Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
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शतक १२.-उद्देशक ४. भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र.'
२७३ __.२६. [प्र०] नेरइयाणं भंते ! नेरइयत्ते केवतिया ओरालियपोग्गलपरियट्टा- अतीता? [उ०] नत्थि एकोऽवि।०] केवइया पुरेक्खडा? [उ०] नत्थि एको वि, एवं जाव-थणियकुमारत्ते ।
२७: प्र०] पुढविकाइयत्ते पुच्छा। [उ०] अणंता। [प्र०] केवइया पुरेक्खडा? [उ.] अणंता, एवं जाव-मणुस्सत्ते। वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणियत्ते जहा नेरइयत्ते, एवं जाव-वेमाणियस्स वेमाणियत्ते, एवं सत्त वि पोग्गलपरियट्टा भाणियचा; जत्थ अत्थि तत्थ अतीता वि पुरेक्खडा वि अणंता भाणियचा, जत्थ नत्थि तत्थ दोऽवि नत्थि भाणियचा। जाव-प्र०] वेमाणियाणं वेमाणियत्ते केवतिया आणापाणुपोग्गलपरियट्टा अतीया? [उ०] अणंता । [4] केवतिया पुरेक्खडा?[उ०] अणंता।
२८. [प्र०] से केणटेणं भंते! एवं वुच्चइ-'ओरालियपोग्गलपरियट्टे ओरालियपोग्गलपरिय? ? [उ०] गोयमा! जणं जीवेणं ओरालियसरीरे वट्टमाणेणं ओरालियसरीरपायोग्गाई दवाइं ओरालियसरीरत्ताए गहियाई, बद्धाई, पुट्ठाई, कडाई, पटुवियाई, निविट्ठाई, अभिनिविट्ठाई, अभिसमन्नागयाई, परियादियाई, परिणामियाई, निजिन्नाई, निसिरियाई, निसिट्ठाई भवंति; से तेणटेणं गोयमा! एवं वुच्चइ-'ओरालियपोग्गलपरियट्टे ओरालियपोग्गलपरियट्टे' । एवं वेउवियपोग्गलपरियट्टेऽवि, नवरं वेउब्वियसरीरे वट्टमाणेणं वेउधियसरीरप्पायोग्गाई, सेसं तं चेव सवं, एवं जाव-आणापाणुपोग्गलपरियट्टे, नवरं आणापाणुपायोग्गाई सम्बदवाइं आणापाणुत्ताए सेसं तं चेव ।
___ २९. [प्र०] ओरालियपोग्गलपरियट्टे णं भंते ! केवइकालस्स निधत्तिजइ ? [उ०] गोयमा! अणंताहिं उस्सप्पिणिओसप्पिणीहिं एवतिकालस्स निबत्तिजइ, एवं वेउवियपोग्गलपरियट्टे वि, एवं जाव-आणापाणुपोग्गलपरियट्टेऽवि ।
३०. [प्र०] एयस्स णं भंते ! ओरालियपोग्गलपरियट्टनिव्वत्तणाकालस्स, वेउवियपोग्गल, जाव-आणापाणुपोग्गलपरियनिचत्तणाकालस्स कयरे-कयरहितो जाव-विसेसाहिया वा ? [उ०] गोयमा ! सच्चत्थोवे कम्मगपोग्गलपरियट्टनिवत्त
२६. प्र०] हे भगवन् ! नैरयिकोने नैरयिकपणामां केटला औदारिकपुद्गलपरिवर्तो व्यतीत थया छे ? [उ०] एक पण व्यतीत थयेल नैरयिकोने नैरयिक नथी. [प्र०] केटला थवाना छे ? [उ०] एक पण थवानो नथी. ए प्रमाणे यावत् स्तनितकुमारपणामां जाणवू.
