Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay
View full book text
________________
१९४ भगवती सूत्र : एक परिशीलन
भगवान ने कहा-गौतम ! स्थविरों ने जो उत्तर दिये है वे यथार्थ हैं। वे सम्यग्ज्ञानी हैं। मैं भी इन प्रश्नों का यही उत्तर देता हूँ।
-भग. शतक २, उ. ५, सूत्र ३५
गांगेय अनगार भगवान वाणिज्यग्राम के पार्श्ववर्ती दूतिपलाश चैत्य में ठहरे हुए थे। उस समय भगवान के शिष्य "गांगेय' नामक श्रमण भगवान के पास आये और बोले
भन्ते ! नारकावास में नारक सान्तर उत्पन्न होते हैं या निरन्तर? महावीर-गांगेय : नारक सान्तर भी उत्पन्न होते हैं और निरन्तर भी।
गांगेय- भगवन् ! असुरकुमारादि भवनपति देव सान्तर उत्पन्न होते हैं या निरन्तर? ___महावीर- असुरकुमारादि देव सान्तर भी उत्पन्न होते हैं और निरन्तर
भी।
गांगेय- भगवन् ! पृथिवीकायिकादि एकेन्द्रिय जीव सान्तर उत्पन्न होते हैं या निरन्तर? ___महावीर-गांगेय ! पृथिवीकायिकादि जीव सान्तर उत्पन्न नहीं होते, वे स्व-स्व स्थान पर निरन्तर उत्पन्न होते हैं।
द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय तिर्यंच, मनुष्य और देव सान्तर भी उत्पन्न होते हैं और निरन्तर भी।
गांगेय-भन्ते ! नैरयिक सान्तर च्यवता है या निरन्तर च्यवता है? .. महावीर-गांगेय ! नैरयिक सान्तर भी च्यवते हैं और निरंतर भी।
इसी प्रकार द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय तिर्यंच, मनुष्य तथा देव कभी सान्तर और कभी निरन्तर च्यवते हैं। परन्तु पृथ्वीकायिकादि निरन्तर उत्पन्न होने वाले एकेन्द्रिय जीव निरन्तर ही च्यवते हैं।
गांगेय- भन्ते ! “प्रवेशनक" कितने प्रकार के हैं ?
महावीर- गांगेय ! प्रवेशन चार प्रकार का है- नैरयिक प्रवेशन, तिर्यग्योनि प्रवेशन, मनुष्य प्रवेशन और देवप्रवेशन। उसके पश्चात् भगवान् ने विभिन्न नैरयिकों के प्रवेशन के सम्बन्ध में विस्तृत सूचनाएँ दीं।
गांगेय- भन्ते ! तिर्यंचयोनिक प्रवेशन कितने प्रकार का कहा है ?
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org