Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
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३०४ 'श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
शतक १३.-उद्देशक १. असनी सिय अस्थि, सिय नत्थिा जइ अत्थि जहनेणं एको वा दो वा.तिन्नि घा, उक्कोसेणं संखेजा पन्नत्ता । संखेजा भवसिद्धीया पञ्चत्ता, एवं जाव-संखेजा परिग्गहसन्नोवउत्ता.पन्नत्ता, इथिवेदगा नत्थि, पुरिसवेदगा नत्थि, संखेजा नपुंसगवेदगा पन्नत्ता, एवं कोहकसायी वि । मानकसाई जहा असन्नी, एवं जाव-लोभकसायी । संखेजा सोइंदियोवउत्ता पनत्ता, एवं जावफासिदियोवउत्ता । नोइंदियोवउत्ता जहा असन्नी । संखेजा मणजोगी पन्नत्ता, एवं जाव-अणागारोवउत्ता । अणंतरोववनगा सिय अत्थि, सिय नत्थि; जद्द अत्थि जहा असन्नी । संखेजा परंपरोववनगा पन्नत्ता । एवं जहा अणंतरोववनगा तहा अणंतरोवगाढगा, अणंतराहारगा, अणंतरपजत्तगा, चरिमा । परंपरोवगाढगा, जाव-अचरिमा जहा परंपरोववन्नगा।
७. [प्र०] इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु असंखेजवित्थडेसु एगसमएणं केवतिया नेरइया उववजंति, जाव-केवतिया अणागारोवउत्ता उववजंति ? [उ०] गोयमा ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए, निरयावाससयसहस्सेसु असंखेजवित्थडेसु नरएसु एगसमएणं जहन्नेणं एको वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं असंखेजा नेरइया उववजंति । एवं जहेव संखेजवित्थडेसु तिन्नि गमगा तहा असंखेजवित्थडेसु वि तिनि गमगा भाणितवा, नवरं असं. खेजा भाणियवा, सेसं तं चेष, जाव-असंखेजा अचरिमा पन्नत्ता, नाणत्तं लेस्सासु, लेस्साओ जहा पढमसए, नवरं संखेजवित्थडेसु वि असंखेजवित्थडेसु वि ओहिनाणी ओहिदसणी य संखेजा उच्चट्टावेयधा, सेसं तं चेव ।
८. [प्र०] सक्करप्पभाए णं भंते ! पुढवीए केवतिया निरयावास-पुच्छा। [उ०] गोयमा ! पणवीसं निरयावाससयहस्सा पण्णत्ता । [प्र०] ते गं भंते ! किं संखेजवित्थडा, असंखेजवित्थडा ? [उ०] एवं जहा रयणप्पभाए तहा सक्करप्पभाए वि । नवरं असन्नी तिसु वि गमएसुन भन्नति, सेसं तं चेव ।
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संख्याता कापोतलेश्यावाळा कहेला छे, ए प्रमाणे यावत्-संख्याता संज्ञी जीवो कहेला छे. *असंज्ञी जीवो कदाचित् होय छे अने कदाचित् होता नथी. जो होय छे तो जघन्यथी एक, बे के त्रण अने उत्कृष्टथी संख्याता होय छे, संख्याता भवसिद्धिक जीवो कहेला छे, ए प्रमाणे यावत् संख्याता परिग्रहसंज्ञाना उपयोगवाळा कहेला छे; स्त्रीवेदी नथी अने पुरुषवेदी पण नथी, नपुंसकवेदी संख्याता होय छे. ए प्रमाणे क्रोधकषायी पण संख्याता होय छे. मानकषायी असंज्ञीनी पेठे [कदाचित् होय छे अने कदाचिद् होता नथी.] ए प्रमाणे यावत्-[मायाकषायी अने] लोभकषायी जाणवा. संख्याता श्रोत्रेन्द्रियना उपयोगवाळा कह्या छे, ए प्रमाणे यावत्-स्पर्शनेन्द्रियना उपयोगवाळा पण कह्या छे. नोइंद्रियना