Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 262
________________ २४८ भगवती सूत्र : एक परिशीलन २२. एगं अन्नयरं तसं पाणं हणमाणे अणेगे जीवे हणइ। -९।३४ एक त्रस जीव की हिंसा करता हुआ आत्मा तत्संबंधित अनेक जीवों की हिंसा करता है। २३. एगं इसिं हणमाणे अणंते जीवे हणइ। -९३४ एक अहिंसक ऋषि की हत्या करने वाला एक प्रकार से अनंत जीवों की हिंसा करने वाला होता है। २४. अत्थेगइयाणं जीवाणं सुत्तत्तं साहू, अत्थेगइयाणं जीवाणं जागरियत्तं साहू। -१२२ अधार्मिक आत्माओं का सोते रहना अच्छा है और धर्मनिष्ठ आत्माओं का जागते रहना। २५. अत्थेगइंयाणं जीवाणं बलियत्तं साहू, अत्थेगइयाणं जीवाणं दुब्बलियत्तं साहू। -१२२ धर्मनिष्ठ आत्माओं का बलवान होना अच्छा है और धर्महीन आत्माओं का दुर्बल रहना। २६. नत्थि केइ परमाणुपोग्गलमेत्ते वि पएसे, जत्थ णं अयं जीवे न जाए वा, न मए वा वि। -१२७ इस विराट् विश्व में परमाणु जितना भी ऐसा कोई प्रदेश नहीं है, जहाँ यह जीव न जन्मा हो, न मरा हो। २७. मायी विउव्वइ, नो अमायी विउव्वइ। -१३९ जिसके अन्तर् में माया का अंश है, वही विकुर्वणा (नाना रूपों का प्रदर्शन) करता है। अमायी-(सरल आत्मा वाला) नहीं करता। २८. जीवाणं चेयकडा कम्मा कज्जंति, नो अचेयकडा कम्मा कजति। -१६।२ आत्माओं के कर्म चेतनाकृत होते हैं, अचेतना कृत नहीं। २९. नेरइया सुत्ता, नो जागरा। -१६६ आत्मजागरण की दृष्टि से नारक जीव सुप्त रहते हैं, जागते नहीं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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