Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay
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भगवती सूत्र : एक परिशीलन २०३ भगवान गौतम ! उन्माद दो प्रकार का है-यक्षावेश से और मोहनीय कर्म के उदय से जनित।
जिससे विवेक-बुद्धि नष्ट हो जाय उसे “उन्माद" कहते हैं।
यक्षावेश उन्माद देवता आदि के प्रवेश से होता है। और मोह कर्म के उदय से आत्मा का पारमार्थिक विवेक नष्ट हो जाता है।
इन दोनों उन्मादों में से मोहजन्य उन्माद की अपेक्षा यक्षावेश उन्माद सुख पूर्वक वेदने योग्य और सुखपूर्वक छुड़ाने योग्य होता है। मोहजन्य उन्माद दुःखपूर्वक वेदन किया जाता है, क्योंकि मोहमूढ़ जीव अनन्त संसार में परिभ्रमण करता है। विद्या, मन्त्र-तन्त्र और देवों द्वारा भी उसका छुड़ाया जाना अशक्य है। यक्षावेश उन्माद इन उपायों से सुख-विमोचनतर है। कहा भी है
सर्वज्ञ मन्त्रवाद्यपि यस्य न सर्वस्य निग्रहे शक्तः ।
मिथ्यामोहोन्मादः स केन किस कथ्यतां तुल्यः ॥ अर्थात सर्वज्ञ रूप महामंत्रवादी महापुरुष भी मोह-जन्य उन्माद का निग्रह करने में असमर्थ हैं। मिथ्यामोहोन्माद की किसी के साथ तुलना नहीं की जा सकती। ___ इसलिये कहा है कि यक्षावेश उन्माद की अपेक्षा मोहजन्य उन्माद दुःख पूर्वक वेदने योग्य है।
___-भग. शतक १४, उ. २, सूत्र २ बंध के हेतु ___ आगम साहित्य में कर्म बंध हेतुओं का निरूपण अनेक दृष्टियों से किया गया है।
गणधर गौतम ने निवेदन किया-भगवन् ! जीव कांक्षा मोहनीय कर्म बांधता है? - भगवान-हाँ गौतम ! बाँधता है।
गौतम-कृपया भगवन् ! यह बताइये कि वह किन कारणों से बांधता
भगवान-गौतम ! उसके दो हेतु हैं-प्रमाद और योग। गौतम-भगवन् ! प्रमाद किससे उत्पन्न होता है?
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