Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
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२९६ . श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
शतक १२:-उद्देशक १०. उवयोगायाए वि उवरिल्लाहिं समं भाणियथा । जस्स नाणाया तस्स दसणाया नियम अस्थि, जस्स पुण दंसणाया तस्स णाणाया भयणाए, जस्स नाणाया तस्स चरित्ताया सिय अस्थि सिय नत्थि, जस्स पुण चरित्ताया तस्स नाणाया नियम अस्थि, णाणाया वीरियाया दो वि परोप्परं भयणाए । जस्स दंसणाया तस्स उवरिमाओ दो वि भयणाए, जस्स पुण ताओ तस्स दंसणाया नियम अस्थि । जस्स चरित्ताया तस्स वीरियाया नियम अत्थि, जस्स पुण चीरियाया तस्स चरित्ताया सिय अस्थि सिय नत्थि।
६. [प्र०] एयासि णं भंते ! दवियायाणं, कसायायाणं, जाव-वीरियायाण य कयरे कयरेहितो जाव-विसेसाहिया वा? [उ०] गोयमा ! सवत्थोवाओ चरित्तायाओ, नाणायाओ अणंतगुणाओ, कसायाओ अर्णतगुणाओ, जोगायाओ विसेसा. हियाओ, वीरियायाओ विसेसाहिआओ, उवयोग-दविय-दसणायाओ तिन्नि वि तुल्लाओ विसेसाहिआओ।
७. [प्र०] आया भंते ! नाणे अन्नाणे ? [उ०] गोयमा ! आया सिय नाणे सिय अन्नाणे, गाणे पुण नियमं आया ।
८. [प्र०] आया भंते ! नेरइयाणं नाणे, अन्ने नेरइयाणं नाणे ? [उ०] गोयमा ! आया नेरइयाणं सिय नाणे, सिय अनाणे। नाणे पुण से नियमं आया, एवं जाव थणियकुमाराणं ।
९. [प्र.] आया भंते ! पुढविकाइयाणं अन्नाणे, अन्ने पुढविकाइयाणं अन्नाणे? [30] गोयमा! आया पुढविकाइयाणं अन्नाणे, अन्नाणे वि नियमं आया, एवं जाव वणस्सइकाइयाणं, बेइंदिय-तेइंदिय-जाव-धेमाणियाणं जहा नेरहयाणं । १०. [प्र०] आया भंते ! दंसणे, अन्ने दंसणे ? [उ०] गोयमा ! आया नियमं दसणे, दंसणे वि नियमं आया।
११. [प्र० आया भंते! नेरइयाणं दसणे, अन्ने नेरइयाणं दसणे? [उ०] गोयमा! आया नेरइयाणं नियमा दंसगे, दसणे वि से नियमं आया, एवं जाव-वेमाणिआणं निरंतरं दंडओ।
नियम
पण उपरना आत्माओनी साथे वक्तव्यता कहेवी. जेने *ज्ञानात्मा होय तेने दर्शनात्मा अवश्य होय, भने जेने वळी दर्शनात्मा होय तेने ज्ञानात्मा भजनाए होय. जेने ज्ञानात्मा होय तेने चारित्रात्मा भजनाए होय-एटले कदाचिद् होय अने कदाचिद् न होय, वळी जेने चारित्रात्मा होय तेने ज्ञानात्मा अवश्य होय. तथा ज्ञानात्मा अने वीर्यात्मा-ए बन्ने परस्पर भजनाए-विकल्पे होय. जेने दर्शनात्मा होय तेने उपरना चारित्रात्मा, वीर्यात्मा ए बन्ने भजनाए होय, वळी जेने ते बन्ने आत्मा होय तेने दर्शनात्मा अवश्य होय. जेने चारित्रात्मा होय तेने अवश्य वीर्यात्मा होय, वळी जेने वीर्यात्मा होय तेने चारित्रात्मा कदाचिद् होय अने कदाचिद् न होय.
. ६. [प्र०] हे भगवन् ! द्रव्यात्मा, कषायामा, यावद्-वीर्यात्मामां कया आत्मा कोनाथी यावद्-विशेषाधिक छे ? [उ०] हे गौतम! १ अस्पबहुत्व.
सौथी थोडा चारित्रात्मा छे, २ ते करतां ज्ञानात्मा अनंतगुण छे, ३ तेथी कषायात्मा अनंतगुण छे, ४ ते करतां योगात्मा विशेषाधिक छे, ५ तेथी वीर्यात्मा विशेषाधिक छे, ६ ते करतां उपयोगात्मा, द्रव्यात्मा अने दर्शनात्मा-ए त्रणे विशेषाधिक छे अने परस्पर तुल्य छे.
७. प्र. हे भगवन् ! आत्मा ज्ञानवरूप छे के अज्ञानस्वरूप छे ! [उ०] हे गौतम ! आत्मा कदाचित् ज्ञानस्वरूप छे, अने मात्मा ज्ञान स्वरूप छे के कदाचित् अज्ञानस्वरूप छे. पण ज्ञान तो अवश्य आत्मस्वरूप छे.
८..प्र०] हे भगवन् ! नैरयिकोनो आत्मा ज्ञानरूप छे, के अज्ञानरूप छे ! [उ०] हे गौतम ! नैरयिकोनो आत्मा कदाचिद ज्ञानयिकोनो आत्मा.
रूप छे, अने कदाचिद् अज्ञानरूप पण छे. परन्तु तेओनुं ज्ञान अवश्य आत्मरूप छे. ए प्रमाणे यावत्-स्तनितकुमारो सुधी जाणवू. थिवीकायिकोनो
९. [प्र०] हे भगवन् ! पृथ्वीकायिकोनो आत्मा ज्ञानरूप छे के अज्ञानरूप छे ? [उ०] हे गौतम! पृथ्वीकायिकोनो आत्मा अवश्य भात्मा. अज्ञानरूप छे, अने तेओर्नु अज्ञान पण अवश्य आत्मरूप छे. ए प्रमाणे यावद्-वनस्पतिकायिको सुधी जाणवू. वेइन्द्रिय, त्रीन्द्रिय अने
यावद्-वैमानिकोने नैरयिकोनी पेठे (सू०८) जाणवु.
१०. प्र० हे भगवन् ! आत्मा दर्शनरूप छे के तेथी दर्शन बीजुं छे? [उ०] हे गौतम! आत्मा अवश्य दर्शनरूप छे अने के तेथी अन्य छे ? दर्शन पण अवश्य आत्मा छे.
अन्यस्वरूप छे?
विकोनो भात्मा.
११. [प्र०] हे भगवन्! नैरयिकोनो आत्मा दर्शनरूप छे? के नैरयिकोर्नु दर्शन तेथी अन्य छे? (उ०] हे गौतमनैरयिकोनो आत्मा अवश्य दर्शनरूप छे, अने तेओनुं दर्शन पण अवश्य आत्मा छे. ए प्रमाणे यावद्-वैमानिको सुधी निरंतर (चोवीस) दंडक कहेवा.
५. ज्ञानात्मा साथे उपरना प्रण आत्मानो संबन्ध बतावे छे. 1 दर्शनात्मा साथे उपरना बे पदोनो संबन्ध बतावे छे.
ज्ञान-सम्यग्ज्ञान अने अज्ञान-मिथ्याज्ञान प्रहण करवू.
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