Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
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उपशांतवेद के क्षीणवेद होय !
श्रीवेदादि.
सकषायी के पायी
उपशांत के
क्षीणकषायी !
केटला कपायो होय !
भव्यवसायो.
"मोपदेश.
प्रब्रज्या आपे. सेना शिष्यो पण प्रम्रज्या अपे.
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श्रीरायचन्द्र - जिनागमसंग्रहे
शतक ९. - उद्देशक ३१.
३९. [प्र०] जर अवेद होजा किं उवसंतवेदए होजा, खीणवेदए होजा १ [उ०] गोयमा ! नो उवसंतवेदए होज्जा; स्त्रीणवेदए होजा ।
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४०. [प्र० ] जर सवेद होजा किं इत्थीवेदय होजा, पुरिसवेदए होजा, नपुंसगवेदए होजा, पुरिस-नपुंसगवेदए होजा ? [30] गोयमा ! इत्थीवेदर वा होजा, पुरिसवेदए वा होजा, पुरिस-नपुंसगवेदए वा होया ।
४१. [प्र०] से णं भंते! किं सकसाई होज्जा, अकसाई होजा ? [उ०] गोयमा ! सकसाई वा होजा, अकसाई षा होजा ।
४२. [प्र०] जइ अकसाई होजा किं उवसंतकसाई होजा, खीणकसाई होज्जा ? [अ०] गोयमा ! नो उवसंतक साई होज्जा, खीणकसाई होजा ।
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४३. [प्र०] जदि सकसाई होज्जा से णं भंते ! कतिसु कसापसु होज्जा ? [३०] गोयमा ! चउसु वा तिसु वा दो वा एक्कम्मि वा होजा । चउसु होजमाणे चउसु संजलणकोह - माण - माया -लोभेसु होजा, तिसु होजमाणे तिसु-संजलणमाण–माया-लोभेसु होज्जा, दोसु होजमाणे दोसु-संजलणमाया -लोभेसु होजा, एगम्मि होजमाणे एगम्मि-संजलणलोमे होजा ।
४४. [प्र० ] तस्स णं भंते! केवतिया अज्झवसाणा पण्णत्ता ? [अ०] गोयमा ! असंखेज्जा; एवं जहा असोचाए तहेव जाय केवलवरनाण- दंसणे समुप्पज्जइ ।
४५. [प्र०] से णं भंते! केवलिपन्नत्तं धम्मं आघवेज वा, पनवेज वा, परूवेज वा ? [30] हंता, आघवेज वा, पनवे वा, परूवेज वा ।
४६. [प्र०] से णं भंते! पधावेज वा, मुंडावेज वा ? [उ०] हंता, गोयमा ! पचावेज वा, मुंडावेज वा । ४७. [प्र० ] तस्स णं भंते! सिस्सा वि पक्षावेज वा, मुंडावेज वा ? [30] इंता, पधावेज वा, मुंडावेज था ।
३९. [प्र०] हे भगवन् ! जो वेदरहित होय तो शुं ते उपशांतवेदवाळो होय के क्षीणवेदवाळो होय ! [उ०] हे गौतम ! उपशांतवेदवाळो न होय, पण क्षीणवेदवाळो होय.
४०. [प्र०] हे भगवन्! जो वेदसहित होय तो शुं ते स्त्रीवेदवाळो होय, पुरुषवेदवाळो होय, नपुंसकवेदवाळो होय के पुरुषनपुंसक वेदवाळी होय ? [30] हे गौतम! ते स्त्रीवेदवाळो होय, पुरुषवेदवाळी होय के पुरुषनपुंसकवेदवाळो पण होय.
४१. [प्र०] हे भगवन् ! ते (अवधिज्ञानी) शुं सकषायी होय के अकषायी होय ! [उ०] हे गौतम! ते सकषायी होय के अकपायी पण होय.
४२. [प्र०] हे भगवन् ! जो ते अकषायी होय तो शुं उपशांतकषायी होय के क्षीणकषायी होय ? [30] हे गौतम! उपशांतकषायी न होय, पण क्षीणकषायी होय.
४३. [प्र०] हे भगवन् ! जो सकषायी होय तो ते केटला कषायोमां होय ? [उ०] हे गौतम ! ते चार कपायोमा, त्रण कषायोमां, बे कषायोमां के एक कषायमां होय. जो चार कषायोमां होय तो संज्वलन क्रोध, मान, माया अने लोभमां होय. जो त्रण कषायोमां होय तो संज्वलन मान, माया अने लोभमां होय. जो बे कषायोमां होय तो संज्वलन माया अने लोभमां होय. अने जो एक कषायमां होय तो एक संज्वलन लोभमां होय.
४४. [प्र०] हे भगवन् ! तेने केटलां अध्यवसायो कह्या छे ? [उ० ] हे गौतम! तेने असंख्यात अध्यवसायो कह्यां छे. ए प्रमाणे जेम ‘असोच्चा' ने कह्युं (सू. २५) तेम यावत् 'तेने श्रेष्ठ केवलज्ञान अने केवलदर्शन उत्पन्न थाय छे' त्यां सुधी कहे.
४५. [प्र०] हे भगवन् ! ते ( सोच्चा केवलज्ञानी) के लिए कहेला धर्मने कहे, जणावे, प्ररूपे ! [उ०] हा, गौतम ! ते (केवलिप्रज्ञप्त धर्म) कहे, जणावे, अने प्ररूपे.
४६. [प्र०] हे भगवन् ! ते कोइने प्रब्रज्या आपे, दीक्षा आपे ? [30] हा, गौतम ! ते प्रव्रज्या आपे - दीक्षा आपे.
४७. [प्र० ] हे भगवन् ! तेना ( सोच्चा केवलिना ) शिष्यो पण प्रब्रज्या आपे, दीक्षा आपे ! [उ०] हा, गौतम ! तेना शिष्यो पण प्रव्रज्या आपे - दीक्षा आपे.
१ भोमाणे. क ख । २ होमाणे क ख ।
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