Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay
View full book text
________________
१७४ भगवती सूत्र : एक परिशीलन
जीवों की गति गौतम-भगवन् ! क्या कर्म रहित जीव की गति होती है ? भगवान-हाँ गौतम ! कर्मरहित जीव की गति होती है। गौतम-कर्मरहित जीव की गति किस प्रकार होती है ?
भगवान गौतम ! निःसंगपने से, नीरागपने से, गति परिणाम से, बन्धन का छेद होने से, निरिन्धन होने से और पूर्व-प्रयोग से कर्मरहित जीव की गति होती है।
गौतम-भगवन् ! निःसंगपने से, नीरागपने से और गतिपरिणाम से कर्म रहित जीव की गति कैसे होती है ? ___भगवान गौतम ! जैसे कोई छिद्र रहित और निरुपहत (बिना टूटा हुआ) सूखा तुम्बा हो, उस सूखे हुए तुम्बे पर अत्यन्त संस्कारयुक्त, डाभ और कुश लपेट कर क्रमपूर्वक आठ बार मिट्टी का लेप कर दिया जाय। फिर उसे अथाह, दुस्तर पानी में डाल दिया जाय तो वह मिट्टी के आठ लेपों से भारी हो जाने से पानी के ऊपरी तलं को छोड़कर नीचे पृथ्वीतल पर बैठ जाता है। फिर, कालान्तर में पानी में पड़े रहने के कारण ज्यों-ज्यों उसका लेप गलकर उतरता जाता है, त्यों-त्यों वह तुम्बा पृथ्वीतल को छोड़कर पुनः पानी की सतह पर आ जाता है। ___ इसी प्रकार गौतम ! निःसंगपने से, नीरागपने से, और गति-परिणाम से कर्मरहित जीव की भी गति ऊर्ध्व होती है।
गौतम-भगवन् ! बन्धन का छेद होने से कर्मरहित जीव की गति किस प्रकार होती है ? __भगवान गौतम ! जैसे कोई मटर की फली, मूंग की फली, उड़द की फली, एरण्ड का फल सूखा हो, तो फूटने पर बीज उछलकर दूर जा गिरता है। हे गौतम ! इसी प्रकार कर्मरूप बन्धन का छेद हो जाने पर, कर्म रहित जीव की गति होती है।
गौतम-भगवन् ! निरिन्धन होने से कर्म रहित जीव की गति कैसे होती
भगवान गौतम ! जिस प्रकार ईंधन से छूटे हुए धुंए की गति, किसी प्रकार की रुकावट के बिना स्वाभाविक रूप से ऊपर की ओर होती है, इसी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org