Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
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दसमो उद्देसो. १. [प्र. रायगिहे नगरे जाव एवं वयासी, अन्नउत्थिया णं भंते! एवं आइक्खंति, जाव एवं परुति-"एवं खल १ सील सेयं, २ सुयं सेयं, ३ सुयं सेयं, सील सेयं" से कहमेयं भंते ! एवं ? [उ०] गोयमा ! जंणं ते अनउत्थिया एवं आइक्वंति, जाव जे ते एवं आईसु, मिच्छा ते एवं आहेसु; अहं पुण गोयमा! एवं आइपखामि, जाव परूवेमि-एवं खलु मए चत्तारि परिसजाया पन्नत्ता. तं जहा-१ सीलसंपन्ने णाम एगे णो सुयसंपने, २ सुयसंपन्ने नाम एगे नो सीलसंपणे, एगे सीलसंपन्ने वि सुयसंपन्ने वि, ४ एगे णो सीलसंपन्ने नो सुयसंपन्ने । तत्थ णं जे से पढमे पुरिसजाए से णं पुरिसे सील असुयवं; उवरए, अविनायधम्मे, एस णं गोयमा! मए पुरिसे देसाराहए पन्नत्ते । तत्थ णं जे से दोघे पुरिसजाए से णं पुरिसे असीलवं सुयवं; अणुवरए, विनायधम्मे; एस णं गोयमा! मए पुरिसे देसविराहए पन्नत्ते । तत्थ णं जे से तचे पुरिसजाए से णं पुरिसे सीलवं सुयवं; उवरए, विनायधम्मे; एस गं गोयमा! मए पुरिसे सधाराहए पन्नत्ते। तत्थ णं जे से चउत्थे पुरिसजाए से णं पुरिसे असीलवं असुतवं; अणुवरए, अविण्णायधम्मे; एस णं गोयमा! मए पुरिसे सवविराहए पन्नत्ते ।
२. [प्र०] कतिविहा णं भंते! आराहणा पण्णता? [उ.] गोयमा! तिविहा आराहणा पण्णत्ता, तं जहा-नाणाराहणा, सणाराहणा, चरिताराहणा।
दशम उद्देशक. शीलज श्रेय छे'. १. [प्र०] *राजगृह नगरमां यावद् [गौतम ] ए प्रमाणे बोल्या के हे भगवन् ! अन्यतीर्थिको ए प्रमाणे कहे छे, यावद् ए त्यादि अन्य तीथि
प्रमाणे प्ररूपे छे-"ए रीते खरेखर १ शील ज श्रेय छे, २ श्रुत ज श्रेय छे, ३ [ शीलनिरपेक्ष ज] श्रुत श्रेय छे, अथवा [श्रुतनिर
पेक्ष ज ] शील श्रेय छे, तो हे भगवन्! ए प्रमाणे केम होइ शके ! [उ०] हे गौतम! ते अन्यतीर्थिको जे ए प्रमाणे कहे छे, यावत् तेओए 'शीलसंपन्न हे पण जे ए प्रमाणे कयुं छे ते तेओए मिथ्या कह्यु छे. हे गौतम ! हुं वळी आ प्रमाणे कडं छु, यावत् प्ररूपुंछ, ए प्रमाणे में चार प्रकारना पुरुषो श्रुतसंपन्न नथी'P A कह्या छे, ते आ प्रमाणे-१ एक शीलसंपन्न छे पण श्रुतसंपन्न नथी, २ एक श्रुतसंपन्न छे पण शीलसंपन्न नथी, ३ एक शीलसंपन्न छे अने
श्रुतसंपन्न पण छे, ४ एक शीलसंपन्न नथी तेम श्रुतसंपन्न पण नथी. तेमा जे प्रथम प्रकारनो पुरुष छे ते शीलवान् छे पण श्रुतवान् देशाराधक. नथी. ते उपरत (पापादिकथी निवृत्त ) छे, पण धर्मने जाणतो नथी. हे गौतम ! ते पुरुषने में देशाराधक कह्यो छे. तेमां जे बीजो
पुरुष छे ते पुरुष शीलवाळो नथी, पण श्रुतवाळो छे. ते पुरुष अनुपरत (पापथी अनिवृत्त) छतां पण धर्मने जाणे छे. हे गौतम ! ते देशविराधक पुरुषने में देशविराधक कह्यो छे. तेमां जे त्रीजो पुरुष छे ते शीलबाळो छ अने श्रुतवाळो पण छे. ते पुरुष [पापथी ] उपरत छे अने
धर्मने जाणे छे. हे गौतम ! ते पुरुषने में सर्वाराधक कह्यो छे. तेमां जे चोथो पुरुष छे ते शीलथी अने श्रुतथी रहित छे, ते पापथी उपसर्व विराधक. रत नधी अने धर्मथी अज्ञात छे. हे गौतम ! ए पुरुषने हुं सर्वविराधक कहुं छं.
आराधना. माराधनाना प्रकार. २. प्र०] हे भगवन् ! आराधना केटला प्रकारनी कही छे? [उ०] हे गौतम! त्रण प्रकारनी आराधना कही छे ते आ प्रमाणे
१ ज्ञानाराधना, २ दर्शनाराधना अने ३ चारित्राराधना.
कानमन्तव्य. माना
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१.. केटला एक अन्यतीर्थिको एम माने छे के शील-प्राणातिपातादि विरमणरूप क्रिया मान श्रेय छे; ज्ञान- कंद पण प्रयोजन नथी, केमके ते चेष्टारहित छे. वीजा ज्ञानमात्रथी फलसिद्धि माने छे, कारण के ज्ञानरहित क्रियावाळाने फलसिद्धि थती नथी, तेथी तेओ कहे छ के श्रुत-ज्ञानज धेय हे. अन्य परस्पर निरपेक्ष श्रुत अने शीलथी अभीष्टार्थसिद्धि माने छे-एटले तेओ क्रियारहित ज्ञान, अथवा शानरहित कियाथी अभीष्ट सिद्धि माने छ, फेमके बनेमांना प्रत्येक पुरुषनी पवित्रतार्नु कारण छे. तेथी एम कहे छे के ३ शील अथवा ४ श्रुत श्रेय छे.-टीका. . २.१ ज्ञानाराधना-योग्यकाले अध्ययन, विनय, बहुमान-इत्यादि अष्टविध ज्ञानाचारनुं निरतिचारपणे परिपालन कर. २ दर्शनाराधना-दर्शन एटले सम्यक्त्व, तेना निःशंकितादि आठ प्रकारना आचारर्नु पालन करयु. ३ चारित्राचार-निरविचारपणे पंचसमित्यादि चारित्राचारनुं पालन.
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