Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust

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Page 273
________________ शतक १२.-उद्देशक १. भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र. २५३ नमंसित्ता पासिणाई पुच्छंति प०२-च्छित्ता अट्ठाई परियादियंति, अ०२-यित्ता उट्टाए उट्टेति, उ०२-त्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ कोट्टयाओ चेहयाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव सावत्थी नगरी तेणेव पहारेत्थ गमणाए । २. तए णं से संखे समणोवासए ते समणोवासए एवं वयासी-'तुझे णं देवाणुप्पिया! विउलं असणं पाणं खाइम साइमं उवक्खडावेह, तए णं अम्हे तं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं आसाएमाणा विसाएमाणा परिभाएमाणा परिभुंजेमाणा पक्खियं पोसह पडिजागरमाणा विहरिस्सामो। तए णं ते समणोवासगा संखस्स समणोवासगस्स एयम, विणएणं पडिसुणेति । तए णं तस्स संखस्स समणोवासगस्स अयमेयारूवे अब्भत्थिए जाव-समुप्पजित्था-'नो खलु मे सेयं तं विउलं असणं जाव-साइमं आसाएमाणस्स ४ पक्खियं पोसह पडिजागरमाणस्स विहरित्तए, सेयं खल मे पोसहसालाए पोसहियस्स बंभचारिस्स उम्मुक्कमणि-सुवन्नस्स ववगयमाला-वन्नग-विलेवणस्स निक्खित्तसत्थ-मुसलस्स एगस्स अबिइयस्स दन्भसंथारोवगयस्स पक्खियं पोसहं पडिजागरमाणस्स विहरित्तए'त्ति कट्ट एवं संपेहेति, संपेहेत्ता जेणेव सावत्थी नगरी, जेणेव सप गिहे, जेणेव उप्पला समणोवासिया, तेणेव उवागच्छइ,ते०२-च्छित्ता उप्पलं समणोवासियं आपुच्छर, आपुच्छित्ता जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, ते०२-च्छित्ता पोसहसालं अणुपविस्सइ, अणुपविस्सित्ता पोसहसालं पमजाइ, पो. २-जित्ता उच्चारपासवणभूमि पडिलेहेइ, उ० २-हित्ता दब्भसंथारगं संथरति, दम्भ० २-रिता दम्भसंथारगं दुरूहह. द०२ दुरूहित्ता पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी जाव-पक्खियं पोसहं पडिजागरमाणे विहरति । ३. तए णं ते समणोवासगा जेणेव सावत्थी नगरी जेणेव साई २ गिहाई,तेणेव उवागच्छंति, ते २-च्छित्ता विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेंति, उवक्खडावेत्ता अन्नमन्नं सहावेंति, अ०२-वेत्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया! अम्हहिं से विउले असण-पाण-खाइम-साइमे उवक्खडाविए, संख्ने य णं समणोवासए नो हवमागच्छद, तं सेयं खलु देवाणुप्पिया! अहं संखं समणोवासगं सहावेत्तए। ४. तए णं से पोक्खली समणोवासए ते समणोवासए एवं वयासी-'अच्छह णं तुझे देवाणुप्पिया! सुनिव्वुया वीसत्था. अहन्नं संखं समणोवासगं सद्दावेमित्ति कट्ट तेसि समणोवासगाणं अंतियाओ पडिनिक्खमति, पडिनिक्खमित्ता सावत्थीए नगरीए मझं-मज्झेणं जेणेव संखस्स समणोवासगस्स गिहे, तेणेव उवागच्छइ, ते २-च्छित्ता संखस्स समणोवासगस्स गिहं अणुपविटे। ५.