Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay
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१८ भगवती सूत्र : एक परिशीलन की आँख है। मन्त्र वह शक्ति है-जो आसक्ति को नष्ट कर अनासक्ति पैदा करती है। नमस्कार महामन्त्र का उपयोग जो साधक आसक्ति के लिए करते हैं-वे लक्ष्यभ्रष्ट हैं। लक्ष्यभ्रष्ट तीर का कोई उपयोग नहीं होता, वैसे ही लक्ष्यभ्रष्ट मन्त्र का भी कोई उपयोग नहीं है। ____ मन्त्र छोटा होता है। वह ग्रन्थ की तरह बड़ा नहीं होता। हीरा छोटा होता है, चट्टान की तरह बड़ा नहीं होता; पर बड़ी-बड़ी चट्टानों को वह काट देता है। अंकुश छोटा होता है, किन्तु मदोन्मत्त गजराज को अधीन कर लेता है। बीज नन्हा होता है, पर वही बीज विराट् वृक्ष का रूप धारण कर लेता है। वैसे ही नमोक्कार मन्त्र में जो अक्षर हैं-वे भी बीज की तरह हैं। नमोक्कार मन्त्र में ३५ अक्षर हैं। ३ में ५ जोड़ने पर ८ होते हैं। जैनदृष्टि से कर्म आठ हैं। इस महामन्त्र की साधना से आठों कर्मों की निर्जरा होती है। ३सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र तथा मनोगुप्ति, वचनगुप्ति और कायगुप्ति। ५-पंचमहाव्रत और पंचसमिति का प्रतीक है। जब नमोक्कार मंत्र के साथ रत्नत्रय व महाव्रत का सुमेल होता है या अष्ट प्रवचनमाता की साधना भी साथ चलती है तो उस साधना में अभिनव ज्योति पैदा हो जाती है। इस प्रकार यह महामन्त्र मन का त्राण करता है। अशुभ विचारों के प्रभाव से मन को मुक्त करता है। ___ नमोक्कार महामन्त्र हमारे प्रसुप्त चित्त को जाग्रत करता है। यह मंत्र शक्ति-जागरण का अग्रदूत है। इस मन्त्र के जप से इन्द्रियों की वल्गा हाथ में आ जाती है, जिससे सहज ही इन्द्रिय-निग्रह हो जाता है। मन्त्र एक ऐसी छैनी है जो विकारों की परतों को काटती है। जब विकार पूर्णरूप से कट जाते हैं तब आत्मा का शुद्ध स्वरूप प्रकट हो जाता है। महामन्त्र की जप-साधना से साधक अन्तर्मुखी बनता है, पर जप की साधना विधिपूर्वक होनी चाहिये। विधिपूर्वक किया गया कार्य ही सफल होता है। डॉक्टर रुग्ण व्यक्ति का ऑपरेशन विधिपूर्वक नहीं करता है तो रुग्ण व्यक्ति के प्राण संकट में पड़ जाते हैं। बिना विधि के जड़ मशीनें भी नहीं चलतीं। सारा विज्ञान विधि पर ही अवलम्बित है। अविधिपूर्वक किया गया कार्य निष्फल होता है। यही स्थिति मन्त्र-जप की भी है। __ नमोक्कार महामन्त्र में पाँच पद हैं। ३५ अक्षर हैं। इनमें ११ अक्षर लघु हैं, २४ गुरु हैं; १५ दीर्घ हैं और २० ह्रस्व हैं; ३५ स्वर हैं और ३४ व्यंजन हैं। यह एक अद्वितीय बीजसंयोजना है। 'नमो अरिहंताणं' में सात
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