Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay
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परिव्राजक सम्बन्धी चर्चाएँ
- आर्यस्कन्दक और महावीर
- परिव्राजक कालोदायी और महावीर
आर्यस्कन्दक और महावीर
कृतंगला के सन्निकट श्रावस्ती नगरी थी । वहाँ परिव्राजकों ११ का एक आश्रम था। उसका आचार्य था गर्दभाल । स्कन्दक उनका प्रमुख शिष्य था और वेद-वेदांग, षष्ठितंत्र, दर्शन-शास्त्र आदि का प्रकाण्ड विद्वान था । विद्वत्ता के साथ उसमें विनम्रता, सरलता और तत्त्व - जिज्ञासा भी थी। वह विशिष्ट तपस्वी भी था । उस श्रावस्ती में पिंगल नाम का निर्ग्रन्थ वेसालीय १२ श्रावक रहता था। एक दिन वह परिव्राजक आवास में चला गया। उसने स्कन्दक परिव्राजक से आक्षेपात्मक भाषा में पूछा
मागध ! लोक सान्त है या अनन्त ?
जीव सान्त है या अनन्त ?
मोक्ष सान्त है या अनन्त ?
मुक्तात्मा सान्त है या अनन्त ?
किस मरण से मरता हुआ जीव जन्म-मरण की परम्परा को बढ़ाता है अथवा घटाता है ?
स्कन्दक यद्यपि विद्वान था । पर पिंगल के प्रश्नों का उत्तर नहीं दे सका। पिंगल ने इन प्रश्नों को पुनः दोहराया। स्कन्दक फिर मौन रहा। पिंगल समाधान लिये बिना लौट आया। स्कन्दक समाधान पाने को आतुर हो उठा।
उन्हीं दिनों स्कन्दक ने सुना कि भगवान महावीर कृतंगला नगरी के छत्रपलास उद्यान में विराजमान हैं। उसने सोचा- भगवान के पास जाकर इन प्रश्नों का समाधान प्राप्त करूँ। उसे भगवान के पास जाने और प्रश्नों का उत्तर पाने में कोई संकोच नहीं आया, क्योंकि उसकी जिज्ञासा प्रबल हो उठी थी। वह मुक्तभाव से भगवान के पास गया और भगवान ने स्कन्दक को मुक्तमन से प्रश्नों का उत्तर दिया
स्कन्दक ! द्रव्य और क्षेत्र की दृष्टि से लोक सान्त है । काल और पर्याय की अपेक्षा से लोक अनन्त है। अतः लोक सान्त भी है और अनन्त भी ।
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