Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust

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Page 266
________________ २४६ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे शतक ११.-उद्देशक ११. नगरे, जेणेव सहसंबवणे उजाणे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिना अहापडिरूवं उग्गहं ओगिण्हति, ओगिणिहत्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरति । तए णं हथिणापुरे नगरे सिंघाडग-तिय० जाव-परिसा पजवासा । ३४. तए णं तस्स महब्बलस्स कुमारस्स तं महयाजणसदं वा जणवूहं वा एवं जहा जमाली तहेव चिंता, तहेव कचुइजपुरिसं सहावेति, कंचुइजपुरिसो वि तहेव अक्खाति, नवरं धम्मघोसस्स अणगारस्स आगमणगहियविणिच्छए करयल. जाव-निग्गच्छइ । एवं खलु देवाणुप्पिया ! विमलस्स अरहओ पउप्पए धम्मघोसे नामं अणगारे, सेसं तं चेव, जाव-सो वि तहेव रहवरेणं निग्गच्छति । धम्मकहा जहा केसिसामिस्स । सो वि तहेव अम्मा-पियरो आपुच्छइ, नवरं धम्मघोसस्स अणगारस्स अंतियं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पावइत्तए, तहेव वुत्तपडिवुत्तया, नवरं इमाओ य ते जाया! विउलरायकुलबालियाओ कला०, सेसं तं चेव जाव-ताहे अकामाई चेव महब्बलकुमारं एवं वयासी-'तं इच्छामो ते जाया! एगदिवसमवि रजसिरिं पासित्तए'। तए णं से महब्बले कुमारे अम्मा-पियराण वयणमणुयत्तमाणे तुसिणीए संचिति । तए णं से बले राया कोडुंबियपुरिसे सहावेइ, एवं जहा सिवभहस्स तहेव रायाभिसेओ भाणियचो, जाव-अभिसिंचति । करयलपरिग्गहियं महब्बलं कुमारं जएणं विजएणं वद्धाति, जएणं विजएणं वद्धावित्ता जाव-एवं वयासी-भण जाया! किं देमो, किं पयच्छामो', सेसं जहा जमालिस्स तहेव, जाव-तए णं से महब्बले अणगारे धम्मघोसस्स अणगारस्स अंतियं सामाइयमाइयाई चोइस पुवाई अहिजति, अहिजिता बहूहि चउत्थ० जाव-विचित्तेहिं तवोकम्मेहि अप्पाणं भावेमाणे बहुपडिपुन्नाई दुवालस वासाई सामनपरियागं पाउणति, बहु० २-णित्ता मासियाए संलेहणाए सर्टि भत्ताइं अणसणाए. आलोइयपडिकंते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा उर्ल्ड चंदम-सूरिय० जहा अम्मडो, जाव बंभलोए कप्पे देवत्ताए उववन्ने । तत्थ णं अत्यंगतियाणं देवाणं दस सागरोवमाई ठिती पण्णत्ता, तत्थ णं महब्बलस्स वि दस सागरोवमाई ठिती पन्नत्ता । से णं तुमं सुदंसणा! बंभलोगे कप्पे दस सागरोवमाइं दिवाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरित्ता ताओ चेव देवलोगाओ आउक्खएणं ३ अणंतरं चयं चइत्ता इहेव वाणियग्गामे नगरे सेट्रिकुलंसि पुत्तत्ताए पश्चायाए । भावित करता यावद् विहरे छे. ते समये हस्तिनागपुर नगरमां शृंगाटक, त्रिक-[ वगेरे मार्गोमां घणा माणसो परस्पर एम कहे छे इत्यादि] यावत् परिषद् उपासना करे छे. ३४. त्यार बाद ते महाबल कुमार घणा माणसोना शब्दने, जनना कोलाहलने सांभळी ए प्रमाणे यावत् *जमालिनी पेठे जाणवू, यावत् ते