Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
View full book text ________________
सपना संख्याता प्रदेशो.
पुद्रलास्तिकायना असंख्य प्रदेशो.
कान अनन्त प्रदेशो.
Jain Education International
३१८
श्रीरामचन्द्र-जिनागमसंपदे
1
शतक १३ - उद्देशक ४त्थिकायस्स । एवं एएणं गमेणं भाणियवं जाव- दस, नवरं जहन्नपदे दोनि पक्खिवियष्ठा, उक्कोसपए पंच । चत्तारि पोग्गलत्विकायरस जधपर दसहि, उकोसपर पापीसार पंच पुग्गल०, जनपर बारसहि, उकोसपर सत्तावीसार छ पोगाल० जनपर बोस, उकोसपर बत्तीसार सत पोग्गल० जणं सोलसहि, उक्कोसपर सप्ततीसार भट्ठ पोम्पल जहअपर अट्ठारसहि, उक्कोसेणं बायालीसाए । नव पोग्गल० जहन्नपप वीसाए, उक्कोसपदे सीयालीसाए । दस पोग्गल० जहनपर बावीसार, उकोसपर मायनाय आगासत्धिकायरस सङ्घत्थं उकोसगं भाणियच्चं ।
?
२६. [४०] [संजा भंते! पोग्गलत्थिकायपरसा केवतिपहिं धम्मत्थिकायपपसेहिं पुट्टा [४०] जनपदे तेणेय संखेजपणं दुगुणेणं दुरूवाहिएणं, उक्कोसपर तेणेव संखेजपणं पंचगुणेणं दुरूवाद्दिएणं । [प्र०] केवतिएहि अधम्मत्थिकाय परसेहिं ? [30] एवं चैव । [प्र०] केवतिपहिं आगासत्थिकाय ? [अ०] तेणेव संखेजपणं पंचगुणेणं दुरूवाद्दिपणं । [ प्र०] केवइपि जीवत्थिकाय ? [30] अणंतेहिं । [प्र०] केवहपर्हि पोग्गलत्थिकाय ० १ [उ०] अणतेर्हि । [प्र०] केवइपहिं अद्धासमपहिं ? [४०] सिय पुढे, सिय नो पुढे, जब अनंतेहिं ।
२७. [प्र० ] असंज्ञा भंते! पोग्गहत्यिकायप्यरसा केवतिपदि धम्मत्धिकायपदेसेहि० १ [४०] जदभपर तेणेव असंखेखणं गुणेणं दुरुचाहिएणं, उक्कोसपदे तेणेव असंसेजपणं पंचगुणं दुरूवाद्दिपणं, सेसं जहा संखेजाणं जाव-नियमं अर्णतेदि । २८. [अ०] अनंता भंते योग्गलत्धिकायपरसा केवतिपहिं धम्मत्थिकाय ? [०] एवं जदा असंसेजा तहा अणता मिनिरवसेसं ।
आकाशास्तिकायना प्रदेशोवडे स्पर्श करायेला होय ? [उ०] सत्तर प्रदेशोवडे स्पर्श करायेला होय. बाकी बधुं धर्मास्तिकायनी पेठे जाणवुं.. ऐ प्रमाणे आ पाठ वडे यावत् - दश प्रदेशो सुधी कहेवुं. परन्तु एटलो विशेष छे के जघन्यपदे बेनो अने उत्कृष्टपदे पांचनो प्रक्षेप करवो. चार पुद्गलास्तिकायना प्रदेशो जघन्यपदे दश अने उत्कृष्टपदे बावीश प्रदेशोवडे स्पर्श करायेला होय. पुद्गलास्तिकायना पांच प्रदेशो जघम्यपदे बार अने उत्कृष्टपदे सत्याचीश प्रदेशोवडे स्पर्श करावेला होय. पुद्गलास्तिकायना छ प्रदेशो जघन्यपदे चौद अने उत्कृष्टपदे वत्रीश प्रदेशोबडे स्पर्श बराला होय. पुद्वास्तिकायना सात प्रदेशो जधन्यपदे सोळ अने उत्कृष्टपदे साउनीश प्रदेशोपडे स्पर्श करायेला होय. पुद्गलास्तिकायना आठ प्रदेशो जघन्यपदे अढार अने उत्कृष्टपदे बेंतालीश प्रदेशोवडे स्पर्शायेला होय. पुद्गलास्तिकायना नव प्रदेशो जघन्यपदे वीश अने उत्कृष्टपदे सुडतालीश प्रदेशोवडे स्पर्शायेला होय. पुद्गलास्तिकायना दश प्रदेशो जघन्यपदे बावीश अने उत्कृष्टपदे बावन प्रदेशोकड़े स्पर्शायेला होय. आकाशास्तिकायनुं सर्वत्र उत्कृष्टपद कहें.
