Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay
View full book text
________________
१६८ भगवती सूत्र : एक परिशीलन
भगवान-गौतम ! ऐसा नहीं है। उदाहरण के लिये जैसे कोई पुरुष सौ बकरियों के लिये एक विशाल अजाव्रज बनाये जिसमें अधिक से अधिक एक हजार बकरियों को रक्खे और उसमें उनके लिये घास-पानी डाल दे। वे बकरियां वहां अधिक से अधिक छह महीने तक रहें, तो क्या उस बाड़े का कोई परमाणु पुद्गल मात्र आकाश प्रदेश ऐसा रह सकता है, जो मल, मूत्र, श्लेष्म, वमन, शुक्र, रुधिर, रोम, सींग, खुर और नख से स्पर्शित न हुआ
हो?
गौतम-भन्ते ! यह अर्थ समर्थ नहीं है।
भगवान कहते हैं-उस बाड़े का कदाचित् कोई परमाणु उपर्युक्त स्पर्शों से अस्पृष्ट रह गया हो, परन्तु इस विशाल, विराट् लोक में लोक की शाश्वतता के कारण, संसार की अनादिता के कारण, जीव की नित्यता के कारण, कर्म की बहुलता के कारण और जन्म-मरण की प्रचुरता के कारण एक भी परमाणु पुद्गल मात्र आकाश प्रदेश ऐसा नहीं है जहां इस जीव ने जन्म-मरण न किया है। इस कारण गौतम ! उपर्युक्त बात कही गई है।
-भग. शतक १२, उ. ७, सूत्र ४५६ बाधा नहीं पहुंचाते
गौतम-भगवन् ! लोक के एक आकाश प्रदेश पर एकेन्द्रिय यावत् पंचेन्द्रिय जीवों के व अनिन्द्रिय जीवों के जो प्रदेश हैं वे परस्पर एक दूसरे को बाधा नहीं उत्पन्न करते? वे परस्पर के अवयवों का छेद नहीं करते? ___ भगवान-गौतम ! वे परस्पर पीड़ादि नहीं पहुँचाते। जिस प्रकार कोई शृंगारित यावत् मधुर कण्ठ वाली नर्तकी सैंकड़ों और लाखों व्यक्तियों से परिपूर्ण रंग-स्थली में बत्तीस प्रकार के नाट्यों में से कोई एक नाट्य दिखाती है। उस समय दर्शक लोगों की अनिमेष दृष्टियां उस नर्तकी पर चारों ओर से गिरती हैं, तब क्या वे दृष्टियां नर्तकी को किसी प्रकार की पीड़ा पहुंचाती
गौतम-भन्ते ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। भगवान गौतम ! इसी तरह जीवों के आत्म-प्रदेश परस्पर बद्ध, स्पृष्ट और संबद्ध होने पर भी आबाधा व्याबाधा उत्पन्न नहीं करते और न अवयव का छेद करते हैं। -भग. शतक ११, उ. १०, सूत्र २१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org