महाबल कुमार कंचुकी पुरुषने बोलावे छे, अने कंचुकी पुरुष पण तेज प्रमाणे कहे छे, परन्तु एटलो विशेष छे के ते कंचुकी धर्मघोष मुनिना आगमननो निश्चय जाणीने हाथ जोडीने यावद् नीकळे छे. ए प्रमाणे हे देवानुप्रिय! विमलनाथ अरिहंतना प्रशिष्य धर्मघोष नामे अनगार अहीं आव्या छे-इत्यादि पूर्व प्रमाणे जाणवू, यावत् ते महाबल कुमार पण उत्तम रथमां बेसीने वांदवा नीकळे छे. धर्मकथा किशिमहावल कुमार स्वामिनी पेठे जाणवी. महाबल कुमार पण ते प्रमाणे मातापितानी रजा मागे छे, परन्तु ते 'धर्मघोष अनगारनी पासे दीक्षा लइ अगारथी-गृहवंदन करवा माटे वासथकी अनगारिकपणुं लेवाने इच्छु छु' एम कहे छे-इत्यादि उक्ति अने प्रत्युक्ति ति प्रमाणे (जमालिना चरितमां वर्णव्या प्रमाणे) जाणवी. जबुं.दीक्षा लेवानी रजा मागवी. " परन्तु हे पुत्र ! [आ तारी स्त्रीओ] विपुल एवा राजकुलमा उत्पन्न थयेली बालाओ छे, वळी ते कलाओमां कुशल छे-इत्यादि बधु पूर्व प्रमाणे जाणवू. यावत् मातापिताए इच्छा विना ते महाबल कुमारने आ प्रमाणे कद्यु-'हे पुत्र ! एक दिवस पण तारी राज्यलक्ष्मीने जोवा अमे इच्छी एछीए,' त्यारे ते महाबल कुमार मातापिताना वचनने अनुसरीने चूप रह्यो. पछी ते बल राजाए कौटुंबिक पुरुषोने बोलाव्या-इत्यादि शिवभद्रनी महाबल कुमारने राज्याभिषेक भने पेठे राज्याभिषेक जाणवो, यावत् राज्याभिषेक कर्यो, अने हाथ जोडीने महाबल कुमारने जय अने विजयवडे वधावी यावद् आ प्रमाणे कयुदीक्षा. हे पुत्र! कहे के तने शुं दइए, तने शुं आपीए,' इत्यादि बाकी- बधुं गजमालिनी पेठे जाणवू; यावत् त्यार पछी ते महाबल अनगार धर्मघोष • अनगारनी पासे सामायिकादि चउद पूर्वोने भणे छे, भणीने धणा चतुर्थ भक्त, यावद् विचित्र तपकर्मवडे आत्माने भावित करीने संपूर्ण बार प्रमदेवलोका सप- वर्ष श्रमण पर्यायने पाळे छे, पाळीने मासिक संलेखनावडे निराहारपणे साठ भक्तोने वीतावी, आलोचना अने प्रतिक्रमण करी समाधिने प्राप्त मई मने त्यांची थइ मरण समये काल करी ऊर्ध्व लोकमां चंद्र अने सूर्यनी उपर बहु दूर अंबडनी पेठे यावत् ब्रह्मलोक कल्पमा देवपणे उत्पन्न थयो. त्यां व्यनी सुदर्शन मेष्ठीपये उपज. केटलाक देवोनी स्थिति दस सागरोपमनी कहेली छे. तेमां महाबल देवनी पण दस सागरोपमनी स्थिति कहेली छे. हे सुदर्शन ! तुं ते ब्रह्मलोक कल्पमा दस सागरोपम सुधी दिव्य अने भोग्य एवा भोगोने भोगवी ते देवलोकथी आयुषनो, भवनो अने स्थितिनो क्षय थया पछी तुरतज च्यवी अहीज वाणिज्यग्राम नामना नगरमां श्रेष्टिना कुलमा पुत्रपणे उत्पन्न थयो छे. ३४ *जुओ भग० खं०३ श. ९ उ० ३३ पृ. १६६. जुओ राजप्र. प. १२०-१. 1 जुओ भग• खं०३ श. ९० ३३ पृ. १६९-१७२. जुओ भग० ख० ३श.११.१ पृ. २२२. भिग० ख० ३ श. ९उ० ३३ पृ. १७३. जुओ औषपा० अंबडाधिकार प०१७-२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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