Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
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२५४ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
शतक १२.-उद्देशक १. ट्रेड, आ०२-त्ता सत्त- पयाई अणुगच्छइ, अणुगच्छित्ता पोस्खलि समणोवासगं वंदति, नमसति, वंदित्ता नमंसित्ता आसणेणं उवनिमंतेइ, आ०२-प्ता एवं वयासी-'संदिसतु णं देवाणुप्पिया! किमागमणप्पयोयणं तए णं से पोषखली समणोवासए उप्पलं समणोवासियं एवं वयासी-कहिनं देवाणुप्पिए! संखे समणोवासए' ? तए णं सा उप्पला समणोषासिया पोक्वलि समणोवासयं एवं वयासी-एवं खल देवाणुप्पिया! संखे समणोवासए पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी जाव-विहरा।
६. तए णं से पोक्खली समणोवासए जेणेव पोसहसाला, जेणेव संखे समणोवासए तेणेव उवागच्छद, ते०.२-च्छिता गमणागमणाए पडिक्कमइ, ग० २-मित्ता संखं समणोवासगं वंदति नमंसति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-'एवं खलु देवाणुप्पिया! अम्हेहिं से विउले असणे०जाव-साइमे उवक्खडाविए, तं गच्छामो णं देवाणुप्पिया! तं विउलं असणं जाव-साइम आसाएमाणा जाव-पडिजागरमाणा विहरामो।
७. तए णं से संखे समणोवासए पोक्खलिं समणोवासगं एवं वयासी-णो खलु कप्पइ देवाणुप्पिया! तं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं आसाएमाणस्स जाव-पडिजागरमाणस्स विहरित्तए, कप्पइ मे पोसहसालाए पोसहियस्स जाव-विहरितए, तं छंदेणं देवाणुप्पिया! तुम्भे तं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं आसाएमाणा जाव विहरह।
८. तए णं से पोक्खली समणोवासए संखस्स समणोवासगस्स अंतियाओ पोसहसालाओपडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता सावत्थि नगरि मज्झं-मझेणं जेणेव ते समणोवासगा तेणेव उवागच्छइ, ते०२-च्छित्ता ते समणोवासए एवं वयासी-'एवं खलु देवाणुप्पिया! संखे समणोवासए पोसहसालाए पोसहिए जाव-विहरइ, तं छदेणं देवाणुप्पिया! तुझे विउलं असणं ४ जाव विहरह, संने णं समपोवासए नो हवमागच्छइ । तए णं ते समणोवासगा तं विउलं असणं ४ आसाएमाणा जाध-विहरंति ।
९. तए णं तस्स संखस्स समणोवासगस्स पुष्वरत्ता-वरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयमेयारूवे जाव -समुप्पजित्था-'सेयं खलु मे कलं जाव-जलंते समणं भगवं महावीरं वंदित्ता नमंसित्ता जाव-पजुवासित्ता तओ पडिनियत्तस्स पक्खियं पोसहं पारित्तए'त्ति कट्ठ एवं संपेहेति, एवं संपेहेत्ता कलं जाव जलंते पोसहसालाओ पडिनिक्खमति, पडिनिक्खमित्ता सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाइं वत्थाई पवरपरिहिए सयाओ गिहाओ पडिनिक्खमति, स०२-मित्ता पादविहारचारेणं सावत्थि नगरि मझमज्झेणं जाव-पजुवासति, अभिगमो नत्थि । ताना आसनथी उठी, सात आठ पगलां तेनी सामे जइ पुष्कलि श्रमणोपासकने वांदी अने नमी आसनवडे उपनिमंत्रण कर्या बाद आ प्रमाणे बोली-'हे देवानुप्रिय! कहो, के तमारा आगमननुं शुं प्रयोजन छे ? त्यारे ते पुष्कलि श्रमणोपासके ते उत्पला श्रमणोपासिकाने आ प्रमाणे कडं-'हे देवानुप्रिये ! शंख श्रमणोपासक क्या छे' ? त्यार बाद ते उत्पला श्रमणोपासिकाए ते पुष्कलि श्रमणोपासकने आ प्रमाणे कडं-'हे देवानुप्रिय ! खरेखर शंख श्रमणोपासक पोषधशालामा पोषध ग्रहण करी ब्रह्मचारी थइने यावद् विहरे छे.'
