Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 260
________________ -१९ २४६ भगवती सूत्र : एक परिशीलन ७. आया णे अज्जो ! सामाइए, आया णे अज्जो ! सामाइयस्स अट्ठे। हे आर्य ! आत्मा ही सामायिक (समत्वभाव) है, और आत्मा ही सामायिक का अर्थ (विशुद्धि) है। (इस प्रकार गुण गुणी में भेद नहीं, अभेद है।) ८. गरहा संजमे, नो अगरहा संजमे। -१९ गर्दा (आत्मालोचन) संयम है, अगर्दा संयम नहीं है। ९. अथिरे पलोट्टइ, नो थिरे पलोट्टइ। अथिरे भज्जइ, नो थिरे भज्जइ। -१९ अस्थिर बदलता है, स्थिर नहीं बदलता। अस्थिर टूट जाता है, स्थिर नहीं टूटता। १०. करणओ सा दुक्खा, नो खलु सा अकरणओ दुक्खा। -११० कोई भी क्रिया किए जाने पर ही सुख दुःख का हेतु होती है, न किए जाने पर नहीं। ११. सवणे नाणे य विन्नाणे, पच्चक्खाणे य संजमे। अणण्हये तवे चेव, योदाणे अकिरिया सिद्धी ॥ -२५ सत्संग से धर्मश्रवण, धर्मश्रवण से तत्त्वज्ञान, तत्त्वज्ञान से विज्ञान = विशिष्ट तत्त्वबोध, विज्ञान से प्रत्याख्यान = सांसारिक पदार्थों से विरक्ति, प्रत्याख्यान से संयम, संयम से अनासव = नवीन कर्म का अभाव, अनास्रव से तप, तप से पूर्वबद्ध कर्मों का नाश, पूर्वबद्ध कर्मनाश से निष्कर्मता = सर्वथा कर्मरहित स्थिति और निष्कर्मता से सिद्धि–अर्थात् मुक्त स्थिति प्राप्त होती है। १२. जीवा णो वड्दति, णो हायंति, अवट्ठिया। -५८ जीव न बढ़ते हैं, न घटते हैं, किन्तु सदा अवस्थित रहते हैं। १३. नेरइयाणं णो उज्जोए, अंधयारे। ___ -५९ नारक जीवों को प्रकाश नहीं, अंधकार ही रहता है। १४. जीवे ताव नियमा जीवे, जीवे वि नियमा जीवे। -६१० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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