Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
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शतक ९.-उद्देशक ३२. भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र.
१३९ ६. प्रि० संतरं भंते ! पुढविकाइया उबटुंति-पुच्छा। [उ०] गंगेया। णो संतरं पुढविकाइया उबटुंति, निरंतरं पढविकाइया उच्घटुंति; एवं जाव वणस्सइकाइया नो संतरं, निरंतरं उच्चस॒ति ।
७. [प्र०] संतरं भंते ! बेइंदिया उच्वटंति, निरंतरं बेइंदिया उवटंति ? [उ०] गंगेया ! संतरं पि बेइंदिया उच्चदंति, निरंतरं पि बेइंदिया उच्चद॒ति; एवं जाव वाणमंतरा ।
८. [प्र०] संतरं भंते ! जोइसिया चयंति-पुच्छा । [उ०] गंगेया! संतरं पि जोइसिया चयंति, निरंतर पि जोइसिया चयंति; एवं जाव वेमाणिया वि।
९. [प्र०] कइविहे णं भंते ! पवेसणए पन्नत्ते ? [उ०] गंगेया ! चउधिहे पवेसणए पन्नत्ते, तं जहा-नेरहयपवेसणए, "तिरिक्खजोणियपवेसणए, मणुस्सपवेसणए, देवपवेसणए ।
१०. [प्र०] नेरइयपवेसणए णं भंते ! कइविहे पन्नत्ते ? [उ०] गंगेया ! सत्तविहे पन्नत्ते, तं जहा-रयणप्पभापुढविनेरयपवेसणए, जाव अहेसत्तमापुढविनेरतियपवेसणए ।
११. [प्र०] एगे णं भंते ! नेरइए नेरइयपवेसणएणं पविसमाणे किं रयणप्पभाए होजा, सकरप्पभाए होजा, जाव अहेसत्तमाए होजा? [उ०] गंगेया! रयणप्पभाए वा होजा, जाव अहेसत्तमाए वा होजा ।
१२. प्र०] दो भंते ! नेरइया नेरइयपवेसणएणं पविसमाणा किं रयणप्पभाए होजा, जाव अहेसत्तमाए होजा? [उ०] गंगेया! रयणप्पभाए वा होजा, जाव अहेसत्तमाए वा होजा । अहवा एगे रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए होजा, अहवा एगे रयणप्पभाए एगे वालुयप्पभाए होजा; जाव एगे रयणप्पभाए एगे अहेसत्तमाए होजा । अहवा एगे सकरप्पभाए एगे वालुय
६. [प्र०] हे भगवन् ! पृथिवीकायिक जीवो सांतर च्यवे छे! -इत्यादि प्रश्न. [उ०] हे गांगेय ! पृथिवीकायिक जीवो निरंतर च्यवे पृथिवीकायिकादिनुं
सान्तर के निरन्तर छे पण सांतर च्यवता नथी. ए प्रमाणे यावत् वनस्पतिकायिक जीवो सान्तर च्यवता नथी, पण निरन्तर च्यवे छे.
व्यवन७. प्र०] हे भगवन् ! बेइन्द्रिय जीवो सांतर च्यवे छे के निरंतर च्यवे छे! [उ०] हे गांगेय! बेइन्द्रिय जीवो सांतर पण च्यवे छे बेहन्द्रियादि. अने निरंतर पण च्यवे छे. ए प्रमाणे यावद् वानव्यन्तर सुधी जाणवू.
८. [प्र०] हे भगवन् ! ज्योतिषिक देवो सांतर च्यवे छे?-इत्यादि प्रश्न. [उ०] हे गांगेय! ज्योतिषिक देवो सांतर पण च्यवे छे अने ज्योतिषिक निरंतर पण च्यवे छे. ए प्रमाणे यावद् वैमानिक देवो सुधी जाणवू.
९. प्र०] हे भगवन् ! *प्रवेशनक (उत्पत्ति) केटला प्रकारे कहेल छे! [उ०] हे गांगेय! प्रवेशनक चार प्रकारे कयां छे. ते आ प्रवेशनक प्रमाणे-१ नैरयिकप्रवेशनक, २ तिर्यंचयोनिकप्रवेशनक, ३ मनुष्यप्रवेशनक अने ४ देवप्रवेशनक.
१०. [प्र०] हे भगवन् ! नैरयिकप्रवेशनक केटला प्रकारे कर्तुं छे? [उ०] हे गांगेय! सात प्रकारे कयुं छे. ते आ प्रमाणे-१ नैरषिकप्रवेशनक. रत्नप्रभापृथिवीनैरयिकप्रवेशनक, यावद् ७ अधःसप्तमपृथिवीनैरयिकप्रवेशनक.
११. प्र०] हे भगवन् ! एक नारक जीव नैरयिकप्रवेशनकद्वारा प्रवेश करतो शुं १ रत्नप्रभापृथिवीमां होय, २ शर्कराप्रभापृथिवीमा एक नैरविकहोय के यावद ७ अधःसप्तमपृथिवीमां होय ! [उ०] हे गांगेय! ते १ रत्नप्रभापृथिवीा पण होय, यावद् ७ अिधःसप्तमपृथिवीमा पण होय.
१२. [प्र०] हे भगवन्! बे नारको नैरयिकप्रवेशनकद्वारा प्रवेश करता \ रत्नप्रभापृथिवीमा उत्पन्न थाय के यावद् अधःसप्तमपृ. नैरयिकथिवीमा उत्पन्न थाय! [उ०] हे गांगेय! ते बन्ने १ रनप्रभापृथिवीमां होय, के यावद् ७ अधःसप्तमनरकपृथिवीमा होय. १ अथवा एक रत्नप्रभापृथिवीमां होय अने एक शर्कराप्रभापृथिवीमां होय. २ अथवा एक रत्नप्रभापृथिवीमां होय अने एक वालुकाप्रभापृथिवीमा होय. यावत् ६ एक रत्नप्रभामा होय अने एक अधःसप्तमनरकपृथिवीमां होय. [३ एक रत्नप्रभापृथिवीमां होय अने एक पंकप्रभापृथिवीमा होय.४ अथवा एक रत्नप्रभापृथिवीमां होय अने एक धूमप्रभापृथिवीमा होय. ५ अथवा एक रत्नप्रभापृथिवीमां होय अने एक तमःप्रभापृथिवीमा होय.
१ तिरियजो-ग-घ। ९.* बीजी गतिमांथी च्यवीने विजातीय गतिमा जीवनो प्रवेश-उत्पाद थवो ते प्रवेशनक कहेवाय छे.-टीका. ११. 1 नहीं एक नारकना रत्नप्रभादि सात पृथिवीने आश्रयी सात विकल्प थाय छे.
१२. 1 बे नारकोना अव्यावीश विकल्पो थाय छे. तेमां एक एक पृथिवीमा बन्ने नारकोनी उत्पत्तिने आधयी सात भांगा थाय छे, तथा बे पृथिवीने विषे एक एक नारकनी उपत्ति बडे द्विकसंयोगी एकवीश भांगा थाय छे.
मूळ सूत्रपाठमा नहि आपेला भंगो आवा [ ] कोष्ठक नी अंदर आपेला छे. अहीं त्रीजा भंगथी मांडी उहा भंगसुधीना भंगो आप्या छे.
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