Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust

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Page 243
________________ शतक ११-देशक ९. भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र. २२३ 1 पच्छा ण्ाए जाव- सरीरे भोवणवेलाए भोयणमंडयंसि सुहासणवरगर ते मित-जाति-नियगसयण जाव-परिजनं राहि यतिवयि सर्व विपुलं असण- पाण- खाइम - साइमं एवं जहा तामली जाय सकारेति, संमाणेति । सकारेता संमाणेता तं मित्त - णाति० जाव-परिजणं रायाणो य खत्तिए य सिवभदं च रायाणं आपुच्छइ । आपुच्छित्ता सुबहुं लोही-लोहकडाहकटुच्यं जाव-भंडगं गहाय जे इमे गंगाफूलगा वाणपत्था तायसा भवंति तं चैव जाव तेसि अंतियं मुंडे भवित्ता दिसापोक्खियतावसत्ताए पव्वइए । पव्वइए वि य णं समाणे अयमेयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हति - ' कप्पर मे जावज्जीवाए छटुं० तं चेच जाव अभिग्ग अभिगिन्हति अभिगिन्हित्ता पढमं उटुसमणं उपसंपजिता पं विहरद । ५. तप णं से सिवे रायरिसी पढमछट्टक्समणपारणगंसि आयापणभूमीण पश्चोरहर, पथोरुहिता बागलवत्थनियत्ये येणेव सप उडतेणेव उपागच्छति, तेणेव उवागच्छित्ता फिटिणसंकायणं गिन्हति गिन्हित्ता पुरत्थिमं दिसं पोफलेति, 'पुरत्थिमाए दिसाए सोमे महाराया पत्थाणे पत्थियं अभिरक्खउ सिवे रायरिसी, अभिरक्खित्ता जाणि य तत्थ कंदाणि य भूलाणि य तयाणि व पचाणि व पुष्पाणि य फलाणि य बीयाणि य हरियाणि य ताणि अणुजाण' ति कट्टु पुरत्थिमं दिसं पसरति, पुर० २ जाणिव तत्थ कंदाणि व जाब-हरियाणि य ताई मेण्हति गिव्हित्ता किटणसंकाय भरेद, किडि० २ दब्भे य कुसे य समिहाओ य पत्तामोडं च गिण्हति, गिण्हित्ता जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छर, उवागच्छित्ता किढिणसंकाइयगं ठवेति, किढि० २ वेदिं वड्डेति वे० २ उवलेवण-संमजणं करेइ, उ० २ दम्भ - कलसाहत्थगए जेणेव गंगा महानदी तेणेव उवागच्छति, तेणेव० २ गंगामहानदीं ओगाहेति, गंगा० २ जलमजणं करे, जल० २ जलकीडं करेइ, जल० २ जलाभिसेयं करेति, जला० २ आयंते चोक्खे परमसुइभूए देवय- पितिकयकज्ञे दब्भ-कलसाहत्थगए गंगाओ महानईओ पच्चत्तरद्द, गंगाओ० २ जेणेव सर उडप तेथेच उद्यागच्छद तेणेच० २ दमेहि य कुसेहि य बालुयापहि य वेर्ति रपति, बेर्ति रपत्ता सरएणं अरणिं महेति, सर० २ अरिंग पाडेति, २ अरिंग संधुक्के, २ समिहाकट्ठाई पक्खिवर, समिहा० २ अरिंग उज्जालेइ, मग २ " अग्गिस्स दाहिणे पासे, सत्तंगाई समादद्दे [वं जहा ] सकद्धं बलं ठाणं, सिखा भंडं कमंडलुं ॥ दंडात छे, आमन्त्रण करी त्यार बाद स्नान करी यावत् शरीरने अलंकृत करी भोजनवेलाए भोजनमंडपमां उत्तम सुखासन उपर बेसी, ज्ञ अने पोताना वजन यावत् परिजन साये तथा राजा अने क्षत्रियो साथै विपुल अशन, पान, खादिम अने खादिम भोजन करी "तामलि तापसनी पेठे यावत् ते शिवराजा बधाओनो सत्कार करे छे, सन्मान करे छे, सरकार अने सन्मान करीने मित्र, जाति, पोताना खजन, यावत् परिजननी तथा राजाओ, क्षत्रियो अने शिवभद्र राजानी रजा मागे छे. रजा मागीने अनेक प्रकारना छोडी, लोढाना कटायां, कडछा यावत् तापसना उचित उपकरणो लइने गंगाने कांठे जे आ वानप्रस्थ तापसो रहे छे - इत्यादि सर्व पूर्ववत् जाणवुं यावत् ते दिशाप्रोक्षक तापसोनी पासे दीक्षित थई दिशाप्रोक्षकतापसरूपे प्रव्रज्या ग्रहण करी प्रव्रजित थइने ते आ प्रकारनो अभिग्रह धारण करे छे- 'मारे यावजीव निरंतर छ छनो तप करलो कल्पे' इत्यादि पूर्वपत् अभिग्रह ग्रहण करीने प्रथम छट्टु तपनो स्वीकार करी विहरे छे. ५. त्यारबाद प्रथम छट्ट तपना पारणाना दिवसे ते शिव राजर्षि आतापना भूमिथी नीचे आवे छे, नीचे आवीने वल्कलना वस्त्र पहेरी ज्यां पोतानी झुंपडी छे त्यां आवे छे, त्यां आवी किढिन ( वांसनुं पात्र ) अने कावडने ग्रहण करे छे, ग्रहण करी पूर्व दिशाने प्रोक्षित करी 'पूर्व दिशाना सोम महाराजा धर्मसाधनमां प्रवृत्त थएला शिव राजर्षिनुं रक्षण करो, अने पूर्व दिशामा रहेला कंद, मूल, छाल, पांदडा, पुष्प, फळ, बीज अने हरित - लीली वनस्पतिने लेवानी अनुज्ञा आपो' - एम कही ते शिव राजर्षि पूर्व दिशा तरफ जाय छे, जइने व्यां रहेला कंद, यावत्-लीली वनस्पतिने ग्रहण करीने पोतानी कावड भरे छे. त्यार पछी दर्भ, कुश, समिध-काष्ट अने झाडनी शाखाने मरडी पांदडाओने ले छे; लेईने ज्यां पोतानी झुंपडी छे त्यां आवे छे, आवीने कावडने नीचे मूके छे, मूकीने वेदिकाने प्रमार्जित करे छे; पछी वेदिकाने [ छाणा पाणीवडे ] डीपी शुद्ध करे छे. त्यारबाद डाभ अने कलशने हाथमां उड़ यां गंगा महानदी छे, लां आवीने गंगा महानदीमां प्रवेश करे छे, प्रवेश करी डुबकी मारे छे, जलक्रीडा करे छे, अने स्नान करे छे, पछी आचमन करी चोक्खा थइ - परम पवित्र देवता अने पितृकार्य करी डाभ अने पाणीनो कलश हाथमां उड़ गंगा महानदीथी बहार नोकळीने ज्यां पोतानी झुंपडी छे त्यां आये छे, आवीने डाभ, कुश अने वालुका वडे वेदिने बनावे छे, बनावी मथनकाष्ठवडे अरणिने घसे छे, घसीने अग्नि पाडे छे, पाडीने अग्नि सुळगावे छे, पछी तेमां समिधना काष्ठोने नांखी ते अग्निने प्रज्वलित करे छे, अने अग्निनी दक्षिण बाजुए आ सात वस्तुओ मुके छे, ते आ प्रमाणे–“१ सकथा ( उपकरणविशेष ), २ वल्कल, ३ दीप, ४ शय्याना उपकरण, ५ कमंडल, ६ दंड अने ७ आत्मा ( पोते). ए सर्वने ४. तामलितापसनुं वर्णन जुओ भग० सं० २ श० ३ उ० १५० २६. 2. + गंगाने किनारे रहेता तापसोनुं वर्णन जुओ उवनाइअ प० ९०- १. Jain Education International For Private & Personal Use Only शिवराजर्षिनो अभिग्रह www.jainelibrary.org/

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