Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay
View full book text
________________
-
१७0 भगवती सूत्र : एक परिशीलन
जीव बढ़ते हैं या घटते हैं? ___ गौतम-हे भगवन् ! क्या जीव बढ़ते हैं ? घटते हैं ? या अवस्थित रहते
भगवान-हे गौतम ! जीव बढ़ते नहीं हैं, घटते भी नहीं हैं किन्तु अवस्थित रहते हैं। नैरयिकादि चौबीस ही दण्डकों में जीव बढ़ते भी हैं, घटते भी हैं और अवस्थित भी रहते हैं। परन्तु सिद्ध भगवान बढ़ते हैं और अवस्थित रहते हैं, घटते नहीं।
-भग. शतक ५, उ. ८, सूत्र ४-६
आत्मा के आठ प्रकार गौतम-भगवन् ! आत्मा कितने प्रकार की होती है ?
भगवान-गौतम ! आत्मा के आठ प्रकार हैं-द्रव्यात्मा, कषायात्मा, योग-आत्मा, उपयोग आत्मा, ज्ञान आत्मा, दर्शन आत्मा, चारित्र आत्मा, वीर्यात्मा।
उपयोग की अपेक्षा सामान्यतः सभी आत्माएँ एक ही प्रकार की हैं। फिर भी विशिष्ट गुण और उपाधि की प्रधानता को लेकर आत्मा के आठ भेद बताये हैं।
द्रव्यात्मा-त्रिकालवर्ती द्रव्यरूप आत्मा द्रव्य आत्मा है। यह सभी जीवों के नियमतः होती है।
कषायात्मा-क्रोध, मान, माया, लोभ रूप कषाय से संयुक्त आत्मा कषाय-आत्मा है। उपशान्तकषायी व क्षीणकषायी आत्माओं के अतिरिक्त शेष सर्व संसारी जीवों में यह आत्मा होती है। ___ योग-आत्मा-मन-वचन और काया की प्रवृत्ति को योग कहते हैं। इन योगों से युक्त आत्मा योग-आत्मा है। अयोगी केवली और सिद्धों के अतिरिक्त सभी सयोगी जीवों के यह आत्मा होती है।
उपयोग-आत्मा-ज्ञान और दर्शन रूप उपयोग प्रधान आत्मा उपयोगात्मा है। उपयोग-आत्मा, सिद्ध व संसारी सर्वजीवों के होती है।
ज्ञान-आत्मा-विशेष अनुभव रूप सम्यक्ज्ञान से विशिष्ट आत्मा ज्ञानआत्मा है। ज्ञान-आत्मा सम्यग्दृष्टि जीवों के होती है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org