Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 264
________________ २५० भगवती सूत्र : एक परिशीलन सन्दर्भ स्थल : १. भगवती ५/८ २. तनुवात का अर्थ है-पतली हवा। हल्की चीज भारी चीज को धारण कर लेती है, अतः तनुवात पर घनवात मोटी हवा है। ३. वृहदारण्यक में गार्गी और याज्ञवल्क्य का संवाद है। देखिए लेखक का “जैन दर्शन : स्वरूप और विश्लेषण ग्रन्थ" पृ. ४८ ४. "सुप्रतिष्ठक" एक प्रकार का बर्तन होता है, जो नीचे से चौड़ा, बीच में संकड़ा तथा ऊपर कुछ चौड़ा बीच में संकड़ा तथा ऊपर कुछ चौड़ा होकर फिर संकड़ा हो जाता है। ५. रज्जु का प्रमाण-३,८१,२७,९७० मन के वजन को एक भार कहते हैं, ऐसे १००० भार का लोहे का गोला, उसे कोई देवता ऊंचे स्थान से नीचे की ओर डाले, वह गोला ६ महीने, ६ दिन, ६ पहर, और ६ घड़ी में जितना क्षेत्र उल्लंघन करे उतने क्षेत्र को एक रज्जु कहते हैं। ६. प्रज्ञापना २३/१/२८२ ७. भगवती ९ ८. "द्वयी चेयं नित्यता कूटस्थनित्यता परिणामिनित्यता च। तत्र कूटस्थनित्यता पुरुषस्य, परिणामिनित्यता गुणानाम् । -पात. भाष्य ४,३३ ९. उत्तराध्ययन २८/९ १०. भगवती १३/४ ११. परिव्राजक भिक्षा से आजीविका करने वाला साधु-निरुक्त १/१४ वैदिक कोश। जैन आगमों में व उत्तरवर्ती साहित्य में तापस, परिव्राजक, संन्यासी आदि अनेक प्रकार के साधकों का विस्तृत वर्णन है। इसके लिए औपपातिक सूत्र, सूत्र0 नियुक्ति, पिंडनियुक्ति गा. ३१४, वृहत्कल्प भाष्य भा० ४ पृ० ११७० निशीथ सूत्र सभाष्य चूर्णि भा० २ व भगवती सूत्र ११/९, आवश्यक चूर्णि पृ. २७८, धम्मपद अट्ठकथा २ पृ० २०९, दीघनिकाय अट्ठकथा १ पृ० २७० ललित विस्तर पृ० २४८ और जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज पृ० ४१२, ४१६ तक में देख सकते हैं। गेरुआ वस्त्र धारण करने से ये गेरुआ या गैरिक भी कहे जाते हैं। (निशीथ चू0 १३-४४२०) परिव्राजक श्रमण, ब्राह्मण धर्म के प्रतिष्ठित पंडित होते थे। विशिष्ट धर्मसूत्र के उल्लेखानुसार परिव्राजक को अपना सिर मुण्डित रखना, एक वस्त्र व चर्म खण्ड धारण करना, गायों द्वारा उखाड़ी हुई घास से अपने शरीर को आच्छादित करना और उसे जमीन पर सोना चाहिये (१०३-११, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org


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