Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay
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भगवती सूत्र : एक परिशीलन १८९ उनका परस्पर वार्तालाप चल रहा था । उस समय गणधर इन्द्रभूति उन्हें राजगृह के परिपार्श्व में दिखाई दिये। वे सभी गौतम के पास आये और बोले
गौतम ! आपके धर्माचार्य पंच अस्तिकायों में एक को जीव शेष चार को अजीव, एक को मूर्त शेष चार को अमूर्त्त बताते हैं इसका रहस्य क्या है ?
गौतम - देवानुप्रियो ! जो अस्ति है उसको अस्ति और जो सम्पूर्ण नास्ति है उसे नास्ति कहते हैं। भगवान ने उन्हीं के अस्तित्व का प्रतिपादन किया है, जिनका अस्तित्व है।
गौतम का यह उत्तर सुनकर परिव्राजक मौन हो गये पर उनका अन्तर् मानस संदेह रहित नहीं हुआ। वे गौतम के पीछे-पीछे चलकर महावीर की धर्म सभा में आये । भगवान ने कालोदायी को सम्बोधित कर कहाकालोदायिन् ! तुम्हारी सभा में पंचास्तिकाय के सम्बन्ध में चर्चा चली थी, उसी का स्पष्टीकरण करने के लिये तुम यहाँ आये हो ?
कालोदायी- हाँ, भगवन् !
महावीर - कालोदायी ! पंचास्तिकाय हैं या नहीं यह संशय किसे होता है ? कालोदायी- भगवन् ! आत्मा को होता है।
महावीर - इसी से आत्मा अर्थात् जीवास्तिकाय का अस्तित्व सिद्ध होता है। इसी तरह जीव और पुद्गल की गति व स्थिति में निमित्तभूत धर्मास्तिकाय व अधर्मास्तिकाय की सिद्धि होती है। आकाश में गति स्थिति दोनों होते हैं। आकाश आधार देता है और पुद्गलास्तिकाय की वर्ण, गंध, रस, स्पर्श से सिद्धि होती है।
कालोदायी-भन्ते ! धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय इन अरूपी अजीवकायों पर कोई जीव बैठना, उठना, सोना, खड़े रहना आदि क्रियायें कर सकता है ?
महावीर - नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। केवल पुद्गल पर ही उपर्युक्त सर्व क्रियाएँ हो सकती हैं।
कालोदायी- हे भगवन् । पुद्गलास्तिकाय में जीवों को अशुभ फल देने वाले पाप कर्म लगते हैं ?
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