Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay
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१९६ भगवती सूत्र : एक परिशीलन
गांगेय- भन्ते ! नरक में नारक, तिर्यंच गति में तिर्यच, मनुष्य गति में मनुष्य और देवगति में देव स्वयं उत्पन्न होते हैं या किसी की प्रेरणा से ? वे अपनी गतियों से स्वयं निकलते हैं या उन्हें कोई निकालता है? - महावीर- आर्य गांगेय ! सभी जीव अपने शुभाशुभ कर्म के अनुसार शुभाशुभ गतियों में उत्पन्न होते हैं और वहाँ से निकलते हैं। इसमें अन्य कोई प्रेरक नहीं है।
भगवान की वाणी सुनकर गांगेय का संदह दूर हो गया। उन्हें अच्छी तरह विश्वास हो गया कि श्रमण भगवान महावीर सर्वज्ञ हैं, सर्वदर्शी हैं। वे तुरन्त विनयपूर्वक वन्दन करके निकट आये और पंच महाव्रत रूप धर्म को अंगीकार कर लिया।
-भग. शतक ९, उ. ३२, सूत्र ९-१५
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