उपयोगवाळा असंज्ञीनी पेठे जाणवा, संख्याता मनोयोगी कहेला छे, अने ए प्रमाणे यावत् [संख्याता] ३९ अनाकारोपयोगी जाणवा. अनंतरोपपन्न-प्रथम समये उत्पन्न थवावाळा नारको कदाचित् होय छे अने कदाचित् होता नथी. जो होय तो ते असंज्ञीनी पेठे जाणवा. संख्याता परंपरोपपन्न-द्वितीयादि समये उत्पन्न थयेला जाणवा. ए प्रमाणे जेम अनंतरोपपन्न कह्या तेम अनंतरावगाढ अनंतराहारक, अनन्तरपर्याप्तक अने चरम-जेने छेल्लोज नारक भव बाकी छे ते अथवा नारकभवने छेल्ले समये वर्तता-जाणवा. परंपरावगाढ, यावत्
अचरम सुधी जेम परंपरोपपन्न कह्या तेम कहेवा. [ए प्रमाणे संख्याता योजन विस्तारवाळा नरकावासनी वक्तव्यता कही.] असंख्ययोजनवाळा . ७. [प्र०] हे भगवन् ! आ रनप्रभापृथिवीना त्रीश लाख नरकावासोमांना असंख्यात योजन विस्तारवाळा नरकावासोने विषे एक समये मरकावासोमा नार. केटला नारको उत्पन्न थाय, यावत्-केटला अनाकारोपयोगवाा उत्पन्न थाय? [उ०] हे गौतम! आ रत्नप्रभापृथ्वीना त्रीश लाख नरकावाकादिनो उत्पाद.
सोमांना असंख्यातयोजन विस्तारवाळा नरकावासोने विषे एक समये जघन्यथी एक, बे के त्रण अने उत्कृष्टथी असंख्याता नारको उत्पन्न थाय छे, ए प्रमाणे जेम संख्याता विस्तारवाळा नरकने विषे [उत्पाद, च्यवन अने सत्ता-] ए त्रणं आलापक कह्या तेम असंख्यातयोजन विस्तारवाळा नरकावासोने विषे पण त्रण आलापक कहेवा, परन्तु अहिं 'असंख्याता' एवो पाठ कहेवो. बाकी बधुं पूर्व पेठे जाणवू. यावत् 'असंख्याता अचरम नारको कहेला छे'–स्यां सुधी कहे. लेश्याने विष विशेषता छे, अने ते लेश्याओ प्रिथम शतकमां कह्या प्रमाणे जाणवी. परन्तु एटलो विशेष छे के संख्यात योजन विस्तारवाळा अने असंख्यात योजन विस्तारवाळा नरकावासोने विषे अवधिज्ञानी अने
अवधिदर्शनी सिंख्याता ज च्यवे छे,-एम कहे, बाकी बधुं पूर्व प्रमाणे जाणवू.. शर्कराप्रभामा ८. [प्र०] हे भगवन् ! शर्कराप्रभा नरक पृथिवीने विषे केटला नरकावासो होय छे-ते संबन्धे प्रश्न. [उ०] हे गौतम! पचीश नरकाबासो.
लाख नरकावासो होय छे. [प्र०] हे भगवन्! ते नरकावासो शुं संख्यातायोजनविस्तारवाळा होय के असंख्यातयोजनविस्तारवाळा होय? [उ०] ए प्रमाणे जेम रत्नप्रभा संबन्धे कयुं तेम शर्कराप्रभा संवन्धे जाणवू, परन्तु [उत्पाद, उद्वर्तना अने सत्ता-] ए त्रणे आलापकने विषे असंज्ञी न कहेवा [कारण के असंज्ञी प्रथम नरकपृथिवीने विषेज उपजे छे.] बाकी बधुं पूर्व पेठे जाणवु.
६. असंझीधकी मरण पामी जेओ नारकपणे उत्पन्न थया छे, तेओ अपर्याप्तावस्थामा भूतभावनी अपेक्षाए असंज्ञी कहेवाय छे, तेओ अल्प होय छे माटे 'असंझी कदाचित् होय छे अने कदाचित् होता नथी' एम कडुं छे-टोका.
1 भग० ख०१ श० १ २० २ पृ. १०४. जुओ प्रशा० लेश्यापद १५ उ० २ प० ३४३-२.
अवधिज्ञानी अने अवधिदर्शनी तीर्थकरादि ज होय, ते. थोडा होय माटे ते संख्याताज नीकळे.-टीका.
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