Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
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शतक १२.-उद्देशक ४. भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र.
२७१. १३. प्र०] एएसि णं भंते !.परमाणुपोग्गलाणं साहणणा-भेदाणुवाएणं अणंताणंता .पोग्गलपरियट्टा समणुगंतवा भवं. तीति मक्खाया? [उ०] हंता, गोयमा! एएसि णं परमाणुपोग्गलाणं साहणणा० जाव-मक्खाया।
१४. [प्र०] कइविहे गं भंते ! पोग्गलपरियट्टे पण्णत्ते? [उ०] गोयमा ! सत्तविहे पोग्गलपरियट्टे पण्णत्ते, तंजहा-१ ओरालियपोग्गलपरियडू, २ वेउधियपोग्गलपरियट्टे, ३ तेयापोग्गलपरियट्टे, ४ कम्मापोग्गलपरियट्टे, ५ मणपोग्गलपरियडे वइपोग्गलपरियट्टे, ७ आणापाणुपोग्गलपरियट्टे ।
१५. [प्र.] नेरइयाणं भंते ! कतिविहे पोग्गलपरियट्टे पण्णत्ते ? [उ०] गोयमा ! सत्तविहे पोग्गलपरियट्टे पण्णते, तंजहा-१ ओरालियपोग्गलपरियट्टे, २ वेउवियपोग्गलपरियट्टे, जाव-७ आणापाणुपोग्गलपरियडू एवं जाव-वेमाणियाणं ।
१६. प्र० एगमेगस्सं णं भंते ! नेरइयस्स केवइया ओरालियपोग्गलपरियट्टा अतीता? [उ०] अणंता, [प्र० केवइया पुरेक्खडा [उ.] कस्सई अत्थि, कस्सइ नत्थि; जस्सत्थि जहन्नेणं एको वा दो वा तिनि वा, उक्कोसेणं संखेजा वा असंखेजा वा अणंता वा।
१७. [प्र०] एगमेगस्स गं भंते ! असुरकुमारस्स केवतिया ओरालियपोग्गल ? [उ०] एवं चेव, एवं जावचेमाणियस्स।
१८. [प्र०] एगमेगस्स गं भंते ! नेरइयस्स केवतिया वेउवियपोग्गलपरियट्टा अतीता? [उ.] अणंता, एवं जहेव ओरालियपोग्गलपरियट्टा तहेव वेउचियपोग्गलपरियट्टाऽवि भाणियचा, एवं जाव वेमाणियस्स, एवं जाव-आणापाणुपोग्गलपरियट्टा, पते पगत्तिया सत्त दंडगा भवंति।
१९. [प्र०] नेरइयाणं भंते ! केवतिया ओरालियपोग्गलपरियट्टा अतीता? [उ०] गोयमा! अणंता, केवइया पुरेक्खडा? [उ०] अणंता, एवं जाव-वेमाणियाणं, एवं वेउवियपोग्गलपरियट्टाऽवि, एवं जाव-आणापाणुपोग्गलपरियट्टा, जाव-वेमाणियाणं, एवं एए पोहत्तिया सत्त चउच्चीसतिदंडगा।
• १३. हे भगवन् ! ए परमाणुपुद्गलोना संयोग अने भेदना संबंधथी अनन्तानन्त पुद्गलपरिवर्तो जाणवा योग्य छे माटे कह्या छे! अनन्तानन्त, पुद्गल [उ.] हा, गौतम! संयोग अने मेदना योगथी ए परमाणुपुद्गलोना अनंतानंत पुद्गलपरिवर्तो जाणवा योग्य छे माटे कह्या छे.
परिवतो.
१४. प्र०] हे भगवन् ! पुद्गलपरिवर्तो केटला प्रकारना कह्या छे ! [उ०] हे गौतम! पुद्गलपरिवर्तों सात प्रकारना कह्या छे, ते आ प्रमाणे-१ औदारिकपुद्गलपरिवर्त, २ वैक्रियपुद्गलपरिवर्त, ३ तैजसपुद्गलपरिवर्त, ४ कार्मणपुद्गलपरिवर्त, ५ मनपुद्गलपरिवर्त, ६ वचनपुद्गलपरिवर्त अने ७ आनप्राणपुद्गलपरिवर्त.
पुद्गलपरिवर्तना
प्रकार.
१५. प्रि०] हे भगवन् ! नैरयिकोने केटला प्रकारना पुद्गलपरिवर्तो कह्या छे ! [उ०] हे गौतम | तेओने सात पुद्गलपरिवों कह्या नैरयिकोने पदलछे, ते आ प्रमाणे-१ औदारिकपुद्गलपरिवर्त, २ वैक्रियपुद्गलपरिवर्त, यावद् ७ आनप्राणपुद्गलपरिवर्त. ए प्रमाणे यावद्-वैमानिको सुधी जाणवं. परिवतो.
१६. प्रि०हे भगवन् ! एक एक नैरयिकने केटला औदारिकपुद्गलपरिवर्तो अतीत-थया छे ! [उ०] हे गौतम ! अनन्त थया छे. एक नरयिकने औदा[प्र०] केटला थनारा छे ! [उ०] कोइने थवाना होय छे अने कोइने नथी; जेने थवाना छे तेने जघन्यथी एक, बे के त्रण थवाना छे: अने रिकपुद्गलपरिवो. उत्कृष्टथी संख्याता, असंख्याता के अनन्ता थवाना होय छे.
१७. [प्र०] हे भगवन् ! एक एक असुरकुमारने केटला औदारिकपुद्गलपरिवर्तो थया छे ? [उ०] ए प्रमाणे-उपर कह्या प्रमाणे भमुरकुमारने औदाजाणवू, ए प्रमाणे यावद् वैमानिक सुधी जाणवू.
रिकपुद्गलपरिवर्त. १८. [प्र०] हे भगवन् ! एक एक नैरयिकने केटला वैक्रियपुद्गलपरिवर्तो थया छे ! [उ०] अनन्ता थया छे. ए प्रमाणे जेम औदा- एक नायिकने वैकिरिकपुद्गलपरिवर्त संबन्धे कडं तेम वैक्रियपुद्गलपरावर्त संबन्धे पण जाणवू. यावद् वैमानिक सुधी कहे. ए प्रमाणे यावद् आनप्राणपुद्गलपरिवर्त यपुद्गलपरिवतों. संबन्धे पण जाणवु. ए प्रमाणे एक एकने आश्रयी सात दंडको थाय छे.
१९. [प्र०] हे भगवन् ! नैरयिकोने केटला औदारिकपुद्गलपरिवर्तो थया छे ? [उ०] हे गौतम! अनन्ता थया छे. [प्र०] केटला नैरयिकोने पुल औदारिकपुद्गलपरिवर्तो थवाना छे! [उ०] अनन्ता थवाना छे. ए प्रमाणे यावद् वैमानिको सुधी जाणवू. ए रीते वैक्रियपुद्गलपरिवर्तो, यावद् आनप्राणपुद्गलपरिवर्तो संबन्धे पण यावत् वैमानिको सुधी जाणवू. एम [सात पुद्गलपरिवर्त संबन्धे] बहुवचनने आश्रयी सात दंडको [नैरयिकादि ] चोवीश दंडके कहेवा.
परिवत.
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