Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay
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भगवती सूत्र : एक परिशीलन १९३ यहाँ यह स्मरण रखने योग्य है, कि भगवान पार्श्व और महावीर की परम्परा में तात्त्विक विषयों में कोई अन्तर नहीं था। यदि अन्तर होता तो कालास्यवैशिक के मन का समाधान कदापि नहीं होता।
-भग. शतक १, उ. ९, सूत्र २९६ संयम और तप का फल राजगृह के निकट ही तुंगिया नगरी थी। वहाँ पार्श्वनाथ परम्परा के अनेक तत्त्वज्ञानी श्रावक रहते थे। एक बार कुछ पापित्य स्थविर पाँच सौ अनगारों के साथ परिभ्रमण करते हुए तुंगिया नगरी के पुष्यवतीक उद्यान में आये। श्रमणोपासकों ने स्थविरों का उपदेश सुना। तदनन्तर विचार चर्चा करते हुए उन्होंने प्रश्न किया
भंते ! संयम का क्या फल है? तप का क्या फल है?
स्थविर- आर्यो ! संयम का फल नवीन कर्मों का निरोध (अनासव) और तप का फल पूर्व कर्मों का विमोचन है।
श्रमणोपासक-भन्ते ! यदि संयम का फल अनास्रव और तप का फल निर्जरा है, तो फिर देवलोक में उत्पन्न होने का हेतु क्या है ?
स्थविर कालियुपत्र-आर्यो ! जीव पूर्व तप से देवलोक में उत्पन्न होते हैं। स्थविर आनंदरक्षित-आर्यो ! शेष कर्मों से जीव देवलोक में उत्पन्न होते
स्थविर काश्यप-आर्यो ! आसक्ति क्षीण न होने के कारण जीव देवलोक में उत्पन्न होते हैं। ___ अर्थात् सराग अवस्था में किये गए तप एवं संयम से अर्थात् संयम व तप में रही हुई आसक्ति के कारण पूर्ण कर्मक्षय न होने से आत्मा मोक्ष के बदले देवलोक को प्राप्त करता है। _स्थविरों के उत्तर सुनकर श्रमणोपासक अत्यन्त प्रसन्न हुए, परन्तु भिक्षा-निमित्त घूमते हुए इन्द्रभूति गौतम इन प्रश्नों का विवरण प्राप्त कर संदिग्ध हुए। भगवान के पास आकर बोले
"भगवन् ! क्या पाश्र्वापत्यीय स्थविरों द्वारा प्रदत्त उत्तर सत्य हैं, वे यथार्थ उत्तर देने में समर्थ हैं ?
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