Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust

View full book text
Previous | Next

Page 322
________________ ३०२ श्रीरायचन्द्र - जिनागमसंग्रहे शतंक १३. - उद्देशक १. सुखिया पति १५ केवतिया सभी उपबति ? ६ केवतिया असन्नी उपपति ७ केवतिया भवसिद्धीया उपयति ? ८ केवतिया अभवसिद्धीया उच्चजंति ९ केवतिया आभिनिबोहियनाणी उपचति १ १० केवइया सुचनाणी उपवज्रंति ? ११ केवइया ओहिनाणी उववज्रंति ? १२ केवइया मइअन्नाणी उववजंति ? १३ केवइया सुयअन्नाणी उववजंति ? १४ केवइया विब्भंगनाणी उववजंति ? १५ केवइया चक्खुदंसणी उववजंति ? १६ केवइया अचक्खुदंसणी उववज्जंति ? १७ केवइया ओहिसणी उववजंति ? १८ केवइया आहारसन्नोवउत्ता उववजंति ? १९ केवइया भयसन्नोवउत्ता उववजंति ? २० केवइया मेणसोबत्ता उबजंति ? २१ केवइया परिग्गहसनोयडा उपजंति ? २२ केवइया इत्यिवेयगा उपयजति २३ फेबइया पुरिसयेद्गा उपयति ? २४ केवइया नपुंगवेदगा उचचजंति ? २५ केवइया कोहकसाई उपपति २८ जाय केवइया लोकसायी उपचजंति ? २९ केपदया सोइंदिपउघडता उपपति जाव-३३ केपश्या फासिंदियोउसा उपपति ३४ या नोइंद्रियोपता उचचजंति ३५ केवतिया मणजोगी उपवनंति ३६ केवलिया बजोगी उपयजंति ? ३७ केवतिया फायजोगी उपचजंति ?१ ३८ केवतिया सागारोषउत्ता उपपति ३९ केवतिया अणागारोवउत्ता उच्चवज्रंति ? [४०] गोयमा इमीसे णं रवणप्पभाष पुढबीए तीसाए निरवापाससयसहस्सेसु संसेजवित्थडेसु नरपसु जहणं एको वा दो यातिथि वा उक्कोसेणं संखेजा नेरइया उचचजंति, जहणं एको वा दो वा तिथि था, उनोस्सेणं संसेखा काउलेस्सा उववजंति, जहनेणं एक्को वा दो वा तिन्निवा, उक्कोसेणं संखेजा कण्हपक्खिया उववजंति, एवं सुक्कपक्खिया वि, एवं सन्नी, एवं असनी वि, एवं भवसिद्धीयां, एवं अभवसिद्धिया, आभिणिबोहियनाणी, सुयनाणी, ओहिनाणी, मद्दअन्नाणी, सुयअन्नाणी, विभंगनाणी एवं चेव, चक्खुदंसणी ण उववजंति, जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिनि वा उक्कोसेणं संखेजा अचक्खुदंसणी उववजंति, एवं ओहिणी वि, आहारसन्नता व जाब- परिग्गहसनोउता वि इत्वीचेया न उचचजंति, पुरिसपेयमा वि न उचचजंति, जहणं. एको वा दो प्रातिनि था, उक्लोसेणं संसेजा नपुंसगवेद्गा उपयजंति, एवं कोदकसाई, जाय-लोकसाई सोइंदिय उवउत्तान उववजंति, एवं जाव - फासिदिभोवउत्ता न उववजंति, जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेजा केटला शुक्लपाक्षिक जीवो उत्पन्न थाय, ५ केटला संज्ञी जीवो उत्पन्न थाय, ६ केटला असंज्ञी जीवो उत्पन्न थाय ७ केटला भवसिद्धिक जीवो उत्पन्न थाय, ८ - केटला अभवसिद्धिक जीवो उत्पन्न थाय, ९ केटला आभिनिबोधिकज्ञानी - मतिज्ञानी उत्पन्न थाय, १० केटला श्रुतज्ञानी उत्पन्न था, ११ केटला अवधिज्ञानी उत्पन्न थाय १२ केटला मतिअज्ञानी उत्पन्न धाय, १३ केटला श्रुतअज्ञानी उत्पन्न था, १४ विभंगज्ञानी उत्पन्न पाय, १५ केटला चक्षुदर्शनी उत्पन्न चाय, १६ केटला अचक्षुदर्शनी