Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 224
________________ २१० भगवती सूत्र : एक परिशीलन काल से अवधिज्ञानी जघन्य एक आवलिका के असंख्यातवें भाग मात्र काल को और उत्कृष्ट अनागत असंख्यात उत्सर्पिणी - अवसर्पिणी परिमाणकाल के रूपी पदार्थों को जानता व देखता है। भाव से अवधिज्ञानी जघन्य और उत्कृष्ट अनन्त भावों को जानता व देखता है, किन्तु सर्व पर्यायों के अनन्तवें भाग मात्र को जानता और देखता है। मनः पर्यवज्ञान मनुष्यों को ही होता है और वह भी अतिशय लब्धि वाले ऋद्धि प्राप्त अप्रमत्त सम्यग्दृष्टि पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को ही मन:पर्ययज्ञान उत्पन्न होता है। शेष को नहीं । मनः पर्यवज्ञान ऋजुमति और विपुलमति के भेद से दो प्रकार का है। ऋजुमति से विपुलमति कुछ अधिक विपुल, विशुद्ध और वितिभिरतर होता है। द्रव्य से मनः पर्यवज्ञानी मनरूप में परिणत मनोवर्गणा को जानता व देखता है। क्षेत्र से मनुष्य क्षेत्र, काल से असंख्यकाल (अतीत-अनागत) और भाव से मनोवर्गणा की अवस्थाओं को जानता और देखता है। शिष्य ने प्रश्न किया- भन्ते ! केवलज्ञान कितने प्रकार का है ? गुरुदेव ने कहा- केवलज्ञान दो प्रकार का है - भवस्थ केवलज्ञान और सिद्ध केवलज्ञान । भवस्थ केवलज्ञान पुनः दो प्रकार का है - सयोगी भवस्थ केवलज्ञान - तेरहवें गुणस्थानवर्ती जीव का केवलज्ञान और अयोगी भवस्थ केवलज्ञान - चौदहवें गुणस्थानवर्ती जीव का केवलज्ञान । सिद्ध केवलज्ञान दो प्रकार का है - अनन्तरसिद्ध केवलज्ञान और परम्परासिद्ध केवलज्ञान । अनन्तरसिद्ध केवलज्ञान पन्द्रह प्रकार का है। तीर्थसिद्ध, अतीर्थसिद्ध आदि । परम्परा सिद्ध केवलज्ञान अनेक तरह का है जैसे - अप्रथमसमयसिद्ध, द्विसमयसिद्ध यावत् अनन्तसमयसिद्ध का केवलज्ञान । द्रव्य से केवलज्ञानी सर्व द्रव्यों को जानता व देखता है। क्षेत्र से लोकालोक को जानता व देखता है। काल से त्रिकालवर्ती द्रव्यों और पर्यायों को जानता व देखता है। भाव से सर्व भावों - पर्यायों को जानता व देखता है। केवलज्ञान सम्पूर्ण द्रव्यपरिणाम, औदयिक आदि भावों का अथवा वर्ण, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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