Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust

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Page 304
________________ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे शतक १२.-उद्देशक ७, १०. प्र०] अयं णं भंते ! जीवे असंखेजेसु पुढविकाइयावाससयसहस्सेसु एगमेगसि पुढविक्काइयावासंसि पुढविकाइयत्ताए जाव-वणस्सइकाइयत्ताए उववन्नपुवे ? [उ०] हंता गोयमा ! जाव-अणतखुत्तो । एवं सधजीवा वि, एवं जाव-वणस्सइकाइएसु। ११. [प्र०] अयं णं भंते ! जीवे असंखेजेसु बेदियावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि दियावासंसि पुढविक्काइयत्ताए, जाववणस्सइकाइयत्ताए, बेइंदियत्ताए उववन्नपुवे ? [उ०] हंता गोयमा! जाव-खुत्तो । सधजीवा विणं एवं चेव, एवं जाव-मणुस्सेसु, नवरं तेंदियपसु जाव-वणस्सइकाइयत्ताए तेंदियत्ताए, चारिदिपसु चरिंदियत्ताए, पंचिंदियतिरिक्खजोणिएसु पंचिंदियतिरिक्खजोणियत्ताए, मणुस्सेसु मणुस्सत्ताए, सेसं जहा दियाणं, वाणमंतर-जोइसिय-सोहम्मी-साणाण य जहा असुरकुमाराणं । १२. प्र०] अयं णं भंते ! जीवे सणंकुमारे कप्पे वारससु विमाणावाससयसहस्सेसु एगमेगसि वेमाणियावासंसि पुढविकाइयत्ताए[उसेसं जहा असुरकुमाराणं जाव-अणंतखुत्तो, नो चेव णं देवित्ताए, एवं सधजीवा वि एवं जाव-आणय -पाणएसु, एवं आरण-युएसु वि । १३. [प्र०] अयन्नं भंते ! जीवे तिसु वि अट्टारसुत्तरेसु गेविजविमाणावाससयेसु० [उ.] एवं चेव । १४. [प्र०] अयन्नं भंते ! जीवे पंचसु अणुत्तरविमाणेसु एगमेगंसि अणुत्तरविमाणंसि पुढवि० [उ०] तहेव जावअणंतखुत्तो, नो चेव णं देवत्ताए वा देवीत्ताए पा, एवं सधजीवा वि । १५. [प्र०] अयन्नं भंते ! जीवे सधजीवाणं माइत्ताए, पितित्ताए, भाइत्ताए, भगिणित्ताए, भजताए, पुत्तत्ताए, धूयताए, सुण्हत्ताए उववनपुरे ? [उ०] हंता गोयमा ! असई, अदुवा अणंतखुत्तो। १६. [प्र०] सधजीवा वि णं भंते ! इमस्स जीवस्स माइत्ताए जाव-उववनपुवा ? [उ०] हंता गोयमा! जायअणंतखुत्तो। पृथिवीकायिकावास १०. [प्र०] हे भगवन् ! आ जीव असंख्याता लाख पृथिवीकायिकावासमांना एक एक पृथिवीकायिकावासमां पृथिवीकायिकपणे मां पूर्वे उत्पन्न थयो ? यावद्-वनस्पतिकायिकपणे पूर्व उत्पन्न थयो छे । [उ०] हा, गौतम! यावत्-अनंतवार उत्पन्न थएलो छे; ए प्रमाणे सर्व जीवो पण जाणवा. ए प्रमाणे यावत्-वनस्पतिकायिकोमा पण जाणवू. मेइन्द्रियावासमा पूर्वे ११. [प्र०] हे भगवन्! आ जीव असंख्याता लाख बेइंद्रियावासमांना एक एक बेइंद्रियावासमां पृथिवीकायिकपणे, यावत्उत्पन्न भयो । वनस्पतिकायिकपणे अने बेइंद्रियपणे पूर्व उत्पन्न थएलो छे ? [उ०] हा, गौतम! त्यां यावद्-अनंतवार उत्पन्न थएलो छे. सर्व जीवो पण ए प्रमाणे जाणवा, ए प्रमाणे यावदू-मनुष्योमा जाणवू. परन्तु विशेष ए छे के, तेइंद्रियोमा यावद्-वनस्पतिकायिकपणे, यावत् तेइंद्रियपणे चउरिंद्रियोमा चरिंद्रियपणे, पंचेंद्रियतिर्यंचयोनिकोमा पंचेंद्रियतिर्यंचयोनिकपणे, अने मनुष्योमा मनुष्यपणे उत्पत्ति जाणवी. बाकी बधुं बेइंद्रियोनी पेठे जाणवू. जेम असुरकुमारो संबंधे कह्यं तेम वानव्यंतर, ज्योतिष्क, सौधर्म अने ईशानमा पण जाणवू. सनत्कुमारकल्पमा. १२. [प्र०] हे भगवन् ! आ जीव सनत्कुमार कल्पमां तेना बार लाख विमानावासमांना एक एक वैमानिकावासमां पृथिवीकायपणे, यावत्-पूर्वे उत्पन्न थयलो छे ? [उ०] बाकीनुं बधुं असुरकुमारोनी पेठे (सू० ९) यावद्-'अनंतवार उत्पन्न थएलो छे' त्यां सुधी जाणवू. पण त्यां देवीपणे उत्पन्न थयो नथी. ए प्रमाणे सर्व जीवो संबन्धे पण जाणवू. ए प्रमाणे यावत्-आनत अने प्राणतमा तथा आरण-अच्युता पण जाणq. मैनेयक विमाना- १३. [प्र०] हे भगवन् ! आ जीव त्रणसोने अढार अवेयक विमानावासमांना एक एक आवासमां पृथिवीकायिकपणे, यावद्-पूर्वे वासमा. उत्पन्न थएलो छे! [उ०] ए प्रमाणे जाणवू. (यावत्-अनंतवार उत्पन्न थएलो छे.) अनुत्तर विमाना.. १४. [प्र०] हे भगवन्! आजीव पांच अनुत्तर विमानोमांना एक एक अनुत्तर विमानमा पृथिवीकायिकपणे, (यावत्-पूर्वे उत्पन्न भएलो वासमा. छे!) [उ०] ते प्रमाणे यावदू-अनंतवार उत्पन्न थएलो छे, पण देवपणे अने देवीपणे उत्पन्न थयो नथी. ए प्रमाणे सर्व जीवो पण जाणवा. मा नीव सर्व जीवोना १५. [प्र०] हे भगवन् ! आ जीव सर्व जीवोना मातापणे, पितापणे, भाईपणे, बहेनपणे, स्त्रीपणे, पुत्रपणे, पुत्री अने पुत्रवधूपणे पूर्व • माता पिता इत्यादि -संबन्धरूपे उत्पन्न उत्पन्न थएलो छे ! [उ०] हा, गौतम! अनेकवार, अथवा अनंतवार उत्पन्न थयेलो छे. थयो छे ? सर्व जीवो आ जीवना १६. [प्र०] हे भगवन् ! सर्व जीवो पण आ जीवना मातापणे, यावत्-पूर्व उत्पन्न थएंला छे ? [उ०] हा, गौतम! थावद्-अनेकमांता इत्यादि सबग्धरूपे उत्पन्न वार अथवा अनंतवार उत्पन्न थया छे. थया छे! Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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