तए णं सा उप्पला समणोवासिया पोक्खलिं समणोवासयं एजमाणं पासइ, पासित्ता हतुट्ट० आसणाओ अब्भु M नथी. अर्थों ग्रहण कर्या, अर्थों ग्रहण करी अने उभा थई श्रमण भगवंत महावीर पासेथी अने कोष्ठक नामे चैत्यथी नीकळीने तेओए श्रावस्ती नगरी तरफ जवानो विचार को. २. पछी ते शंख नामे श्रमणोपासके ए बधा श्रमणोपासकोने आ प्रमाणे कडं के हे देवानुप्रियो! तमे पुष्कळ अशन, पान, खादिम अने खादिम आहारने तैयार करावो, पछी आपणे पुष्कळ अशन, पान, खादिम अने खादिम आहारनो आखाद लेता, विशेष खाद लेता, परस्पर देता अने खाता पाक्षिक पोषधनुं अनुपालन करता विहरीशुं. त्यार पछी ते श्रमणोपासकोए शंख नामना श्रमणोपासकनुं वचन विनयपूर्वक स्वीकार्य. त्यार बाद ते शंख नामे श्रमणोपासकने आवा प्रकारनो आ संकल्प यावद् उत्पन्न थयो-'अशन, यावत् खादिम आहारनो आखाद लेता, विवाद लेता, परस्पर आपता अने खाता पाक्षिक पोषधने ग्रहण करीने रहे मने श्रेयस्कर नथी, पण मारी पोषधशा- शंखनो संकल्प पशनादिनो आहार लामां ब्रह्मचर्यपूर्वक, मणि अने सुवर्णनो त्याग करी माला, उद्वर्तन अने विलेपनने छोडी शस्त्र अने मुसल वगेरेने मूकीने तथा डाभना , " परवा पाक्षिक पोषष संथारा सहित मारे एकलाने-बीजानी सहाय शिवाय-पोषधनो स्वीकार करी विह श्रेय छे.' एम विचार करी, श्रावस्ती नगरीमा ज्यां वो मने श्रेयस्कर पोतार्नु घर छे, अने ज्यां उत्पला श्रमणोपासिका रहे छे, त्यां आवी उत्पला श्रमणोपासिकाने पूछी, ज्यां पौषधशाला छे त्या जइ, पोषधशालामा प्रवेश करी, पोषधशालाने प्रमार्जी निहार अने पेशाब करवानी जग्याने प्रतिलेही-तपासीने डाभनो संथारो पाथरी तेना उपर बेठो, बेसीने पोषधशालामा पोषधग्रहण करी ब्रह्मचर्यपूर्वक यावत् पाक्षिक पोषधनुं पालन करे छे. ३. त्यार बाद ते श्रमणोपासकोए श्रावस्ती नगरीमा पोतपोताने घेर जइ, पुष्कळ अशन, पान, खादिम अने स्वादिम आहारने तैयार करावी परस्पर एक बीजाने बोलावी आ प्रमाणे का-'हे देवानुप्रियो! आपणे पुष्कळ अशन, पान, खादिम अने स्वादिम आहारने तैयार भीगन माट शव ममणोपासकने यो करावेलो छे, पण ते शंख श्रमणोपासक जलदी आव्या नहि, माटे हे देवानुप्रियो! आपणे शंख श्रमणोपासकने बोलाववा श्रेयस्कर छे. नववा योग्य छे, ४. त्यार बाद ते पुष्कली नामना श्रमणोपासके ते श्रमणोपासकोने आ प्रमाणे कयुं-'हे देवानुप्रियो ! तमे शांतिपूर्वक विसामो ल्यो, पुफलि शंखने योअने हुं शंख श्रमणोपासकने बोलावं छं, एम कही श्रमणोपासकोनी पासेथी नीकळी श्रावस्ती नगरीना मध्य भागमां ज्यां शंख श्रमणोपास कावया याप . कर्नु घर छे, त्यां जइ तेणे शंख श्रमणोपासकना घरमा प्रवेश कर्यो. ५. पछी ते [शंख श्रावकनी पत्नी ] उत्पला श्रमणोपासिका ते पुष्कलि श्रमणोपासकने आवतो जोइ, हर्षित अने संतुष्ट थई पो Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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