Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 241
________________ भगवती सूत्र : एक परिशीलन २२७ गण-स्थविरों की संतति को गण कहते हैं-या तीन पुरुषों का समुदाय गण है। गणधर-जो अनुपम ज्ञान-दर्शनादि रूप धर्म गण को धारण करता है। गणधर चारों बुद्धियों के धारक, अनेकविध लब्धियों से युक्त होते हैं। भगवान महावीर के ग्यारह गणधर थे-इन्द्रभूति, अग्निभूति, वायुभूति, व्यक्तभूति, सुधर्मा, मण्डीपुत्र, मौर्यपुत्र, अकम्पित, अचल, मेतार्य और प्रभास। गुण-जो द्रव्य के आश्रित हैं और द्रव्य को द्रव्यान्तर से भिन्न करते हैं तथा स्वयं गुण रहित हैं, वह गुण हैं। गुणस्थान-मोह और मन-वचन-काय की प्रवृत्ति के कारण जीव के अन्तरंग परिणामों में होने वाले उतार-चढ़ाव को गुणस्थान कहते हैं। परिणाम यद्यपि अनन्त हैं। परन्तु उत्कृष्ट मलिन परिणामों से लेकर उत्कृष्ट विशुद्ध परिणामों तक तथा उससे ऊपर जघन्य वीतराग परिणाम से लेकर उत्कृष्ट वीतराग परिणाम तक की अनन्तों वृद्धियों के क्रम को वक्तव्य बनाने के लिये उनको चौदह श्रेणियों में विभाजित किया गया है। वे चौदह गुणस्थान या जीवस्थान कहलाते हैं। ___ गुप्ति-जिसके बल से संसार के कारणों से आत्मा का गोपन अर्थात् रक्षा होती है वह गुप्ति है। अथवा मन-वचन-काय की अशुभ प्रवृत्ति का निरोध गुप्ति है। घातिकर्म-जो आत्मा के मूलगुणों की घात करते हैं वे घातिकर्म हैं। घातिकर्म चार हैं-ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अन्तराय। ये क्रमशः ज्ञान, दर्शन, सम्यक्त्व चारित्र तथा वीर्य गुण की घात करते हैं। चक्रवर्ती-षट्खण्ड भरतक्षेत्र के अधिपति बत्तीस हजार मुकुटबद्ध राजाओं के स्वामी चक्रवर्ती होते हैं। , चारित्र-शुभ कर्म में प्रवृत्ति और अशुभ कर्म से निवृत्ति होना। अथवा स्वरूप में चरण करना-रमण करना चारित्र है। अथवा जीव की अन्तरंग विरागता या साम्यता निश्चय चारित्र है और उसके लिये बाह्य क्रिया कलाप, व्रत, समिति, गुप्ति आदि का पालन व्यवहार चारित्र है। - चेतना-जिस शक्ति से आत्मा ज्ञाता द्रष्टा अथवा कर्ता भोक्ता होता है, वह चेतना है। चेतना, अनुभूति, उपलब्धि, वेदना ये सब एकार्थक हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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