पणामा केटला औदारिकपुद्र परिवर्त
व्यतीत थया छ। २७. [प्र०] पृथिवीकायिकपणामां प्रश्न. (नैरयिकोने पृथिवीकायिकपणामां केटला औदारिकपुद्गलपरिवर्तो व्यतीत थया छे!) [उ०] नैरयिकोने पृथिवीअनन्ता व्यतीत थया छे. [प्र०] केटला थवाना छे? [उ०] अनन्ता थवाना छे. ए प्रमाणे यावत्-मनुष्यपणामां जाणवं. तथा जेम नैर- कायि
कायिकपणामा बौदा
रिकपुद्गलपरिवर्व. यिकपणामा कयुं छे तेम वानव्यन्तर, ज्योतिष्क अने वैमानिकपणामां कहे. ए प्रमाणे यावत् वैमानिकने वैमानिकपणामां कहे. ए रीते साते पुद्गलपरिवर्तो कहेवा; ज्यां होय छे त्यां अतीत-थयेला अने पुरस्कृत-भावी पण अनन्ता कहेवा, अने 'ज्यां नथी त्यां अतीत अने भावी बन्ने पण नथी-' एम कहे. यावद्-[प्र०] वैमानिकोने वैमानिकपणामां केटला आनप्राणपुद्गलपरिवर्तो थयेला छे? [उ०] अनन्ता थयेला छे. [प्र०] केटला थवाना छे ? [उ०] अनन्ता थवाना छे.
औदारिकपुद्गरूपरि
कहेवाय।
२८. [प्र०] हे भगवन् ! 'औदारिकपुद्गलपरिवर्त औदारिकपुद्गलपरिवर्त'-एम शा हेतुथी कहेवाय छे! [उ०] हे. गौतम | औदा- रिकशरीरमां वर्तता जीवे औदारिकशरीरने योग्य द्रव्यो औदारिकशरीरपणे ग्रहण करेला छे, स्पर्शेला छे, करेला छे, स्थिर करेला छे, स्थापन करेला छे, अभिनिविष्ट-सर्वथा लागेला छे, सर्वथा प्राप्त थयेलां छे, सर्व अवयववडे ग्रहण करायेला छे, परिणाम पामेला छे, निर्जरायेला छे, जीवप्रदेशथी नीकळेला छे, अने जीवप्रदेशथी जूदा थयेलां छे, माटे ते हेतुथी हे गौतम ! एम 'औदारिकपुद्गलपरिवर्त औदारिकपुद्गलपरिवर्त' कहेवाय छे. ए प्रमाणे वैक्रियपुद्गलपरिवर्त पण जाणवो. परन्तु विशेष ए छे के, वैक्रियशरीरमा वर्तता जीवे वैक्रियशरीरने योग्य पुद्गलो कहेबां, बाकी बधुं तेज प्रमाणे कहे. ए प्रमाणे यावद् आनप्राणपुद्गलपरिवर्त सुधी जाणवू; विशेष ए छे के, त्या 'आनप्राणयोग्य सर्व द्रव्यो आनप्राणपणे ग्रह्यां छे' इत्यादि कहे, बाकी बधुं पूर्वनी पेठेज जाणवू.
२९. [प्र०] हे भगवन् ! औदारिकपुद्गलपरिवर्त केटला काळे नीपजे? [उ०] हे गौतम ! अनन्त उत्सर्पिणी अने अवसर्पिणीवडे- औशरिकपुद्गलपरि
वर्तनो निष्पत्तिकाल. एटला काळे-औदारिकपुद्गलपरिवर्त नीपजे. ए प्रमाणे वैक्रियपुद्गलपरिवर्त पण जाणवो. ए प्रमाणे यावत् आनप्राणपुद्गलपरिवर्त पण जाणवो. पचन
३०. [प्र०] हे भगवन् ! ए औदारिकपुद्गलपरिवर्तना निष्पत्तिकाळमां, वैक्रियपुद्गलपरिवर्तना निष्पत्तिकाळमां, यावद्-आनप्राणपुद्गलप- औदारिकादिपुद्गलप. रिवर्तना निष्पत्तिकाळमां कयो काळ कोनाथी (अल्प), यावत् विशेषाधिक छे ? [उ०] हे गौतम ! सर्वथी थोडो कार्मणपुद्गलपरिवर्तनो निष्पत्ति- रिवर्तकानुं अरुपकाळ छे, तेनाथी अनन्तगुण तैजसपुद्गलपरिवर्तनो निष्पत्तिकाळ छे, तेनाथी अनन्तगुण औदारिकपुद्गलपरिवर्तनो निष्पत्तिकाळ छे, तेनाथी
३५ भ० सू०
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