Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
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२४२
श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
शतक ११.-उद्देशक ११.
गम्भस्स हियं मितं पत्थं गम्भपोसणं तं देसे य काले य आहारमाहारेमाणी विवित्तमउएहिं सयणा-सहिं पइरिकसुहाए मणाणुकूलाए विहारभूमीए पसत्यदोहला संपुग्नदोहला सम्माणियदोहला अविमाणियदोहला वोच्छिन्नदोहला ववणीयदोहला चवगयरोग-मोह-भय-परित्तासा तं गम्भं सुहं-सुहेणं परिवहति । तए णं सा पभावती देवी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुनाणं अद्धट्रमाणराइंदियाणं वीतिकंताणं सुकुमालपाणि-पायं अहीणपडिपुन्नपंचिंदियसरीरं लक्खण-बंजणगुणोववेयं जाव-ससिसोमाकारं कंतं पियदसणं सुरूवं दारयं पयाया।
२७. तए णं तीसे पभावतीए देवीए अंगपंडियारियाओ पभावतिं देवि पसूर्य जाणेत्ता जेणेव बले राया तेणेव उवागच्छन्ति, तेणेव उवागच्छित्ता करयल० जाव-बलं रायं जयेणं विजएणं वद्धाति, जएणं विजएणं वद्धावेत्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया! पभावतीपियट्टयाए पियं निवेदेमो, पियं भे भवउ' । तए णं से बले राया अंगपडियारियाणं अंतियं एयमटुं सोचा निसम्म हट्ठ-तुटु० जाव-धाराहयणीव० जाव-रोमकूवे तासिं अंगपडियारियाणं मउडवजं जहामालियं ओमोयं दलयति, दलयित्ता सेतं रययामयं विमलसलिलपुनं भिंगारं च गिण्हइ, गिण्हित्ता मत्थए धोवइ, मत्थए धोवित्ता विउलं जीवियारिहं पीइदाणं दलयति, पीइदाणं दलयित्ता सकारेति सम्माणेति ।
२८. तए णं से बले राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेद, सद्दावेत्ता एवं वयासी-'खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! हत्थिणापुरे नयरे चारगसोहणं करेह, चारग० २-करेत्ता माणुम्माणवडणं करेह, मा० करेत्ता २ हथिणापुर नगरं सभितरबाहिरियं आसिय-संमजिओ-वलितं जाव-करेह कारवेह, करेत्ता य कारवेत्ता य यसहस्सं वा चक्कसहस्सं वा पूयामहामहिमसकारं वा उस्सवेह, २ ममेतमाणत्तियं पञ्चप्पिणह' । तए णं ते कोडुंबियपुरिसा बलेणं रना एवं वुत्ता० जाव-पञ्चप्पिणंति । तए णं से बले राया जेणेव अट्टणसाला तेणेव उवागच्छति, तेणेव उवागच्छित्ता तं चेव जाव मजणघराओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता उस्सुकं उक्करं उकिट्ठ अदिजं अमिजं अभडप्पवेसं अदंडकोडंडिमं अधरिमं गणियावरनाडइज्जकलियं अणेगतालाचराणुचरियं अणुद्धयमुइंगं अमिलायमल्लदामं पमुइयपक्कीलियं सपुरजणजाणवयं दसदिवसे ठिइवडियं करेति । तए णं से बले राया दसाहियाए ठिइवडियाए वट्टमाणीए सइए य साहस्सिए य सयसाहस्सिए य जाए य दाए य भाए य दलमाणे य दवा वेमाणे य, सए य साहस्सिए य सयसाहस्सिए य लंभे पडिच्छेमाणे पडिच्छावमाणे एवं विहरइ । तए णं तस्स दारगस्स
पुत्रजन्म
बबामणी.
