Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 265
________________ भगवती सूत्र : एक परिशीलन २५१ मलालसेकर, डिक्सनरी आव पाली प्रोपर नेम्स जिल्द २, पृ० १५९ आदि, महाभारत १२, १९०,३) १२. विशाला-महावीर जननी तस्या अपत्यमिति वैशालिकः भगवांस्तस्य वचनं शृणोति तसिकत्वादिति वैशालिकः। १३. श्रावकः तद्वचनामृतपाननिरत इत्यर्थः निर्ग्रन्थः श्रमण इत्यर्थः। - -भग0 टीका पत्र २०१ १४. भगवती सूत्र के प्रस्तुत वर्णन से ज्ञात होता है, कि स्कन्दक ने भगवान से जिन प्रश्नों का समाधान पाया, तथाप्रकार के प्रश्न उस युग के दार्शनिक मस्तिष्क में चारों ओर चक्कर काट रहे थे। अनेक परिव्राजक, संन्यासी और श्रमण उन प्रश्नों पर चिन्तन-मनन करते रहते थे, यथार्थ समाधान के अभाव में इधर उधर विज्ञों से व धर्म प्रवर्तकों से समाधान पाने के लिए घूमते रहते थे। तथागत बुद्ध के पास भी इसी प्रकार के प्रश्न लेकर अनेक जिज्ञासु आते थे, पर बुद्ध उसे अव्याकृत कहकर उससे छुटकारा पाने का प्रयल करते थे (मज्झिमनिकाय, चूलमालुक्य सूत्र ६३, दीघनिकाय, पोट्ठपाद सूत्र १/९) जबकि महावीर इस प्रकार के प्रश्नों का समाधान करके जिज्ञासुओं को आत्म-साधना की ओर मोड़ने का उपक्रम करते थे। -लेखक १५. देखिये-ज्ञान के विशेष विस्तार के लिए "जैनदर्शन : स्वरूप और विश्लेषण" ज्ञानवाद : एक परिशीलन पृ. ३२५ १६. तत्त्वार्थ सूत्र अ. २ सू. २२ १७. विषय-विषयि सन्निपातान्तरसमुद्भूतसत्तामात्रगोचर दर्शनाज्जातमाद्यम्, अवान्तर सामान्याकार विशिष्ट वस्तुग्रहणमवग्रहः। -प्रमाणनयतत्त्वालोक, परि. २ सू. ७ अवगृहीतार्थ विशेषाकांक्षणमीहा। -प्रमाण. सूत्र ८ १९. ईहित विशेष निर्णयोऽवायः। -प्रमाण. सूत्र ९ स एव दृढतमावस्थापन्नो धारणा। -प्रमाण. परि. २ सूत्र १० २१. न चक्षुरनिन्द्रियाभ्याम्। -तत्त्वार्थ सूत्र २२. अवधिज्ञान का इतना विषय है परन्तु अलोक में कुछ जानने देखने योग्य न होने से वह सम्पूर्ण लोक में विशेष निर्मल रूप से जानता व देखता है। २३. ठाणांग १ सूत्र ४५ २४. धवला ७/२,१, ७/११/११ २५. राजवार्तिक ८/९/५/५७५/४, गोम्मटसार कर्मकाण्ड, जीवप्रकरण ३३/२८/५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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