Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay
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कर्म-मीमांसा
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- चलमाणे चलिए - स्वयं कृत कर्म - कांक्षा मोहनीय
कडाण कम्माण न मोक्ख अस्थि - जीव भारी कैसे होता है ? - एक समय में एक ही आयुष्य का बंध होता है - एक भव में एक आयुष्य का वेदन होता है - अल्पायु और दीर्घायु बाँधने के कारण - बंध के हेतु - वेदना - फल विपाक - गर्भ प्रवेश की स्थिति
चलमाणे चलिए गौतम स्वामी प्रश्न करते हैं- हे भगवन् ! जो चल रहा है वह चला, जो उदीरा जा रहा है- वह उदीरा गया, जो वेदा जा रहा है वह वेदा गया, जो गिर रहा है वह गिरा, जो छिद रहा है वह छिदा, जो भिद रहा है वह भिदा, जो जल रहा है वह जला, जो मर रहा है वह मरा और जो निर्जर रहा है वह निर्जीर्ण हुआ, क्या इस प्रकार कहा जा सकता है ?
भगवान बोले- हे गौतम ! जो चल रहा है वह चला यावत् जो निर्जरित हो रहा है वह निर्जीर्ण हुआ, इस प्रकार कहा जा सकता है।
प्रश्न होता है, कि जो कर्मपुद्गल “चल रहे हैं" वे वर्तमान काल में हैं, उन्हें “चले" ऐसा भूतकाल में कैसे कहा सकता है ?
शंका का समाधान करते हुए शास्त्रकार कहते हैं, कि यदि “चलमाणे चलिए" का अर्थ ऐसा नहीं माना जाएगा तो सारा व्यवहार विकृत हो जाएगा, और जब व्यवहार दूषित होगा तो आत्मिक क्रिया भी नष्ट होगी
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