६. त्यार बाद ते पुष्कलि श्रमणोपासके ज्यां पोषधशाला छे, अने ज्यां शंख श्रमणोपासक छे त्यां आवी, गमनागमनने (जतां आवतां कोइ जीवनी हिंसा करी होय तेने) प्रतिक्रमी शंख श्रमणोपासकने वांदी अने नमीने तेने आ प्रमाणे कह्यु-'हे देवानुप्रिय ! ए प्रमाणे खरेखर अमे घणो अशन, यावत्-स्वादिम आहार तैयार कराव्यो छे, तो हे देवानुप्रिय ! आपणे जइए, अने पुष्कळ अशन, यावत्-स्वादिम
आहारनो आस्वाद लेता यावत्-पोषधनुं पालन करता विहरीए. शंखे कईके-आहा- ७. त्यार बाद ते शंख श्रमणोपासके ते पुष्कलि श्रमणोपासकने आ प्रमाणे का-'हे देवानुप्रिय! पुष्कळ अशन, पान, खादिम
अने खादिम आहारनो आस्वाद लेता यावत् पोषधनुं पालन करी विहरवू मने योग्य नथी, मने तो पोषधशालामां पोषधयुक्त थइने यावत्पोषधन पालन
विहवू योग्य छे. माटे हे देवानुप्रिय! तमे इच्छा प्रमाणे घणा अशन, पान, खादिम अने स्वादिम आहारनो आस्वाद लेता यावद् विहरो.' नधी.
८. त्यार बाद ते पुष्कलि श्रमणोपासक शंख श्रमणोपासकनी पासेथी पोषधशालामांथी बहार नीकळी श्रावस्ती नगरीना मध्यभागमा ज्यां ते श्रमणोपासको छे त्यां आव्यो, अने त्यां आवी ते श्रमणोपासकोने आ प्रमाणे कडं-'हे देवानुप्रियो ! ए प्रमाणे खरेखर शंख श्रमणोपासक पोषधशालामा पोषध ग्रहण करीने यावद् विहरे छे. [ तेणे कडुं छे के-] 'हे देवानुप्रियो! तमे इच्छा मुजब घणा अशन, पान, खादिम अने स्वादिम आहारनो आस्वाद लेता यावत् विहरो, शंख श्रमणोपासक तो शीघ्र नहि आवे'. त्यार बाद ते श्रमणोपासको ते विपुल
अशन, पान, खादिम अने स्वादिम आहारने आखादता यावद्-विहरे छे.. शंखनो महाबीर ९. त्यार बाद मध्य रात्रिना समये धर्म जागरण करता ते शंख श्रमणोपासकने आवा प्रकारनो आ विचार यावत् उत्पन्न थयोस्वामिने वंदन करवानो संकरप.
'आवती काले यावत् सूर्य उगवाना समये श्रमण भगवंत महावीरने वांदी, नमी यावत् पर्युपासना करी त्यांथी पाछा आवीने पाक्षिक पोषध
पारवो श्रेयस्कर छे'-एम विचार करे छे, एम विचारी आवती काले यावत् सूर्योदय समये पोपधशालाथी बहार नीकळी शुद्ध, बहार शंख भगवंतने Mirasad जवा योग्य तथा मंगलरूप वस्रो उत्तम रीते पहेरी पोताना घरथी वहार नीकळी पगे चाली श्रावस्ती नगरीना मध्यभागमा थइने जाय छे,
यावत् पर्युपासना करे छे. अहिं [पोपयुक्त होवाथी ] तेने *अभिगमो नथी..
*पांच अभिगम संवन्धे जुओ भग० खं० १ श० २ उ०५ पृ. २७९.
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