट्टे उट्ठाए उढेइ, उट्ठा० २-ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो जाव-नमंसित्ता एवं वयासी-'एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते ! जाव-से जहेयं तुझे वदहति कट्ट जं नवरं देवाणुप्पिया! अभीयिकुमारं रजे ठावेमि, तए णं अहं देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता जाव-पश्चयामि । 'अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंधं । तए णं से उदायणे राया समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ते समाणे हट-तुटे समणं भगवं महावीरं वंदति नमंसति, वंदित्ता.नमंसित्ता तमेव आभिसेकं हत्थि दूरुहति, दुरूदित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ मियवणाओ उजाणाओ पडिनिक्खमति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव वीतीभये नगरे तेणेव पहारेत्थ गमणाए।
६. तए णं तस्स उदायणस्स रनो अयमेयारूवे अब्भत्थिए जाव-समुप्पजित्था-"एवं खलु अभीयीकुमारे ममं एगे पुत्ते इट्टे कंते, जाव-किमंग पुण पासणयाए ? तं जदी णं अहं अभीयीकुमारं रजे ठावेत्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं मुंडे भवित्ता जाव-पचयामि, तो णं अभीयीकुमारे रजे य रट्टे य जाव-जणवए य माणुस्सएसु य कामभोगेसु मुच्छिए, गिद्धे, गढिए, अझोववन्ने, अणादीयं, अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतसंसारकंतारं अणुपरियट्टिस्सइ, तं नो खलु मे सेयं अभीयीकुमारं रजे ठावेत्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव-पवइत्तए, सेयं खलु मे णियगं भाइणेज केसि कुमारं रजे ठावेत्ता समणस्स भगवओ जाव-पचइत्तए'-एवं संपेहेह, एवं संपेहेत्ता जेणेव वीतीमये नगरे तेणेव उवागच्छद, ते०२-गच्छित्ता वीतीभयं नगरं मझमज्झेणं जेणेव सए गेहे जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला, तेणेव उवागच्छइ, ते० २-च्छित्ता आभिसेक्कं हत्थि ठवेति, आमि० २-वेत्ता आभिसेक्काओ हत्थीओ पच्चोरुभइ, आ० २-भित्ता जेणेव सीहासंणे तेणेव उवागच्छति, ते० २-च्छित्ता
अनुक्रमे गमन करता, एक गामथी बीजे गाम यावत्-विहरता, ज्यां सिंधुसौबीर देश छे, ज्यां वीतभय नगर छे, अने ज्या मृगवन नामे उद्यान छे त्यां आवे छे, त्या आवीने यावद्-विहरे छे. ते समये वीतभयं नगरमा शंगाटक-शीगोडाना जेवा त्रिकोण (आकारवाळा)इत्यादि मार्गोमा [घणा माणसो परस्पर कहे छे के 'अहिं मृगवन उद्यानमा भगवान् महावीर पधार्या छे' एम सांभळीने घणा क्षत्रियो वगेरे वंदन करवा नीकळे छे इत्यादि ] यावद्-परिषद् पर्युपासना करे छे. त्यार पछी भगवान् महावीर आव्यानी आ वातथी विदित थयेला ते उदायन राजाए हर्षित अने संतुष्ट थई कौटुंबिक पुरुषोने बोलावी आ प्रमाणे कर्यु के-“हे देवानुप्रियो। तमे शीघ्र वीतभय नगरने अंदर अने बहार साफ करावो"-इत्यादि बधुं *औपपातिक सूत्रमा कूणिक संबन्धे कयुं छे तेम अहिं पण कहे. यावत्-ते पर्युपासना करे छे. तथा प्रभावती प्रमुख देवीओ पण तेज प्रमाणे यावत्-पर्युपासना करे छे. त्यारबाद [भगवंते] धर्म कथा कही. पछी ते उदायन राजा श्रमण भगवंत महावीरनी पासे धर्मने सांभळी, अवधारी हर्षित अने संतुष्ट थई उठी उभो थाय छे, उभो थइने श्रमण भगवंत महावीरने त्रणवार प्रदक्षिणा करी यावत्-नमस्कार करीने आ प्रमाणे बोल्यो-'हे भगवन् ! ए ए प्रमाणे ज छे, हे भगवन् ! ते ते प्रकारे छे' यावत्जे प्रकारे आ तमे कहो छो, परन्तुं एटलो विशेष छे के, हे देवानुप्रिय! अभीचिकुमारने राज्यने विष स्थापन करूं, अने त्यारबाद हुं देवानुप्रिय एवा आपनी पासे मुंड थईने यावत्-प्रव्रज्यानो स्वीकार करे. [ भगवंते कयुं के ] 'हे देवानुप्रिय ! जेम सुख थाय तेम करो, प्रतिबंध न करो.' त्यार बाद श्रमण भगवंत महावीरे उदायन राजाने ए प्रमाणे कडं एटले ते हर्षित अने संतुष्ट थई श्रमण भगवंत महावीरने वंदन अने नमस्कार करे छे, वंदन अने नमस्कार करीने ते अभिषेकने योग्य (पट्ट) हस्ती उपर चढी श्रमण भगवंत महावीरनी पासेथी अने मृगवन नामना उद्यानथी नीकळीने ज्यां वीतभय नामे नगर छे ते तरफ जवानो तेणे विचार कर्यो.
६. त्यार पछी ते उदायन राजाने आवा प्रकारनो आ संकल्प यावत्-उत्पन्न थयो के 'ए प्रमाणे खरेखर अभीचिकुमार मारे एक पोताना भाणेज के पुत्र छे अने ते मने इष्ट अने प्रिन छे, यावत्-तेनुं नाम श्रवण पण दुर्लभ छे, तो पछी तेनुं दर्शन दुर्लभ होय तेमां शुं कहे, ते माटे शी कुमारने राम्या
भिषेक करवानो ना जो हुँ अभीचिकुमारने राज्यने विषे स्थापीने श्रमण भगवंत महावीरनी पासे मुंड थई यावत्-प्रव्रज्या ग्रहण करुं, तो अभीचिकुमार राज्य, यननो संकल्प. राष्ट्र, यावत्-जनपदमां अने मनुष्यसंबंधी कामभोयोमा मूर्छित, गृद्ध, ग्रथित अने तल्लीन थई अनादि अनंत अने दीर्धमार्गबाळा चारगतिरूप संसार अटवीने विषे परिभ्रमण करशे, ते माटे अभीचिकुमारने राज्यने विषे स्थापन करी श्रमण भगवंत महावीरनी पासे यावत्प्रव्रज्या लेवी ए श्रेयरूप नथी, परंतु मारे मारा भाणेज केशीकुमारने राज्यने विषे स्थापन करीने श्रमण भगवंत महावीरनी पासे प्रव्रज्या लेवी श्रेयरूप छे-ए प्रमाणे विचार करे छे. एम विचारीने ज्यां वीतभय नगर छे. त्यां आवी वीतभय नगरनी वच्चे ज्यां पोतार्नु घर छ, भने ज्या बाहेरनी उपस्थानशाला छे त्यां आवे छे, त्यां आवीने अभिषेकने योग्य-पट्ट हस्तीने उभो राखीने तेना उपरथी नीचे उतरे छे, नीचे उतरीने ज्यां सिंहासन छे, त्यां आवी उत्तम सिंहासन उपर पूर्व दिशासन्मुख बेसे छे, बेसीने कौटुंबिक पुरुषोने बोलावी तेणे ए प्रमाणे
५* जुओ-औप० ५० ६३-२५० १२.
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