२६. [प्र० ] हे भगवन् संख्याता पुद्रलास्तिकायना प्रदेशो केटला धर्मास्तिकायना प्रदेशोवडे स्पर्शायेला दोष ? [४०] जघन्यपदे तेज संख्याता प्रदेशने बमणा करी बे रूप अधिक करीए, अने उत्कृष्टपदे तेज संख्याता प्रदेशने पांच गुणा करी बे रूप अधिक करी. [तेला प्रदेशोवडे स्पर्शायेला होय.] [प्र०] केटला अधर्मास्तिकायना प्रदेशोवडे स्पर्शाय ? [उ०] ए प्रमाणे [ धर्मास्तिकायनी पेठे ] जाणवुं. [ प्र० ] केटला आकाशास्तिकायना प्रदेशोवडे स्पर्शायेला होय ? [उ०] तेज संख्याताने पांचगुणा करी बे रूप अधिक करीए [तेटला प्रदेशोवडे स्पर्श कराये दोष. ] [ प्र० ] केटला जीवास्तिकापना प्रदेशोवडे स्पर्श करायेल होय [30] अनन्त प्रदेशोवडे स्पर्श कराल होय. [प्र० ] केटला पुद्गलास्तिकायना प्रदेशोवडे स्पर्श करायेल होय ? [उ०] अनन्त प्रदेशोवडे स्पर्श करायेल होय. [प्र० ] केटला अद्धासमयोबडे स्पर्श करायेल होय! [उ०] कदाच स्पर्श करायेल होय, अने कदाच स्पर्श न कराये होय, यावत् अनन्त समयोचडे स्पर्श कराये होप.
२७. [प्र० ] हे भगवन् ! पुद्रवास्तिकायना असंख्याता प्रदेशो केटला धर्मास्तिकायना प्रदेशोवडे स्पर्श कराय ! [30] जघन्यपदे तेज असंख्याताने बमणा करीए अने वे रूप अधिक करीए लेटला प्रदेशोवडे स्पर्श कराय, अने उत्कृष्टपदे सेन असंख्याताने पांच गुणा करीए, अने बे रूप अधिक करीए एटला प्रदेशोवडे स्पर्श कराय. बाकी बधुं जेम संख्यातासंबन्धे कह्युं तेम अहिं जाणवुं, यावत्- 'अवश्य अनन्त समयोवडे स्पर्श कराय' सो सुधी जाणवु
२८. [प्र० ] हे भगवन् ! पुद्गलास्तिकायना अनन्त प्रदेशो केटला धर्मास्तिकायना प्रदेशोवडे स्पर्श कराय ! [ उ० ] ए प्रमाणे जेम असंख्याता प्रदेश संबन्धे कयुं तेम अनन्ता प्रदेश संबन्धे पण समझ जागर्नु
२५ * आकाशास्तिकायनुं उत्कृष्टपद छे, पण जघन्यपद नथी, कारण के आकाश सर्व स्थळे विद्यमान छे. टीका.
२६ दशथी उपरांत संख्यानी गणना संख्यातामां ज थाय छे. जेमके वीश प्रदेशनो एक स्कन्ध लोकान्तना एक प्रदेशने विषे रहेलो छे, भने ते अमुक नयना अभिप्रायथी वीश अवगाढ प्रदेशोवडे, अने तेज नयना मतथी उपरना के नीचेना वीश प्रदेशो वडे तथा पासेना ने प्रदेशो बडे-ए प्रमाने जयपत प्रदेशोवडे सचय उष्टपदे निस्पचरित (विक) वीश भवगड प्रवेशो नीशा नीचेना भने नीश उपर प्रदेश भने पूर्व अने पश्चिम, ए बने दिशाए वीश वीश प्रदेशोवडे, तथा उत्तर अने दक्षिण बाजु एक एक प्रदेशवडे- सर्व मळी एकसो वे प्रदेशोवडे स्पर्शाय. - टीका.
२८ + अहिं एटली विशेषता छे के जेम जधन्यपदने विषे उपरना के नीचेना अवगाह प्रदेशो औपचारिक छे, तेम उत्कृष्ट पदने विषे पण जाणवुं, केमके अवगाहथी निरुपचरित अनन्त आकाश प्रदेशो होता नथी, पण असंख्याता होय छे. टीका.
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422