Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust

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Page 328
________________ मामकुमार। दिना भावासो. वानव्यन्तर देवोना आवास. एक समये वानव्य तर देवोनो उत्पाद ज्योतिषिक देवोना विमानावास. Jain Education International ३०८ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंप्रद्दे शतक १३ - उद्देशक २. वेदगा पण्णत्ता, एवं पुरिसवेदगा वि, नपुंसगवेदगा नत्थि । कोहकसाई सिय अत्थि सिय नत्थि, जद अत्थि जहन्त्रेण एको या दो वा तिन्निवा, उक्कोसेणं संखेज्जा पण्णत्ता । एवं माण० माय० । संखेज्जा लोभकसाई पण्णत्ता, सेसं तं चैव । तिसुषि गमपसु संखेज्जेसु चत्तारि लेस्साओ भाणियवाओ, एवं असंखेज्जवित्थडेसु वि, नवरं तिसु वि गमपसु मसंखेज्जा भाणिया, जाव - असंखेजा अचरिमा पण्णत्ता । ५. [ प्र० ] केवतिया णं भंते ! नागकुमारावास ० १ [अ०] एवं जाव- धणियकुमारा, नवरं जत्थ जत्तिया भवणा । ६. [प्र०] केवतिया णं भंते ! वाणमंतरावाससयसहस्सा पन्नत्ता ? [30] गोयमा ! असंखेज्जा वाणमंतरावाससयसहस्सा पन्नता । [प्र० ] ते णं मंते ! किं संखेज्जवित्थडा, असंखेज्जवित्थडा १ [४०] गोयमा ! संसेज्जवित्थडा, नो असंखेज्जवित्थडा । ७. [प्र० ] संखेजेसु णं भंते ! वाणमंतरावाससयसहस्सेसु एगसमपणं केवतिया वाणमंतरा उववजंति ? [30] एवं जहा असुरकुमाराणं संखेजवित्थडेसु तिनि गमगा तहेव भाणियचा वाणमंतराण वि तिन्नि गमगा । ८. [ प्र० ] केवतिया णं भंते! जोतिसिय विमाणाचाससयसहस्सा पण्णता ? [अ०] गोयमा ! असंखेजा जोइसियविमाणावाससयसहस्सा पण्णत्ता । [प्र० ] ते णं भंते ! किं संखेजवित्थडा० १ [उ०] एवं जहा वाणमंतराणं तहा जोइसियाण वितिभि गमगा भाणियष्वा, नवरं एगा तेउलेस्सा । उववजंतेसु पन्नत्तेसु य असन्नी नत्थि, सेसं तं चेव । विशेष छे के असंज्ञी उद्वर्ते छे-च्यवे छे, [ कारण के ईशानदेवलोकसुधीना देवो पृथिवीकायादि असंज्ञीमां उपजे छे.] अवधिज्ञान अवधिदर्शनी त्यांची उद्वर्तता- नीकळतां नथी, [ कारण के असुरकुमारादिथी नीकळेला तीर्थंकरादि न थाय अने अवधिज्ञान अने अवधिदर्शनसहित तीर्थंकरादि ज उद्वर्ते. ] बाकीनुं बधुं पूर्व प्रमाणे जाणवुं. सत्ताने आश्रयी पूर्वे ज कहेलं छे ते प्रमाणे सर्व कहेवुं. परन्तु एटलो विशेष छे के त्यां संख्याता स्त्रीवेदषाळा कहेला छे. ए प्रमाणे पुरुषवेदवाळा पण कहेला छे, नपुंसकवेदवाळा नथी. "क्रोधकषायवाळा कदाचित् होय छे अने कदाचित् होता नथी. जो होय छे तो जघन्यथी एक, बे के त्रण अने उत्कृष्टथी संख्याता. होय छे, ए प्रमाणे मानं अने माया संबंधे पण जाणवुं. लोभकषायवाळा संख्याता कहेला छे. [ कारण के देवगतिमां लोभकषायी घणा होय छे, तेथी हमेशां ते संख्याता ज होय.] बाकी बधुं पूर्व प्रमाणे जाणवु. संख्यातासंबन्धे उत्पाद, उद्वर्तना अने सत्ताना त्रण आलापकोने विषे चार लेश्याओ कवी. ए प्रमाणे असंख्याता योजनविस्तारवाळा असुरकुमारावासों संबंधे पण जाणवुं, परन्तु त्रणे आलापकोने विषे 'असंख्याता' पाठ कहेवो, यावत्- 'असंख्याता अचरम का' छे. ५. [प्र० ] हे भगवन् ! केटला लाख नागकुमारना आवासो कहेला छे ? [ उ०] पूर्व प्रमाणे जाणवा. यावत् स्तनितकुमार सुधी [ उत्पाद, उद्वर्तना अने सत्ता संबंधे त्रण आलापक] कहेवा, परन्तु एटलो विशेष छे के ज्यां जेटला लाख भवनो होय त्यां तिला लाख भवनो कहेवां. ६. [ प्र० ] हे भगवन् ! वानव्यंतर देवोना केटला लाख आवासो कहेला छे ! [अ०] हे गौतम! वानव्यंतरदेवोना असंख्याता लाख आवासो कहेला छे. [प्र० ] हे भगवन् ! ते आवासो शुं संख्यातयोजनविस्तारवाळा छे के असंख्यातयोजनविस्तारवाळा छे? [ उ०] हे गौतम! संख्यात योजनविस्तारवाळा छे, पण असंख्यात योजनविस्तारवाळा नथी, ७. [प्र० ] हे भगवन् ! संख्यातालाख योजनविस्तारवाळा वानव्यंतरदेवोना आवासने विषे एक समये केटला वानव्यंतरदेवो उपजे ! [उ०] जेम असुरकुमारोना संख्याता योजनविस्तारवाळा आवासोने विषे त्रण आलापको कह्या छे ते प्रमाणे वानव्यंतर संबन्धे पण त्रण आलापको कहेवा. ८. [प्र० ] हे भगवन् ! ज्योतिषिक देवोना केटला लाख विमानावासो कह्या छे ? [ उ० ] हे गौतम! ज्योतिषिक देवोना असंख्याता लाख विमानावासो कहेलां छे. [प्र० ] हे भगवन् ! ते विमानावासो शुं संख्यात योजनविस्तारवाळा छे के असंख्यात योजनविस्तारवाळा छे? [उ०] ए प्रमाणे जेमं वानव्यंतर देवो संबंधे कह्युं छे, ते प्रमाणे ज्योतिषिकोने पण त्रण आलापको कहेवा, परन्तु एटलो विशेष छे के अहिं एक मात्र तेजोलेश्या कहेवी. उत्पादने विषे अने सत्ताने विषे असंज्ञी जीवो उपजता तेम उद्वर्तता नथी, बाकी बधुं पूर्व प्रमाणे जाणवुं. ४ * देवोमां क्रोध, मान अने मायारूप कषायना उदयवाळा कोइक समये ज होय छे, माटे 'कदाचित् होय छे अने कदाचित् होता नथी' - एम कधुं छे, भने लोभकषायना उदयवाळा सर्वेदा होय छे, माटे 'संख्याता लोभकषायी होय छे'- एम. कत्युं छे, ५ + असुरकुमारने चोसठ लाख, नागकुमारने चोराशी लाख, सुवर्णकुमारने बहोंतेर लाख, वायुकुमारने छन्नुं लाख, द्वीपकुमार, दिकुमार, उद्धिकुमार, विद्युत्कुमार, स्तनितकुमार अने अभिकुमारना प्रत्येक युगलने छोंतेर लाख भवनो होय छे. टीका. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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