भोगवतां सुखकारक एवा भोजन, आच्छादन, गंध अने माला वडे ते गर्भने हितकर, मित, पथ्य अने पोषणरूप छे तेवा आहारने योग्य देश भने योग्य काळे ग्रहण करती, तथा पवित्र अने कोमळ शयन अने आसनवडे एकान्तमा सुखरूप अने मनने अनुकूल एवी विहारभूमिवडे प्रशस्त दोहदवाळी, संपूर्ण दोहदवाळी, सन्मानित दोहदवाळी, जेनो दोहद तिरस्कार पाम्यो नथी एवी, दोहदरहित, दूर थयेला दोहदवाळी, तथा रोग, मोह, भय अने परित्रास रहित ते गर्भने सुखपूर्वक धारण करे छे. त्यार बाद ते प्रभावती देवीए नव मास पूर्ण थया पछी अने साडा सात दिवस वीत्या पछी सुकुमालहाथ-पगवाळा अने दोषरहित प्रतिपूर्णपंचेन्द्रिय युक्त शरीरवाळा, तथा लक्षण, व्यंजन अने गुणथी युक्त, यावत् चंद्रसमानसौम्य आकारवाळा, कांत, प्रियदर्शन अने सुंदर रूपवाळा पुत्रने जन्म आप्यो.
२७. त्यार बाद ते प्रभावती देवीनी सेवा करनार दासीओए तेने प्रसव थयेलो जाणी ज्यां बल राजा छे त्यां आवी हाथ जोडी यावत् बल राजाने जय अने विजयथी वधावीने आ प्रमाणे कर्दा-'हे देवानुप्रिय! ए प्रमाणे खरेखर प्रभावती देवीनी प्रीति माटे आ (पुत्रजन्मरूप) प्रिय निवेदन करीए छीए, अने ते आपने प्रिय थाओ.' त्यार बाद ते बल राजा शरीरनी शुश्रुषा करनार दासीओ पासेथी पर वात सांभळी अवधारीने हर्षित अने संतुष्ट थइ यावद् मेघनी धाराथी सिंचायला कदंबकना पुष्पनी पेठे यावद् रोमांचित थइ ते अंगरक्षिका दासीओने मुकुट सिवाय पहरेल सर्व अलंकार आपे छे. आपीने ते राजा श्वेत रजतमय अने निर्मल पाणीथी भरेला कलशने लइ ते दासीओना मस्तक धुए छे, मस्तकने धोइने तेओने जीविकाने उचित घणुं प्रीतिदान आपी सत्कार अने सन्मान करी विसर्जित करे छे.
२८. त्यार बाद ते बल राजाए कौटुंबिक पुरुषोने बोलावी आ प्रमाणे कयु-'हे देवानुप्रिय! तमे शीघ्र हस्तिनापुर नगरमां केदीओने मुक्त करो, मुक्त करीने मान (माप) अने उन्मानने (तोलाने) वधारो; त्यार बाद हस्तिनागपुर नगरनी बहार अने अंदरना भागमा छंटकाव करो, साफ, करो, संमार्जित करो अने लीपो; तेम करी अने करावीने सहस्र यूपोनो अने सहस्र चक्रोनो पूजा, महामहिमा अने सत्कार करो, ए प्रमाणे करी मारी आ आज्ञा पाछी आपो. त्यार बाद ते बल राजाना कहेवा प्रमाणे करी ते कौटुंबिक पुरुषो तेनी आज्ञा पाछी आपे छे. त्यार पछी ते बल राजा ज्या व्यायामशाला छे त्यां आवे छे, त्यां आवीने-इत्यादि पूर्ववत् कहे. यावद् स्नानगृहथी बहार नीकळी जकात रहित, कररहित, प्रधान, विक्रयनो निषेध करेलो होवाथी] आपवा योग्य वस्त रहित, मापवा योग्य मेयरहित, सुभटना प्रवेशरहित, दंड तथा कुदंडरहित, [ऋण मुक्त करेलु होवाथी ] अधरिमयुक्त-देवारहित, उत्तम गणिकाओ अने नाटकीयाओथी युक्त, अनेक तालानुचरो वडे युक्त, निरंतर वागतां मुंदगोसहित, ताजा पुष्पोनी माला युक्त, प्रमोद सहित, अने क्रीडा युक्त एवी स्थितिपतिता-पुत्रजन्ममहोत्सव पर अने देशना लोको साथे मळीने दस दिवस सधी करे छे. स्यार बाद दस दिवस सुधी स्थितिप
उपवन्मोत्सव
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