उत्पन्न चाय, १७ केटला अवधिदर्शनी उत्पन्न थाय, १८ केटला आहारसंज्ञाना उपयोगवाळा जीव उत्पन्न थीय, १९ केटला भयसंज्ञाना उपयोगवाळा उत्पन्न थाय, २० केटला मैथुन - ज्ञाना उपयोगवाव्य उत्पन्न थाय २१ केटला परिग्रह संज्ञाना उपयोगवाव्य उत्पन्न चाय, २२ केटला स्त्रीवेदी जीव उत्पन्न पाप, २३ केटला पुरुषवेदी उत्पन्न धाप, २४ केटा नपुंसकवेदी उत्पन्न वाय, २५ केटला कोकायाला जीव उत्पन्न याय, यावत् २८ केटा लोक उत्पन्न चाय २९ केटला श्रोत्रेन्द्रियना उपयोगमान्य उत्पन्न धाय यावत् ३३ केटला स्पर्शनेन्द्रियना उपयोगा उत्पन्न ', थाय, ३४ केटला नोइन्द्रिय ( मन ) ना उपयोगवाळा उत्पन्न थाय, ३५ केटला मनयोगी उत्पन्न थाय, ३६ केटला वचनयोगी उत्पन्न थाय, ३७ केटला काययोगी उत्पन्न थाय, ३८ केटला साकारोपयोगवाळा उत्पन्न थाय, अने ३९ केटला अनाकारोपयोगवाळा उत्पन्न थाय ? [उ० ] हे गौतम! आ रत्नप्रभा पृथिवीना श्रीश लाख नरकावासोगांना संख्याता योजनना विस्तारवाव्य नरकावासोने विषे १ जघन्यथकी एक, वे के त्रण अने उत्कृष्टथी संख्याता नारको उत्पन्न थाय छे, २ जघन्यथी एक बे के त्रण, अने उत्कृष्टथी संख्याता कापोतलेश्या वाळा उत्पन्न थाय छे, कारण के प्रथम नरक पृथिवीमां कापोतलेश्या होय छे. ३ जमन्यथी एक, वे के प्रण भने उत्कृष्टथी संख्याता कृष्णपाक्षिक जीवों उत्पन्न थाय छे, ए प्रमाणे शुक्लपाक्षिक संबंधे पण जाणवुं, ए रीते संज्ञी अने असंज्ञीने पण कहेवुं, ए प्रमाणे भवसिद्धिक अने अभवसिद्धिक जीवो पण जाणवा. मतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, मतिअज्ञानी, श्रुतअज्ञानी, विभंगज्ञानी ए सर्व ए प्रमाणेज उत्पन्न थाय छे. चक्षुदर्शनवाळा जीवो उत्पन्न थता नथी. जघन्ययी एक, ये अथवा त्रण अने उत्कृष्टथी संख्याता अचक्षुदर्शनपाला जीवो उत्पन्न थाय छे. [कारणके उत्पत्ति समये सामान्य उपयोगरूप अचक्षुदर्शन छे.].एम अवधिदर्शनथाळां पण जाणवा. ए रीते आहार संज्ञाना उपयोगाच्या अने यावत् परिग्रह संज्ञाना उपयोगवाळा. पण ए प्रमाणे उत्पन्न थाय छे. स्त्रीवेदवाळा अने पुरुषवेदवाळा जीवो [भवप्रत्यय नपुंसकवेद होवाथी ] उत्पन्न थता नथी. जधन्यथकी एक, बे के ऋण अने उत्कृष्टथी संख्याता नपुंसकवेदी उत्पन्न थाय छे. ए प्रमाणे क्रोधकषायी, अने यावत् लोभकषायी जागवा. श्रोत्रेन्द्रियना उपयोगा उत्पन पता नथी, अने यावत् स्पर्शनेन्द्रियना उपयोगाय पण उत्पन्न पता नथी. जधन्ययी एक बे ४ 'इन्द्रियो अने मन शिवाय सामान्य उपयोगमन्त्रने पण अचक्षुदर्शन कहे छे भने ते उत्पत्तिसमये पण होय छे तेथी उत्तरमा 'अचदर्शनी उत्पन्न थाय छे' - एम कधुं छे. + याम दीपना उपयोगा भने मैथुनज्ञाना उपयोग जीवो महण करा. 1. Jain Education International ** For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org/

Loading...

Page Navigation
1 ... 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422